Chitrakoot Results: चित्रकूट उपचुनाव में कांग्रेस की 14133 वोटों से बड़ी जीत, क्यों जीती कांग्रेस ?
भाजपा प्रत्याशी शंकर दयाल त्रिपाठी को 14133 मतों से हार का सामना करना पड़ा है। कांग्रेस प्रत्याशी नीलांशु चतुर्वेदी को कुल 66810 मत मिले।

सतना. सियासी प्रतिष्ठा का विषय बनी चित्रकूट सीट पर सत्ताधारी दल भाजपा को करारी हार का सामना करना पड़ा है। भाजपा प्रत्याशी शंकर दयाल त्रिपाठी को 14133 मतों से हार का सामना करना पड़ा है। कांग्रेस प्रत्याशी नीलांशु चतुर्वेदी को कुल 66810 मत मिले। जबकि भाजपा के शंकर दयाल को 52477 मत मिले। कांग्रेस की परंपरागत सीट पर कब्जा जमाने के लिए सत्ताधारी दल ने पूरी ताकत झोंक दी थी। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान सहित आधा दर्जन मंत्रियों ने मोर्चा संभाला था।
चित्रकूट उपचुनाव के लिए रविवार को की गई मतगणना में अनुमान सही साबित हुए। कांग्रेस प्रत्याशी नीलांशु चतुर्वेदी ने भाजपा के शंकरदयाल त्रिपाठी को 14133 मतों के बड़े अंतर से पराजित किया। सुबह 8 बजे से शुरू हुई मतगणना में डाक मत पत्रों की संख्या शून्य रही। उसके बाद ईवीएम के मतों की गणना शुरू हुई। पहले चक्र में भाजपा कांग्रेस से 528 मतों से आगे रही। उसके बाद पिछड़ती गई। मतगणना के अंतिम परिणाम आने पर कांग्रेस प्रत्याशी को 14133 मतों से विजयी घोषित किया गया। मतों की गणना के दौरान तुर्रा के मतदान केंद्र पर सभी की नजर रही। यहां चुनाव के दौरान मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने आदिवासी लालमन गोंड़ के यहां एक रात आलीशान सुविधाओं के बीच गुजारी थी। लेकिन, जाते ही सारी सुविधाएं वापस कर ली गईं। इसके विपरीत परिणाम आए। तुर्रा में कांग्रेस को 413 और भाजपा को 203 वोट मिले।
उपचुनाव के दौरान मतदाताओं और सियासी कार्यकर्ताओं के बीच से आ रही जानकारियों में ऐसे ही परिणाम अपेक्षित थे। ज्यादातर विश्लेषकों ने माना था कि परिस्थितियां भाजपा के विपरीत हैं। कांग्रेस का अंडर करंट था। भाजपा में शुरुआती दौर से ही हालात कुछ ठीक नहीं थे। इधर, मतगणना के ५वें चक्र के बाद से ही माना जाने लगा था कि कांग्रेस बड़ी जीत की ओर है। उसे हर चक्र में बढ़त मिलती गई। जैसे-जैसे मतों का अंतर बढ़ता गया कांग्रेस का उत्साह भी बढ़ा। जबकि, कल तक जीत का दावा करने वाले भाजपा नेता मतगणना परिसर से गायब रहे। पार्टी कार्यालय में सन्नाटा पसर गया। कांग्रेसी खेमे में अर्से बाद जबरदस्त उत्साह देखा गया। कार्यकर्ता नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह के आने का इंतजार करते रहे। चित्रकूट में नीलांशु चतुर्वेदी को बधाई देने वालों का तांता लगा रहा। जबकि, भाजपा नेता हार के कारणों पर सफाई देते नजर आए। हमेशा की तरह रटारटाया जवाब रहा कि हार के कारणों का मंथन करेंगे। जनता का फैसला शिरोधार्य है। कांग्रेस ने भी इसे सच्चाई और जनता की जीत बताकर आभार जताया।
