विंध्य की सतना, रीवा और सीधी व बुंदेलखंड की खजुराहो लोकसभा सीट पर जहां से भी समाचार मिल रहा था केवल यही कि मोदी की सुनामी में ढह रहीं थी गढ़ी, किले और बड़े-बड़े राजनीतिक घराने। न कहीं जाति का बंधन नजर आ रहा था और न ही दिखाई दे रहा था वह समर्पण जो पीढिय़ों से किसी दल विशेष के लिए रहता था। हां, यदि कहीं कुछ था तो मोदी का नाम और कमल निशान।
हालातों का अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि विंध्य का प्रवेशद्वार कहे जाने वाले सतना में तीन बार के सांसद गणेश सिंह को हराने के लिए कांग्रेसी ही नहीं अपनों ने भी पूरे घोड़े छोड़ दिए थे। जहां राजाराम ने ब्राह्मणों को एकजुट करने का दावा किया था तो मुस्लिमों का सहारा ले लिया था। भाजपा प्रत्याशी के प्रमुख सलाहकारों को भी पाला बदल करा लिया या फिर घर शांत होकर बैठा दिया गया था। जनता है सब जानती है, कांग्रेस की करनी की सजा उसने अपने मत के अधिकार का प्रयोग कर दे दी।
हम बात करें प्रदेश की हॉट सीट में शामिल सीधी की तो यहां के हालात भी भाजपा प्रत्याशी के लिए सतना से कुछ अलग नहीं थे। उनकी कार्यप्रणाली से जनता खफा थी तो सामने थे कांग्रेस की तरफ से राजघराने के कुलदीपक अजय सिंह। क्षेत्र में पकड़, राजनीतिक कौशल, सूबे में सत्ता का साथ जैसी तमाम बातें इनके लिए जीत में पूरे चुनाव कदमताल करती नजर आ रही थीं। चुनाव के दौरान वह भी अन्य नेताओं की तरह भटक गए और भाजपा प्रत्याशी की तुलना ‘मालÓ से कर दी।
नतीजा इवीएम से बाहर आया। चौंकाने वाली बात यह कि एक अर्से से कांग्रेस और राव खानदान का पुस्तैनी वोट बैंक माने जाने वाला आदिवासी भी छिटककर भाजपा की गोद में जा बैठा। केवल आदिवासी ही क्यों, अजय सिंह की अपनी विधानसभा चुरहट में भी उन्हें जीतने के लाले पड़ गए तो विंध्य से एकमात्र मंत्री कमलेश्वर पटेल की विधानसभा में पार्टी को हार का स्वाद चखना पड़ा। रीति पाठक इस बार पिछली बार की तुलना में तीन गुणा अधिक वोटों से जीत गईं।
रही बात रीवा की तो यह सीट कांग्रेसी अपने खाते में मानकर चल रहे थे। कारण भी स्पष्ट था कि मुख्यमंत्री कमलनाथ की सीधी निगाह, कांग्रेसियों की एकजुटता और स्वयं प्रत्याशी सिद्धार्थ तिवारी परिवार की जनता में मजबूत पकड़। इसी के साथ भाजपा प्रत्याशी जनार्दन मिश्रा का विकास के प्रति पांच सालों में उदासीनतापूर्ण रवैया। लेकिन किसी को पता नहीं था कि नरेंद्र मोदी का करंट घर—घर में किस गति से प्रवाहमान हो रहा है।
गुरुवार को आए नतीजों में वोटों की ऐसी बरसात हुई कि प्रतिपक्षी छोड़ो पार्टी के लोगों को भी सहज विश्वास नहीं हो रहा था कि जनता ने इतने मत कैसे दे दिए। शहर की सड़कों पर पसरा सन्नाटा, लंबी लीड के बाद भी गणेश सिंह के घर पर चंद चुनिदा लोगों का एकत्र होना जैसे इस बात की चुगली कर रहा था कि सब मोदी की माया है। हालांकि गणेश सिंह भी स्वीकारते हैं कि यह जीत मोदी की है।