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खुरदुरे मैदानों में प्रैक्टिस करते एथलीट्स

locationसतनाPublished: Jun 24, 2019 01:12:44 pm

Submitted by:

Jyoti Gupta

इंटरनेशनल ओलम्पिक रन-डे

International Olympic Run-Day

International Olympic Run-Day

सतना. हम अक्सर दूसरे शहर के बच्चों की सफलताओं को उदाहरण के रूप में पेश करते हैं। कहते हैं कि उसे देखो कितनी कम उम्र में दुनिया का सबसे बड़ा धावक बन गया। अच्छे-अच्छे खिलाडि़यों को मात दे दिया। इसके इतर हम उस खिलाड़ी के परिश्रम और संसाधनों को नजरअंदाज कर देते हैं।
स्थिति यह है कि किसी खेल की मूलभूत आवश्यकताओं को हम पूरा नहीं कर सकते और बच्चों से उम्मीद करते हैं कि वह सफलता का झंडा गाडे़। कुछ एेसी ही स्थिति जिले में एथलेटिक्स को लेकर है। कहने को दादा सुखेंद्र स्टेडियम से लेकर बिरला के गांधी स्टेडियम तक जिला मुख्यालय पर मौजूद हैं लेकिन किसी भी स्टेडियम में धावकों के लिए ट्रैक नहीं है जहां वो अपनी प्रैक्टिस जारी रख सकें। आलम यह है कि कंकड़-पत्थर से भरे मैदानों में जिले के धावक दौडऩे को मजबूर हैं। कई धावक तो कहते हैं कि स्टेडियम में प्रैक्टिस करने से अच्छा है कि सड़कों पर प्रैक्टिस करें।

जिले को सिंथेटिक स्टेडियम की जरूरत

एथलीट कोच बाबूलाल सिंह ने बताया, शहर में एक सिंथेटिक स्टेडियम की जरूरत है। यहां के धावक स्कूल, कॉलेज और जिलास्तरीय, राज्यस्तरीय प्रतियोगिताओं के लिए जगह तो बना लेते हैं पर दूसरे शहर के धावकों को पीछे नहीं कर पाते और निराश होकर मन मार लेते हैं। एक धावक को सिंथेटिक स्टेडियम की जरूरत होती है। वहां 10 किलोमीटर से लेकर चार सौ किलोमीटर तक दौडऩे के लिए ट्रैक बने हो। साथ ही स्क्वेयर हो, जिम की भी व्यवस्था हो। एेसे ग्राउंड में ही प्रैक्टिस करने वाले धावक राष्ट्रीयस्तर तक जगह बना सकते हैं।
इस उम्र में भी जज्बा बरकरार
एक तरह शहर में एथलीट के लिए सुविधाओं का अभाव है तो दूसरी तरफ कुछ कर गुजरने की चाहत भी है। हम बात कर रहे शहर के लोकप्रिय धावक संजय बनार्जी की। उनकी उम्र 50 के पार है। फिर भी वे अपने स्तर पर प्रयास कर हर साल भारत और भारत के बाहर आयोजित होने वाली दौड़ में बराबर भाग ले रहे हैं और आने वाली नई जनरेशन को दौड़ के लिए प्रेरित कर रहे हैं।
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