सामान्य नेता चुनाव जीतने के बाद जनता से दूर हो जाते हैं। लिहाजा वे मूकबधिर से कम नहीं हैं। मैं मूकबधिर होते हुए भी जनता की आवाज बनूंगा। मैं उनसे अच्छा हूं जो सुनकर भी अनसुना कर देते हैं।
स्थानीय स्तर पर बेरोजगारी, सीमेंट इंडस्ट्री में मिनिमम वेज लागू हो, सड़कों पर गड्ढे हैं, धूल उड़ती है, लोगों की कमर टूट रही है। प्रदूषण से लोग बीमार हैं। प्रोजेक्ट समय पर पूरे नहीं हो रहे हैं। नोटबंदी से व्यापारी परेशान हैं। महिलाओं की सुरक्षा, उच्च शिक्षा के सेंटर मेरी प्राथमिकता में शामिल हैं।
ऐसा करने में तकनीकी समस्या थी, देर हो रही थी। निर्दलीय के रूप में चुनाव चिह्न १४ नवंबर के बाद अलॉट होगा। जनसंपर्क के लिए बहुत कम समय मिलता। इसलिए अपना दल के चिह्न पर चुनाव लड़ रहा हूं। यहां भी मूक बधिरों को आगे बढ़ाऊंगा।
प्रचार के दौरान मुझे मेरी दिव्यांगता से परेशानी नहीं होती। मेरी आवाज जनता तक पहुंचाने के लिए मेरे सहयोगी हैं। मूकबधिरों की टीम भी मेरे साथ है, जो मेरी मदद कर रही है। अन्य प्रत्याशियों की अपेक्षा टीम छोटी जरूर है पर हम जनता तक प्रभावी रूप से पहुंच बनाने में सफल हो रहे हैं।
मैं हारूं या जीतूं अब राजनीति से भागने वाला नहीं। शहर के विकास के लिए हमेशा सतर्क और तैयार रहूंगा। सतना की जनता की आवाज बनने का प्रयास हमेशा करूंगा। सतना में ही स्थाई रूप से बस गया हूं, लोगों के दिल में बसना है।