मेरे सपने पूरे करने के लिए मां ने अपने शौक को कर दिया किनारे
मेरे जीवन में मां का जो रोल था उसका कर्ज मैं कभी नहीं चुका सकता। यह कहना है प्रेम विहार निवाशी सीए अभिषेक श्रीवास्तव का। वे कहते हैं जब मैं 9 साल का था, तब मेरे पिता मिथलेश श्रीवास्तव का देहांत हो गया। 2002 में तब मैं चौथी क्लास में पढ़ता था, पिता जी के सारे फ ण्ड के पैसे पहले से ही ख़त्म हो चुके थे । रिश्तदारों का भी कोई सहारा नई था। जब पिता थे तब मां पूर्व पार्षद राधा श्रीवास्तव ने केवल घर का ही काम देखती थी, लेकिन अब सारी जिम्मेदारी उनके ऊपर आ गयी थी। हमारी पढाई और बाकी घर खर्च । पेंशन 8 से 10 हजार थी और हम तीन भाई बहन । पापा के बाद पहली दिवाली में हमारे पास 200 रुपए नई थे क्योंकि 18 साल पहले 200 की कीमत होती थी तब किसी पडोसी से उधार मांगे थे । कई किराए के घर बदले। पापा के एक्सीडेंट से इंश्योरेंस कंपनी से कुछ क्लेम मिल गया थाए जिससे थोड़ी राहत हुई । इसके लिए भी मां ने दिन रात चक्कर काटे । कोट कचेहरी किया। किसी तरह लोन लेकर एक छोटा सा घर बनाया । दीदी की शादी भी मां ने कराई। 12 वी के बाद सीए करने का सोचा। पर इंदौर जैसे शहर में पांच हजार कम से कम था।और मां की पेंशन ही तेरह हजार की करीब थी।
फि र मां ने नाहटा अकेडमी के बारे में बताया लगाया। और वहां एडमिशन दिलाया। जहां मुझे फ ीस में डिस्काउंट भी मिल गया। मैंने तब ही ठान लिया था की इन पैसे को व्यर्थ नहीं जाने दूंगा। मैंने पहले दिन 2011 जून से ही पढ़ाई शुरू कर दी । मां मुझे पैसे भेजती थी और घर का पूरा खर्च भी कैसे कर संभालती रहीं। मां के आशिर्वाद से मैं सारे एग्जाम एक- एक बार में निकलता गया। फ ाइनल में दोनों ग्रुप में टोटल पांच एटेम्पट लग गए। जब मैं फेल हुआ । तब मां भी रोती थी पर मुझे जताती नई थी । मुझे हौसला भी देती थी। उन्हीं से मुझे प्रेरणा मिलती थी । और 2018 नवम्बर के रिजल्ट में मैं सीए बन गया। उन्होंने अपने सारे शौक सब किनारे कर दिए मेरे सपने पूरे करने में । आज मैं जो भी हूं और आगे भी जो भी बनूंगा उनकी ही वजह से ही हंू। क्योंकि घर की नींव मजबूत नहीं बने तो उसकी मंजिले मजबूत नहीं बनेगी। थैंक यू मां। हैप्पी मदर्स डे ।
हिम्मत, सहायक, सलाहकार बनीं मेरी प्यारी मां
साल के बाद आया है यह दिन, करने लगे हैं सब याद पल छिन, घुटनों से रेंगते-रेंगते, कब पैरों पर खड़ी हुई एतेरी ममता की छांव मेंएजाने कब बड़ी हुई, काला टीका दूध मलाई आज भी सब कुछ वैसा है, मैं ही मैं हूं हर जगह, मां प्यार ये तेरा कैसा है। कुछ इन्ही पंक्तियों के साथ कुकिंग एक्सपर्ट मास्टर शेफ माधुरी सुखदानी ने अपनी मां की अहिमियत को पत्रिका से शेयर की। वे कहती हैं कि मां वह हैं जो हमको इतना प्यार करती है कि कभी कभी हम उस प्यार को समझ नहीं पाते। जिसने हमेशा एहसास दिलाया की हम बहुत अच्छे है। जिसकी ख़ुशी मेरी ख़ुशी से जिसके दुख मेरे दुख से। जिसके बिना हम जी नहीं सकते