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8 राज्यों को हरी सब्जियां खिलाने वाले मैहर में आज तक नहीं बनी एक सब्जी मंडी, हर दिन 585 मीट्रिक टन का है कारोबार

locationसतनाPublished: Nov 15, 2019 06:19:07 pm

Submitted by:

suresh mishra

ऐसा है अन्नदाता का हाल: देश का सबसे अच्छा करैला उगाने वाले किसानों की कहानी करैले से भी कड़़वी- मैहर को फूड प्रोसेसिंग यूनिट मिले तो बने बात- सड़क किनारे बने झोपड़ों से हर दिन 585 मीट्रिक टन सब्जियों का कारोबार

Maihar Agriculture News: Food processing unit demand in Maihar

Maihar Agriculture News: Food processing unit demand in Maihar

सतना। हर रोज 585 मीट्रिक टन सब्जियों का उत्पादन कर देश के आठ राज्यों की थाली में सब्जियां परोसने वाला सतना दो दशक से सरकारों की उपेक्षा का दंश झेल रहा है। प्रदेश में ए ग्रेड करेले के सबसे बड़े उत्पादक जिले के मैहर ब्लॉक की स्थिति यह है कि यहां फूड प्रोसेसिंग इकाई खुलना तो दूर, प्रशासन एक अदद सब्जी मंडी तक नहीं खोल पाया। प्रतिवर्ष दो लाख मीट्रिक टन सब्जियों का उत्पादन करने वाले जिले के किसान सड़क किनारे अढ़तियों को मनमानी दाम पर अपनी उपज बेचने को मजबूर हैं। ए ग्रेड करैला एवं टमाटर उत्पादन के लिए देशभर में प्रसिद्ध मैहर क्षेत्र के किसान प्रतिदिन लाखों रुपए की सब्जी पैदा करते हैं। लेकिन, क्षेत्र में सब्जी मंडी न होने के कारण उन्हें उनकी उपज का उचित दाम नहीं मिल पाता। सब्जी का पूरा कारोबार अढ़तियों के कब्जे में है।
अढ़तिया किसान एवं व्यापारियों से कमीशन लेकर मौज कर रहे हैं और प्रशासनिक अनदेखी के चलते क्षेत्र के किसान प्रतिदिन लाखों रुपए की सब्जी बेचने के बाद भी आर्थिक तंगी से जूझ रहे हैं। मैहर क्षेत्र के सब्जी उत्पादक किसानों की आर्थिक स्थिति का आकलन करने के लिए पत्रिका टीम ने बेरमा की करैला मंडी एवं खेतों में जाकर कृषकों से चर्चा की तो करैला की खेती की जो कहानी उभर कर सामने आई वह करैले से भी कड़वी निकली। पेश है सुखेंद्र मिश्रा की रिपोर्ट-
भरपूर राजस्व फिर भी मंडी बोर्ड उदासीन
बेरमा और इटमा मंडी से सालभर सब्जियों की आपूर्ति दूसरे राज्यों को होती है। मंडी में प्रतिदिन लगभग 250 से 300 टन सब्जियों का व्यापार होता है। यदि क्षेत्र में अधिसूचित मंडी बनाकर मंडी बोर्ड किसानों की उपज की डाक कराए तो उसे अकेले बेरमा मंडी से प्रति माह 25 लाख रुपए का शुल्क मिल सकता है। इसके बावजूद मंडी बोर्ड प्रदेश के सबसे बड़े सब्जी उत्पादन क्षेत्र में सब्जी मंडी बनाने को लेकर उदासीन है। सरकार की उदासीनता का लाभ सीधे अढ़तियों को मिल रहा। वे किसानों की उपज औने-पौने दाम पर व्यापारियों को बेच जमकर कमीशन काट रहे हैं। उचित दाम न मिलने से सब्जी उत्पादक किसान कर्ज में डूबते जा रहे हैं।
लुट रहा किसान, बिचौलिए मालामाल
