हाल ये है कि इसकी वजह से बाजार में पिछले 3 माह में ही इंडक्शन की मांग 4 से 5 गुना बढ़ गई है. सतना के कारोबारियों की मानें तो 3—4 माह में इंडक्शन की बिक्री में खासा इजाफा हुआ है. हर माह 25—30 इंडक्शन बिक रहे हैं. चार माह पहले तक हर माह महज 4 या 5 इंडक्शन ही बिकते थे. शहर में करीब 50 दुकानों से हर माह 1400—1500 इंडक्शन बिक रहे हैं.
इंडक्शन खरीदने पहुंची दुअसिया आदिवासी ने बताया कि ग्रामीण क्षेत्र के ज्यादातर घरों में मीटर नहीं हैं. औसत बिलिंग हो रही है. इंडक्शन जलाने पर ज्यादा बिल नहीं देना पड़ता.
कई गरीब परिवार 100 यूनिट तक एक रुपए प्रति यूनिट का बिल चुकाते हैं. ऐसे में इंडक्शन गैस से सस्ता पड़ता है. अभी गांवों के 70 प्रतिशत से ज्यादा घरों में इंडक्शन हैं.
इधर गैस एजेंसी संचालकों के अनुसार महंगाई के कारण उज्जवला योजना के आधे सिलेंडर ही भराए जा रहे हैं. गैस एजेंसी के कर्मचारी ने बताया कि उनके यहां से 3 हजार सिलेंडर योजना से दिए गए. इनमें से 50 प्रतिशत ही भराए जा रहे हैं.
नफा—नुकसान का गणित
— 6 लोगों के परिवार का खाना औसतन आधे किलो गैस पर बनता है. 14.2 किलो का सिलेंडर 925 रुपए में आ रहा है.
— आधा किलो गैस की कीमत 33 रुपए है.
— इंडक्शन पर 4 या 5 रुपए में एक दिन का भोजन बन जाता है.
— गरीब परिवारों को 100 यूनिट तक बिजली का बिल 1 रुपए प्रति यूनिट के हिसाब से देना होता है. ऐसे में उनका भोजन का ईंधन खर्च 5 रुपए ही होता है.