बता दें कि, 29 मार्च 2013 को मोरवा थाना क्षेत्र के जगमोरवा निवासी विमल प्रसाद बसोर उर्फ मझिला (7) का मासूम घूमते-घूमते अचानक से शक्तिपुंज एक्सप्रेस में बैठकर सो गया। जब आंख खुली तो उसने अपने आप को किसी अनजान स्टेशन पर पाया। मासूम बालक समझ ही नहीं पाया कि वह कहां पहुंच गया है और वह करे भी तो क्या करे। इसलिए वह ट्रेन बदल-बदल कर पंजाब के फिरोजपुर पहुंच गया। जहां कुछ दिन तक फुटपाथ में मांग कर खाने के बाद किसी सिख परिवार ने उसे अपने यहां काम दे दिया।
करीब डेढ़ वर्षों तक फिरोजपुर में ही काम करने के बाद उसने दोबारा घर ढूंढने की सोची। इस बार पुन: ट्रेन पकड़ कर वह फिरोजपुर से लखनऊ आ गया। घर का पता याद नहीं होने के कारण वह लखनऊ में ही काम तलाश कर किसी तरह अपना गुजर बसर करता रहा। इस बीच उसके दिमाग से घर की यादें खोती जा रही थी। इतने सालों में मझिला के मां बाप ने अब बेटे से मिलने की आस लगभग छोड़़ दी थी।
थाना पुलिस ने पत्रिका को बताया कि इस मामले में थाना मोरवा में दर्ज गुमशुदा इंसान 15/13 की जांच का जिम्मा निरीक्षक नरेंद्र सिंह रघुवंशी द्वारा उप निरीक्षक एमडी आर्य को सौंपा गया। उप निरीक्षक आर्य परिवार से इस विषय में पूछताछ कर ही रहे थे कि तभी किसी चमत्कार की तरह लखनऊ से फोन आया की मझिला मिल गया है।
दरअसल लखनऊ में रह रही मझिला की मौसी ने पत्रिका को बताया कि एक दिन उसे देखकर पहचान लिया। लेकिन इतने वर्ष बीत जाने के बाद अब 13 साल की उम्र में बालक को कुछ याद नहीं था। जिस पर बचपन की तस्वीरों को दिखा कर उसकी धुंधली यादों को ताजा किया गया। अपने मां-बाप को पहंचानने के बाद मासूम ने अपने बिछड़े परिवार का दामन थामा, तो उस समय मौजूद हर किसी की आंखों से आंसू छलक गए।