जबकि इससे पूर्व संत, महंत अक्सर राजनीति में भी सक्रियता दिखाते थे। प्रत्याशी के प्रचार के दौरान भी दिखते थे। लिहाजा, अंतिम समय में राजनीतिक दल व प्रत्याशी उन पर नजर रखे हुए हैं। उनकी गतिविधि व उनसे मिलने वालों की जानकारी तक रखी जाती है। इसके पीछे डर है कि अंतिम समय में कोई संत कुछ बयानबाजी न करे।
चित्रकूट की मंदाकिनी नदी की सफाई को लेकर संत समाज ने आंदोलन छेड़ा था। सतना के प्रशासनिक अधिकारी सुनने को तैयार नहीं थे। तब संत समाज ने घोषणा कर दी थी कि इसका असर चित्रकूट विधानसभा उपचुनाव में होगा। इसके बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री चित्रकूट पहुंचे और संतों की बातों को सुनते हुए एक झटके में जिला प्रशासन के अधिकारियों को दिशा-निर्देश दिए।
जगद्गुरु रामभद्राचार्य भाजपा के पक्ष में खुलेआम सभाओं में चुनाव प्रचार किया करते थे। इस बार उन्होंने भी पूरी तरह से चुप्पी साध रखी है। पिछले चुनाव के दौरान बाबा रामदेव ने चित्रकूट जिले में योग शिविर लगाया था। उस शिविर में भी कई संत शामिल हुए थे। इसी तरह से धर्मनगरी के कई अन्य संत भी राजनीतिक दलों के मंच में दिखाई देते थे, लेकिन इस बार दूरी बनाए रखे हैं।