रोटी बनाते-बनाते हमंे पढ़ाती थी मां
सतनाPublished: May 12, 2019 01:22:41 pm
मदर्स डे स्पेशल
सतना.कन्या महाविद्यालय की प्राचार्या डॉ. नीलम रिछारिया ने बताया, उनके जीवन में उनकी 65 वर्षीय मां कुमुदनी मिश्रा का अहम रोल है। मां ही बच्चों को गढऩे का काम बाखूबी जानती है। उनकी लगन, निष्ठा और बच्चों के प्रति समर्पण का कोई मोल न है और न हो सकता है। डॉ. नीलम कहती हैं कि उन्हें आज भी याद है कि उनकी मां अधिक श्ििाक्षत नहीं होने के बावजूद किस तरह हमंे पढ़ाने की कोशिश में जुटी रहती थीं। बचपन में जब मां रोटी बनाती तो हम सभी बच्चों को चूल्हे के पास बैठा लेतीं। एक तरफ वह रोटी बनाती तो दूसरी तरफ हम सबको पहाड़े, गिनती, वर्णमाला सिखाती थीं। पहले के समय में काम भी बहुत रहता था पर वह हम सभी को समय देतीं, ताकि हम अच्छे से पढ़ाई कर सकें और कुछ बन सकें। उपान्यास पढऩे का उन्हें शौक रहा। इसलिए वह अच्छे साहित्यकार, लेखकों की उपन्यास पढ़कर हमंे सुनाती थी। हमारी शिक्षा में उनका पूरा सहयोग रहा। उनके सहयोग के बिना यहां तक पहुंच पाना इतना आसान नहीं था। हमारी मां का मुझसे कुछ अधिक ही गहरा रिश्ता है। मेरी परेशानियां को वो मेरे बिना कहे ही पहचान लेती हैं। मां है तो मैं हूं, वो नहीं तो मैं कुछ भी नहीं।