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Labour Day: चमकदार हीरे देने वाले मजदूर तिल-तिल मरने को मजबूर, यहां पढ़ें MP की पूरी रिपोर्ट

locationसतनाPublished: May 01, 2018 04:09:58 pm

Submitted by:

suresh mishra

हीरा और पत्थर खदानों में काम करने वाले मजदूरों को नहीं मिलती सुरक्षा किट, नियमित रूप से स्वास्थ्य परीक्षण तक नहीं कराया जा रहा

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पन्ना। धरती का सीना चीर कर दुनिया को बेशकीमती चमकदार हीरे और पत्थर देने वाले मजदूर बगैर इलाज के तिल-तिल मरने को मजबूर हैं। जिले की हीरा और पत्थर खदानों में काम करने वाले मजदूरों में सिलिकोसिस की बीमारी होने के बाद भी बीमारी की पहचान करने वाले उपकरण की सुविधा उपलब्ध नहीं है। उक्त बीमारी के इलाज के लिए यहां कोई प्रशिक्षित डॉक्टर तक नहीं है।
मजदूरों द्वारा की गई हाड़तोड़ मेहनत के दम पर निकलने वाले हीरों से और पत्थर खदान लगाने वाले लोग मालामाल हो रहे हैं और मजदूर पत्थर का कलेजा लिए हुए हर दिन चाहता है कि कब उसकी मौत हो जाए और उसे इस जानलेवा लाइलाज बीमारी से छुटकारा मिल जाए।
आय का प्रमुख साधन
औद्योगिक इकाई विहीन पन्ना जिले में मजदूरों की आय का प्रमुख साधन पत्थर और हीरा की खदानें ही हैं। इसके अलावा असंगठित क्षेत्रों में जैसे खेतों, भवन निर्माण, ईंट भट्ठे आदि में बड़ी संख्या में लोग काम करते हैं। हीरा और पत्थर खदानों में काम करने वाले मजदूरों को सिलिकोसिस, दमा, खांसी, टीबी आदि रोग हो रहे हैं। सिलिकोसिस लाइलाज बीमारी है। गरीब, मजदूर वर्ग के लोग हीरा और पत्थर खदानों में पत्थरों को तोड़कर लाइलाज और दमघोटू बीमार सिलिकोसिस के शिकार हो रहे हैं।
मजदूर 35 साल में ही बूढ़े दिखने लगते है
सालों तक पत्थर की खदानों में काम करने वाले मजदूरों के फेफड़ों में पत्थरों की धूल सांस के माध्यम से फेफड़ों तक पहुंचकर जमने लगती है। इससे धीरे-धीरे उनके फेफड़े पत्थर जैसे कठोर हो जाते हैं। इस बीमारी का कोई इलाज अभी तक नहीं खोजा जा सका है। यही कारण है कि लगातार पत्थर खदानों मेंं काम करने वाले मजदूर 35 से 40 साल में ही बूढ़े दिखने लगते हैं। 45 से 50 साल की आयु में अधिकांश लोगों की मौत इस दमघोटू सिलिकोसिस से हो जाती है। इसका आंकड़ा किसी के पास नहीं होता है।
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जिले में नहीं समुचिज जांच की सुविधा
पत्थर खदान मजदूर संघ के जिलाध्यक्ष यूसुफ बेग ने बताया, सिलिकोसिस बीमारी के लिए जरूरी जांच की सुविधा ही जिला अस्पताल सहित जिलेभर में नहीं है। इस बीमारी से पीड़ित मरीजों का टीबी का इलाज किया जाता है। इससे उनकी हालत और अधिक बिगडऩे लगती है। सरकार को आगे आना पड़ेगा।
नहीं हैं चिकित्सक
जिलेभर में 10 से 15 हजार लोग सिलिकोसिस से पीड़ित हो सकते हैं। उनके इलाज के लिए जिला अस्पताल में पूर्व में पदस्थ रहे डॉ. सुधाकर पांडेय को मलेशिया में प्रशिक्षण दिलाया गया था, लेकिन राजनीतिक हस्ताक्षेप के चलते उनका स्थानांतरण कर दिया गया और मरीजों को भगवान भरोसे छोड़ दिया गया।
सिलिकोसिस नीति बनी पर अमल में नहीं
राज्य सरकार द्वार सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा देकर कहा गया था कि सिलिकोसिस पीड़ित मरीजों को सभी सुविधाओं का लाभ दिया जाता है। इसकी जांच करने के लिये 23 मार्च 2017 को सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर फारमर डायरेक्टर नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एक्यूपेशनल हेल्थ डॉ. हबील उल्ला शैयद, डिप्टी डायरेक्टर लेबर डिपार्टमेंट एमपी गवर्नमेंट नमिता तिवारी, डॉ. साधू और पत्थर खदान मजदूर संघ के जिलाध्यक्ष यूसुफ बेग को टीम में शामिल किया गया था।
सिलिकोसिस पीड़ितों के साथ छलावा

इन्होंने माझा खदान का दौरा कर मजदूरों से चर्चा कर अपनी रिपोर्ट सुको को दी थी। इसके बाद सुको ने प्रदेश सरकार को सिलिकोसिस नीति बनाने के लिए तीन हफ्ते का समय दिया था। इस पर सरकार ने सिलिकोसिस नीति बना तो ली है लेकिन इसे अमल में नहीं लाया जा सका। बजट में भी इसकी घोषणा नहीं की गई है। यह मजदूरों और सिलिकोसिस पीड़ितों के साथ छलावा है।
मनरेगा की नाकामी से बढ़ा पलायन
जिले में मनरेगा स्कीम नाकाम साबित हो रही है। मजदूरों को समय पर मजदूरी का भुगतान नहीं मिलने के कारण उनका इससे मोहभंग हो गया है। यहां हर साल सैकड़ों लोग पलायन कर रहे हैं। गांव के लोग मनरेगा के तहत मजदूरी करने से डरने लगे हैं। लोगों का 8 करोड़ से भी अधिक का भुगतान बकाया है। जिले में रोजगार की स्थिति अच्छी नहीं होने के कारण युवा वर्ग के लोग सिलिकोसिस से पीडि़त हो रहे हैं वहीं दूसरी ओर महिलाएं एनीमिक और बड़ी संख्या में बच्चे कुपोषित हैं।
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