मां सबकुछ हैं। मां में बचपन से ही पिता का सत्कारए रिश्तो को प्यार से जोडऩा सिखाया । मेरे हर सपनो को पंख मेरे मां ने दिए । मुझे हमेशा यही इंस्पिरेशन दिया की कर हर मैदान फतेह । बचपन से एक स्टूडेंट से शेफ और एच आर मैनेजर का सफ र बहुत ही प्यारा था। कुकिंग के सफ र में मेरी पहली गुरु मेरी मां और मेरी स्वर्गीय दादी मां रही । मेरे हर एक्सपेरिमेंट में मेरे साथ खड़ी रही। अपनी प्यारी सी डाट फ टकार से लगातार मुझे न सिर्फ होशियार बनाने की कोशिश की । साथ ही मास्टर शेफ और भी बहुत सारे अवाड्र्स बल्कि जिन्दगी के हर मोड़ पर मेरी हिम्मत, सहायक, सलाहकार बनी कुकिंग में दिलचस्पी मां के हाथ का स्वादिष्ट खाना खाते खाते कब पैशन बन गया। हर जन्म मुझे यही मां मिलें।
मेरे जीवन में मां का जो रोल था उसका कर्ज मैं कभी नहीं चुका सकता। यह कहना है प्रेम विहार निवाशी सीए अभिषेक श्रीवास्तव का। वे कहते हैं जब मैं 9 साल का था, तब मेरे पिता मिथलेश श्रीवास्तव का देहांत हो गया। 2002 में तब मैं चौथी क्लास में पढ़ता था, पिता जी के सारे फ ण्ड के पैसे पहले से ही ख़त्म हो चुके थे । रिश्तदारों का भी कोई सहारा नई था। जब पिता थे तब मां पूर्व पार्षद राधा श्रीवास्तव ने केवल घर का ही काम देखती थी, लेकिन अब सारी जिम्मेदारी उनके ऊपर आ गयी थी। हमारी पढाई और बाकी घर खर्च । पेंशन 8 से 10 हजार थी और हम तीन भाई बहन । पापा के बाद पहली दिवाली में हमारे पास 200 रुपए नई थे क्योंकि 18 साल पहले 200 की कीमत होती थी तब किसी पडोसी से उधार मांगे थे । कई किराए के घर बदले। पापा के एक्सीडेंट से इंश्योरेंस कंपनी से कुछ क्लेम मिल गया थाए जिससे थोड़ी राहत हुई । इसके लिए भी मां ने दिन रात चक्कर काटे । कोट कचेहरी किया। किसी तरह लोन लेकर एक छोटा सा घर बनाया । दीदी की शादी भी मां ने कराई। 12 वी के बाद सीए करने का सोचा। पर इंदौर जैसे शहर में पांच हजार कम से कम था।और मां की पेंशन ही तेरह हजार की करीब थी।
फि र मां ने नाहटा अकेडमी के बारे में बताया लगाया। और वहां एडमिशन दिलाया। जहां मुझे फ ीस में डिस्काउंट भी मिल गया। मैंने तब ही ठान लिया था की इन पैसे को व्यर्थ नहीं जाने दूंगा। मैंने पहले दिन 2011 जून से ही पढ़ाई शुरू कर दी । मां मुझे पैसे भेजती थी और घर का पूरा खर्च भी कैसे कर संभालती रहीं। मां के आशिर्वाद से मैं सारे एग्जाम एक- एक बार में निकलता गया। फ ाइनल में दोनों ग्रुप में टोटल पांच एटेम्पट लग गए। जब मैं फेल हुआ । तब मां भी रोती थी पर मुझे जताती नई थी । मुझे हौसला भी देती थी। उन्हीं से मुझे प्रेरणा मिलती थी । और 2018 नवम्बर के रिजल्ट में मैं सीए बन गया। उन्होंने अपने सारे शौक सब किनारे कर दिए मेरे सपने पूरे करने में । आज मैं जो भी हूं और आगे भी जो भी बनूंगा उनकी ही वजह से ही हंू। क्योंकि घर की नींव मजबूत नहीं बने तो उसकी मंजिले मजबूत नहीं बनेगी। थैंक यू मां। हैप्पी मदर्स डे ।
