हाउस वाइफ आकंक्षा का कहना है कि बिना महावर दुल्हन का श्रृंगार अधूरा माना जाता है। आज कल की शादियों में दुल्हन के पैरों पर कई प्रकार की डिजाइन से महावर लगाया जाता है। कई जगह ऐसी भी मान्यता है कि महावर लगाने से पहले किसी सुहागन महिला या फिर अपनी सास या ननद के पैरों में महावर लगाया जाता है। अगर घर में कोई नही हो तो अपने घर के दरवाजे के बीच में स्वास्तिक का चिन्ह बनाकर महावर लगाना चाहिए। वैसे तो बाजार में कई प्रकार के महावर मिलते है। लेकिन पान के पत्ते या लाक से बना महावर शुद्ध माना जाता है। बघेलखंड में दुल्हन के पैर में महावर लगाने के साथ साथ दूल्हे के पैरों में भी लगाने की प्रथा होती है। विज्ञान कहता है कि पैरों में महावर लगाने के बाद एडिय़ों को ठंडक मिलती है जिससे तनाव कम होता है।
निरूपमा त्रिपाठी का कहना है कि, अंगशुची, मंजन, वसन, मांग, महावर, केश। तिलक भाल, तिल चिबुक में, भूषण मेंहदी वेश।। मिस्सी काजल अरगजा, वीरी और सुगंध। अर्थात अंगों में उबटन लगाना, स्नान करना, स्वच्छ वस्त्र धारण करना, मांग भरना, महावर लगाना, बाल संवारना, तिलक लगाना, ठोढी़ पर तिल बनाना, आभूषण धारण करना, मेंहदी रचाना, दांतों में मिस्सी, आंखों में काजल लगाना, सुगांधित द्रव्यों का प्रयोग, पान खाना, माला पहनना, नीला कमल धारण करना सौभाग्य स्त्रियों के लिए शास्त्रों में बताया गया है। हिन्दू धर्म से छोटे से लेकर बड़े सभी प्रकार के शुभ कार्य महावर के बिना शुरू नहीं होते है।