गत सितंबर माह में स्कूल शिक्षा विभाग ने डीईओ व आरटीओ को आदेशित किया था कि स्कूली बसों में सीसीटीवी कैमरे, जीपीएस, फस्र्ट एड बाक्स, स्पीड गवर्नर, महिला स्टाफ सहित चालकों का पुलिस वेरिफिकेशन व समय-समय पर स्वास्थ्य परीक्षण करवाना होगा। इसके बाद स्कूलों को आदेश जारी कर दिए गए। जांच के नाम पर कागजी खानापूर्ति भी हुई। लेकिन, आज तक शत प्रतिशत बसों में मापदंडों को लागू नहीं कराया जा सका।
सालभर में दर्जन भर बैठकें और हिदायतें देने के बाद भी हालात जस के तस हैं। अब तक शहर के स्कूल, कॉलेजों में खटारा बसें दौड़ रही हैं। वैन भी एलपीजी से चल रहे हैं। लेकिन महीनों से इन पर कोई कार्रवाई नहीं की गई। नतीजा, 80 फीसदी स्कूल और कॉलेज बसों में न जीपीएस लगे और न स्पीड गवर्नर।
डीईओ व आरटीओ को आदेश में चेताया गया था कि स्कूल प्रबंधन को पत्र लिखकर निर्धारित मांपदड पूरे करने के आदेश दिए जाएं। साथ ही महीनेभर के अंदर सभी बसों में गाइडलाइन का पालन सुनिश्चित होना चाहिए। तय समय के बाद निगरानी आरटीओ करंेगे। लेकिन अब तक स्कूली बसों की जांच को लेकर गंभीरता नहीं दिखाई गई।
परिवहन विभाग के नियमों के अनुरूप एक वाहन सड़क पर सिर्फ 15 वर्ष तक दौड़ सकता है। शनिवार को आरटीओ जांच में भी यह बात सामने आई। बस क्रमांक एमपी 19 डी 6859 का पंजीयन वर्ष 2002 में हुआ था। जो बिना कागजात व फिटनेस के सड़क पर दौड़ती पाई गई। बस क्रमांक एमपी 19 पी 0404 का भी फिटनेस समाप्त हो चुका है। दोनों बसों के खिलाफ आरटीओ ने कार्रवाई करते हुए थाने में खड़ी करवा दी।