औद्योगिक इकाई विहीन पन्ना जिले में मजदूरों की आय का प्रमुख साधन पत्थर और हीरा की खदानें ही हैं। इसके अलावा असंगठित क्षेत्रों में जैसे खेतों, भवन निर्माण, ईंट भट्ठे आदि में बड़ी संख्या में लोग काम करते हैं। हीरा और पत्थर खदानों में काम करने वाले मजदूरों को सिलिकोसिस, दमा, खांसी, टीबी आदि रोग हो रहे हैं। सिलिकोसिस लाइलाज बीमारी है। गरीब, मजदूर वर्ग के लोग हीरा और पत्थर खदानों में पत्थरों को तोड़कर लाइलाज और दमघोटू बीमार सिलिकोसिस के शिकार हो रहे हैं।
सालों तक पत्थर की खदानों में काम करने वाले मजदूरों के फेफड़ों में पत्थरों की धूल सांस के माध्यम से फेफड़ों तक पहुंचकर जमने लगती है। इससे धीरे-धीरे उनके फेफड़े पत्थर जैसे कठोर हो जाते हैं। इस बीमारी का कोई इलाज अभी तक नहीं खोजा जा सका है। यही कारण है कि लगातार पत्थर खदानों मेंं काम करने वाले मजदूर 35 से 40 साल में ही बूढ़े दिखने लगते हैं। 45 से 50 साल की आयु में अधिकांश लोगों की मौत इस दमघोटू सिलिकोसिस से हो जाती है। इसका आंकड़ा किसी के पास नहीं होता है।
पत्थर खदान मजदूर संघ के जिलाध्यक्ष यूसुफ बेग ने बताया, सिलिकोसिस बीमारी के लिए जरूरी जांच की सुविधा ही जिला अस्पताल सहित जिलेभर में नहीं है। इस बीमारी से पीड़ित मरीजों का टीबी का इलाज किया जाता है। इससे उनकी हालत और अधिक बिगडऩे लगती है। सरकार को आगे आना पड़ेगा।
जिलेभर में 10 से 15 हजार लोग सिलिकोसिस से पीड़ित हो सकते हैं। उनके इलाज के लिए जिला अस्पताल में पूर्व में पदस्थ रहे डॉ. सुधाकर पांडेय को मलेशिया में प्रशिक्षण दिलाया गया था, लेकिन राजनीतिक हस्ताक्षेप के चलते उनका स्थानांतरण कर दिया गया और मरीजों को भगवान भरोसे छोड़ दिया गया।
राज्य सरकार द्वार सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा देकर कहा गया था कि सिलिकोसिस पीड़ित मरीजों को सभी सुविधाओं का लाभ दिया जाता है। इसकी जांच करने के लिये 23 मार्च 2017 को सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर फारमर डायरेक्टर नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एक्यूपेशनल हेल्थ डॉ. हबील उल्ला शैयद, डिप्टी डायरेक्टर लेबर डिपार्टमेंट एमपी गवर्नमेंट नमिता तिवारी, डॉ. साधू और पत्थर खदान मजदूर संघ के जिलाध्यक्ष यूसुफ बेग को टीम में शामिल किया गया था।
जिले में मनरेगा स्कीम नाकाम साबित हो रही है। मजदूरों को समय पर मजदूरी का भुगतान नहीं मिलने के कारण उनका इससे मोहभंग हो गया है। यहां हर साल सैकड़ों लोग पलायन कर रहे हैं। गांव के लोग मनरेगा के तहत मजदूरी करने से डरने लगे हैं। लोगों का 8 करोड़ से भी अधिक का भुगतान बकाया है। जिले में रोजगार की स्थिति अच्छी नहीं होने के कारण युवा वर्ग के लोग सिलिकोसिस से पीडि़त हो रहे हैं वहीं दूसरी ओर महिलाएं एनीमिक और बड़ी संख्या में बच्चे कुपोषित हैं।