मैहर के ज्योतिषाचार्य पं. मोहनलाल के अनुसार, पितृपक्ष का आगाज अश्विन मास के कृष्ण पक्ष से हो गया है। इसकी शुरुआत पूर्णिमा तिथि से हुई जबकि समाप्ति अमावस्या तिथि पर होती है। यदि कोई व्यक्ति श्राद्ध आदि कर्म करने में सक्षम नहीं है तो कुछ उपाय करके पितरों की कृपा पा सकता है। ये उपाय रोज 16 दिन करने से पितृ दोष भी कम हो सकता है।
पितृपक्ष में ये करें उपाय
– पितृपक्ष के दौरान रोजाना सुबह स्नान आदि कार्यों से निवृत्त होकर भगवान सूर्यदेव को अघ्र्य दें। फिर इसके बाद पितरों की आत्म शांति के लिए प्रार्थना करें।
– ये सब करने के बाद घर में कोई एक स्थान चुनें। उस स्थान की साफ-सफाई करें। मिट्टी के सकोरे या बर्तन में गाय का कंडा जलाएं।
– जब यह कंडा ठीक तरीके से जल जाए तो इसे घर के साफ वाले स्थान पर रखें। इसके बाद जले हुए कंडे पर घी-गुड और घर के बने भोजन से हवन करें।
– यानी कि धूप की तरह अपने हाथों से थोड़ा-थोड़ा घी-गुड़ और भोजन कंडे पर डाले।
– ये प्रक्रिया कम से कम ५ बार घी-गुड़ और ५ बार भोजन के बने भोग का हवन करें। हर बार धूप देते समय इस मंत्र का उच्चारण करें।
– ऊँ पितृभ्य स्वधायीभ्य स्वधा नम: पितामयभ्य: स्वधायीभ्य स्वधा नम: प्रपितामयभ्य स्वधायीभ्य स्वधा नम:
– मंत्र पूरा होने के बाद लोटे से हथेली में पानी लें और अपने अंगूठे के सहयोग से जमीन पर प्रवाहित करें।
– इसके बाद अपने-अपने पुरखों को प्रणाम करें। उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करें।
– पितृपक्ष में १६ दिनों तक यह उपाय रोजाना करने से पुरखों की तीन पीढ़ियां तक तृप्त हो जाती है।
– पितृपक्ष के दौरान रोजाना सुबह स्नान आदि कार्यों से निवृत्त होकर भगवान सूर्यदेव को अघ्र्य दें। फिर इसके बाद पितरों की आत्म शांति के लिए प्रार्थना करें।
– ये सब करने के बाद घर में कोई एक स्थान चुनें। उस स्थान की साफ-सफाई करें। मिट्टी के सकोरे या बर्तन में गाय का कंडा जलाएं।
– जब यह कंडा ठीक तरीके से जल जाए तो इसे घर के साफ वाले स्थान पर रखें। इसके बाद जले हुए कंडे पर घी-गुड और घर के बने भोजन से हवन करें।
– यानी कि धूप की तरह अपने हाथों से थोड़ा-थोड़ा घी-गुड़ और भोजन कंडे पर डाले।
– ये प्रक्रिया कम से कम ५ बार घी-गुड़ और ५ बार भोजन के बने भोग का हवन करें। हर बार धूप देते समय इस मंत्र का उच्चारण करें।
– ऊँ पितृभ्य स्वधायीभ्य स्वधा नम: पितामयभ्य: स्वधायीभ्य स्वधा नम: प्रपितामयभ्य स्वधायीभ्य स्वधा नम:
– मंत्र पूरा होने के बाद लोटे से हथेली में पानी लें और अपने अंगूठे के सहयोग से जमीन पर प्रवाहित करें।
– इसके बाद अपने-अपने पुरखों को प्रणाम करें। उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करें।
– पितृपक्ष में १६ दिनों तक यह उपाय रोजाना करने से पुरखों की तीन पीढ़ियां तक तृप्त हो जाती है।