निर्दलीय नहीं बचा सके जमानत
चित्रकूट विस उपचुनाव में कुल पड़े 1,26,203 मतों में से निर्दलीय प्रत्याशियों में कोई भी अपनी जमानत नहीं बचा पाया। महेश साहू को 1045, अवध बिहारी मिश्रा को 396, दिनेश कुशवाहा को 398, देवमन सिंह को 1010, प्रभात कुमारी सिंह को 837, महेन्द्र कुमार मिश्रा 209, रजा हुसैन 233, राधा 318, रितेश त्रिपाठी 1137, शिववरण को 1160 मत मिले।
चित्रकूट उपचुनाव में जनता के निर्णय को शिरोधार्य करता हूँ। जनमत ही लोकतंत्र का असली आधार है। जनता के सहयोग के लिए आभार व्यक्त करता हूँ। चित्रकूट के विकास में किसी तरह की कमी नहीं होगी। प्रदेश के कोने-कोने का विकास ही मेरा परम ध्येय है।
— ShivrajSingh Chouhan (@ChouhanShivraj) November 12, 2017
कांग्रेस जीत के पांच कारण
टिकट से टकराहट नहीं
कांगे्रस ने टिकट घोषित करने में देरी की, अंतिम समय तक भाजपा प्रत्याशी के घोषणा का इंतजार करती रही। लेकिन, जब टिकट घोषित हुआ, तब तक अन्य दावेदारों को मनाया जा चुका था। स्थानीय स्तर पर टकराहट पैदा नहीं हुई। वहीं स्थानीय रणनीतिकारों के सलाह से टिकट दी गई, जो कांग्रेस के लिए लाभदायक साबित हुई।
एकता में दिखी ताकत
विगत चुनावी हार को लेकर कांग्रेस नेताओं में गुटबाजी को बड़ा कारण माना जाता रहा। चित्रकूट उपचुनाव में शुरू से स्थानीय नेता एक दिखने का प्रयास करते नजर आए। कभी-कभार विवाद की स्थिति सामने आई, तो शीर्ष नेतृत्व ने दखल दिया और समय रहते मामले को सुलझा लिया गया। गुटबाजी को एकता में बदल दिया गया और जो जीत का बड़ा कारण बनी।
प्रत्याशी की अपनी छवि
प्रत्याशी नीलांशु चतुर्वेदी की चित्रकूट क्षेत्र में अपनी विशेष पहचान है। पूर्व में चित्रकूट नपा अध्यक्ष भी रह चुके हैं, लिहाजा पूरे विधानसभा क्षेत्र में उनकी पहचान है। साथी वे तैयारी भी कर रहे थे, इस तरह खुद के समर्थक व पार्टी के मूल वोट व ब्राम्हण मतदाताओं में बंटवारा जीत का समीकरण बन गया।
सहानुभूति का लाभ
दिवंगत विधायक प्रेम सिंह बरौंधा कांग्रेस से थे। उनकी क्षेत्र में जन नेता के रूप में पहचान थी। उनके निधन की सहानुभूति का लाभ नीलांशु चतुर्वेदी को मिला। आम मतदाता शुरू में कहते भी देखे गए कि नीलांशु उनके उत्तराधिकारी हैं। वहीं कांग्रेस ने इस आधार पर प्रचार भी किया था, ताकि सहानुभूति को भुनाया जा सके और सफल रही।
युवाओं ने दिया साथ
कांग्रेस प्रत्याशी नीलांशु चतुर्वेदी युवा है और युवाओं में उनकी अच्छी पैठ भी है। भाजपा ने इस समीकरण को भांप भी लिया था, लिहाजा भाजयुमो के प्रदेशाध्यक्ष अभिलाष पांडेय को मैदान में उतारा था। लेकिन, वे भी बड़े पैमाने पर युवाओं को साधने में सफल नहीं हो सके। जबकि, नीलांशु व्यक्तिगत संबंध के आधार पर सफल हो गए।
Congratulations to all @INCMP workers, leaders, supporters and Sh. #NilanshuChaturvedi for winning #ChitrakootBypoll!