हिम्मत, सहायक, सलाहकार बनीं मेरी प्यारी मां
साल के बाद आया है यह दिन, करने लगे हैं सब याद पल छिन, घुटनों से रेंगते-रेंगते, कब पैरों पर खड़ी हुई एतेरी ममता की छांव मेंएजाने कब बड़ी हुई, काला टीका दूध मलाई आज भी सब कुछ वैसा है, मैं ही मैं हूं हर जगह, मां प्यार ये तेरा कैसा है। कुछ इन्ही पंक्तियों के साथ कुकिंग एक्सपर्ट मास्टर शेफ माधुरी सुखदानी ने अपनी मां की अहिमियत को पत्रिका से शेयर की। वे कहती हैं कि मां वह हैं जो हमको इतना प्यार करती है कि कभी कभी हम उस प्यार को समझ नहीं पाते। जिसने हमेशा एहसास दिलाया की हम बहुत अच्छे है। जिसकी ख़ुशी मेरी ख़ुशी से जिसके दुख मेरे दुख से। जिसके बिना हम जी नहीं सकते मां सबकुछ हैं। मां में बचपन से ही पिता का सत्कारए रिश्तो को प्यार से जोडऩा सिखाया । मेरे हर सपनो को पंख मेरे मां ने दिए । मुझे हमेशा यही इंस्पिरेशन दिया की कर हर मैदान फतेह । बचपन से एक स्टूडेंट से शेफ और एच आर मैनेजर का सफ र बहुत ही प्यारा था। कुकिंग के सफ र में मेरी पहली गुरु मेरी मां और मेरी स्वर्गीय दादी मां रही । मेरे हर एक्सपेरिमेंट में मेरे साथ खड़ी रही। अपनी प्यारी सी डाट फ टकार से लगातार मुझे न सिर्फ होशियार बनाने की कोशिश की । साथ ही मास्टर शेफ और भी बहुत सारे अवाड्र्स बल्कि जिन्दगी के हर मोड़ पर मेरी हिम्मत, सहायक, सलाहकार बनी कुकिंग में दिलचस्पी मां के हाथ का स्वादिष्ट खाना खाते खाते कब पैशन बन गया। हर जन्म मुझे यही मां मिलें।
आत्मविश्वास से परिपूर्ण किया मां ने
मेरी मां ऐसी है जिन्हें पाकर मैं अपने आपको दुनिया का सबसे सौभाग्यशाली व खुशनसीब बेटा मानता हूं । यह कहना
है भरहुत नगर निवासी श्रृध्दांश अग्रवाल का। वे कहते हैं आज जब मैं हर उस काम में, जिसे मेरी मां ने बचपन से मुझे सिखाया व बताया है । उसमें जब कामयाब होता हूं तो मुझे अपनी मां सीमा अग्रवाल पर गर्व होता है । साथ ही साथ कहीं न कहीं संतोष भी होता है कि मां ने मुझे जो कुछ भी सिखाया है उसे मैंने पूरी तरह से आत्मसात किया है। उनकी सिखाई बातें व सीख मुझे निरंतर अपने लक्ष्य को बिना घबराए, बिना डगमगा, निडर, निर्भय होकर प्राप्त करने को प्रेरित करती रहती है। मां के साथ मेरा कोई विशेष अनुभव मुझे याद नहीं क्योंकि उनके साथ का हर दिन हर पल मुझे कुछ न कुछ सिखा कर एक नया ही अनुभव दे जाता है। जिसकी अमिट-मीठी छाप को मैं संभाल कर रखना चाहता हूं । मुझे याद है चाहे स्पोट्र्स हो स्कूल-कॉलेज के फं क्शन हो, चाहे परीक्षा की कठिन घडिय़ां हो । मेरी मां ने मुझे हमेशा समय पर जगाया। नाश्ता करना व परीक्षा में घबराने पर ढाढस बांधकर भेजना। कभी-कभी तो क्लास और खेल मैदान मैदान के बाहर बैठकर संबल देती थीं। उन्होंने हर कदम में प्रेरित करते हुए मुझे आत्मविश्वास से परिपूर्ण किया , जिसके कारण आज मैं डाक्टर की पढ़ाई कर रहा हूं ।आज जब भी मैं पीछे मुड़कर अपनी मां के साथ की पुरानी यादें याद करता हूं तो अपने को बहुत ही प