बेरमा मंडी में प्रशासन का किसी प्रकार का नियंत्रण नहीं होने से मंडी में बिचौलियों का राज है। प्रदेश की मंडियों में आढ़त प्रथा बंद हो चुकी है, लेकिन बेरमा की मंडी आज भी अढ़तियों पर निर्भर है। यहां पर किसानों की उपज की डाक कराने से लेकर भुगतान तक का पूरा कार्य अढ़तिया ही देखते हैं। इसके बदले वे किसानों से प्रति क्विंटल 20 रुपए तथा बाहर से आए व्यापारियों से 40 रुपए यानी प्रति क्विंटल 60 रुपए आढ़त वसूलते हैं। मंडी में अढ़तियों के बिना किसी किसान की उपज नहीं बिक सकती। इसलिए किसान आढ़़त देने को मजबूर हैं। एक किसान ने बताया, एक बोरा करैला बेचने से जितना मुनाफा किसान को नहीं होता, उससे अधिक अढ़तिया कमीशन वसूल कर कमा लेते हैं। यह प्रथा बंद हो तो किसानों को राहत मिले।
किसान बोले-खेती तो अच्छी पर सरकारी मदद नहीं मिलती
मंडी में बैठे किसानों ने बताया कि खेती तो अच्छी होती है पर सरकार से किसी प्रकार की मदद नहीं मिलती। क्षेत्र में सब्जी मंडी न होने से उपज को बेचना और उचित दाम मिलना, आज भी बड़ी चुनौती है। उपज का सही दाम नहीं मिलने से कई बार किसानों को मेहनत करने के बाद भी लागत निकालना मुश्किल हो जाता है। किसान अपनी उपज बेचने के लिए अढ़तियों पर निर्भर हैं। बाहर से आने वाले व्यापारी मंडी में अधिक उपज देखकर दाम गिरा देते हैं। किसान उपज बेचने का दूसरा विकल्प न होने से कम दाम पर भी बिचौलियों को फसल बेचने को मजबूर हैं।
यह हो… खुले फूड पार्क तो अन्नदाता के आएं अच्छे दिन
विंध्य की औद्योगिक राजधानी सतना में ए ग्रेड गुणवत्ता के करैले, टमाटर एवं प्याज की खेती बहुतायत मात्रा में होती है। यहां की मिट्टी में किसी प्रकार की सब्जी लगाई जा सकती है। टमस कछार में पैदा होने वाले तरबूज देशभर की मंडियों में अपनी मिठास घोल रहे हैं। जिले में सुगंधित फूल एवं गुलाब की खेती भी बहुतायत मात्रा में हो रही है। लेकिन, भरपूर उत्पादन होने के बाद भी क्षेत्र में सब्जी एवं फूल मंडी न होने से किसानों को उनकी उपज का उचित दाम नहीं मिल पा रहा। सब्जी उत्पादन में अव्वल मैहर में फूडपार्क खोलने की मांग डेढ़ दशक से जिले के किसान कर रहे हैं, लेकिन प्रशासनिक एवं जनप्रतिनिधियों की उपेक्षा के चलते आज तक फूड पार्क की परिकल्पना साकार नहीं हो सकी। उद्यानिकी विभाग के अधिकारियों का कहना है कि जिले में फूड पार्क खुलने से कई कृषि उत्पाद प्रोसेस इकाइयां लगेंगी। इससे किसानों को उनकी उपज का उचित दाम मिलेगा और क्षेत्र में रोजगार के अवसर पैदा होने से आसपास के जिलों के किसान भी लाभान्वित होंगे।
सिर्फ चुनाव के समय आते हैं जनप्रतिनिधि
बेरमा गांव में सड़क किनारे एक कृषक परिवार के पास रुके और खेती के बारे में पूछा तो महिला बोली-सब्जी की खेती से किसी प्रकार परिवार पल रहा है। भाव अच्छे मिल गए तो ठीक, कभी-कभी तो मजदूरी तक नहीं निकलती। रोजगार न मिलने से खेती करना मजबूरी है। खेती की लागत हर साल बढ़ रही है। हर साल 15 हजार रुपए का सिर्फ बीज खरीदते हैं। चुनाव के समय नेता कहते हैं कि बीज दिला देंगे, खाद दिला देंगे। लेकिन, आज तक एक अदद मंडी नहीं बनवा सके। सांसद-विधायकों को सिर्फ चुनाव के समय ही सब्जी किसानों की याद आती है।

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