— Ashok Gehlot (@ashokgehlot51) November 12, 2017
The #bypoll result in #MadhyaPradesh shows that the people are disillusioned with the ruling BJP. #Chitrakoot #CongressWinsInMp
भाजपा हार के पांच कारण
पहचान का संकट
भाजपा ने क्षेत्र के बड़े नाम की अपेक्षा संगठन पर ज्यादा जोर दिया और आम कार्यकर्ता का टिकट दी। जिससे पार्टी कार्यकर्ताओं में संदेश अच्छा गया, लेकिन मतदाताओं के सामन स्थिति उल्टी हो गई। वे टिकट मिलने से पूर्व प्रत्याशी को जानते तक नहीं थे। देवरा व आस-पास के क्षेत्र को छोड़ दिया जाए, तो सम्पूर्ण क्षेत्र में शंकर दयाल त्रिपाठी की विशेष पहचान नहीं थी।
असंतोष थम न सका
शंकर दयाल त्रिपाठी को टिकट मिलने के साथ ही भाजपा में असंतोष की स्थिति बन गई। पूर्व विधायक सुरेंद्र सिंह गहरवार, सुभाष शर्मा डोली व पूर्व एसडीओपी पन्नालाल अवस्थी सहित अन्य में नाराजगी देखने को मिली। वहीं पूर्व विधायक गहरवार अंतिम समय तक नाराज दिखे। माना गया कि असंतुष्टों के समर्थक नुकसान पहुंचाएंगे। ये देखने को भी मिला।
अपने ही सर्वे को नकारा
भाजपा ने उपचुनाव को लेकर एक सर्वे कराया था। जिसमें ये बात स्पष्ट हो चुकी थी कि भाजपा के लिए प्रतिकूल स्थिति है। उसके बावजूद स्थानीय नेताओं ने हकीकत को नकारते रहे, वे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह की छवि के बल पर चुनाव जीतने की उम्मीद लगाए रहे। लेकिन, ऐसा हुआ नहीं, जबकि शीर्ष नेता मोर्चा संभाले रहे।
मैहर का दाव नहीं आया काम
भाजपा ने मैहर उपचुनाव में मिनी स्मार्ट सिटी व गरीबी रेखा कार्ड सहित कई दावे किए। लेकिन, वादों को पूरा नहीं कर पाई। चित्रकूट उपचुनाव के शुरूआती दौर में भी ऐसी कोशिश की गई। वहीं कांग्रेस ने तर्क संगत ढंग से इस प्रयास पर हमला बोला और भाजपा को मुहं की खानी पड़ी।
प्रदेश नेताओं पर निर्भरता
स्थानीय नेताओं के बल पर चुनाव नहीं लड़ा गया। बल्किा, पूरा चुनाव प्रदेश नेतृत्व के भरोसे था। वहीं स्थानीय रणनीति वो नेता तय कर रहे थे, जिनकी छवि खुद खराब है, फ्लोर मैनेजर भी सबको साधने में असफल रहे। खनिज मंत्री राजेंद्र शुक्ला की छवि सतना जिले में नाकारात्मक है, सांसद गणेश सिंह स्वयं लोकसभा में काफी कम वोट पाए थे। अन्य रणनीतिकारों का क्षेत्र में वजूद ही नहीं है।
Congratulations to @INCMP for for winning #ChitrakootBypoll, Result shows that not only people of Gujarat but also people of Madhya Pradesh are fed up of BJP & are just waiting to vote them out at any given opportunity! #राम_की_नगरी_में_कांग्रेस#Chitrakoot https://t.co/pARSZQFzjb
— Bharat Solanki (@BharatSolankee) November 12, 2017
चित्रकूट उपचुनाव के नतीजे राजनीतिक बदलाव के संकेत हैं । यह कांग्रेस कार्यकर्ताओं के अथक प्रयास का परिणाम है ।#राम_की_नगरी_में_कांग्रेस
— Office Of Ajay Singh (@ASinghINC) November 12, 2017
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