विंध्य प्रदेश के समय शिवानंद श्रीवास्तव विधायक चुने गए। वहीं 1967 व 1972 में कांताबेन पारिख दो बार विधायक रहीं। 1980 व 1985 में करीब दस साल तक लालता प्रसाद खरे विधायक रहे। इन्हें जातीय समीकरण में बांधा जाता, तो चुनाव जीतना तो दूर, जमानत तक नहीं बचा पाते। वहीं 1990 के बाद से देखें, तो जातिगत समीकरण हावी हुए। 1990 व 1993 में बृजेंद्र पाठक दो बार विधायक बने। उसके बाद 1998 में सईद अहमद विधायक चुने गए। फिर 2003 से 2013 तक विधायक शंकर लाल तिवारी हैट्रिक लगा चुके हैं। इस बार भी वे भाजपा के बड़े दावेदारों में हैं।
जनता उतरी मैदान में
मेडिकल कॉलेज सतना की बड़ी मांग थी, डेढ़ दशक तक प्रयास चला। पक्ष-विपक्ष के जनप्रतिनिधि मुद्दे को राजनीतिक लाभ-हानि के नजरिए से देखते रहे। पर जब सतना की आवाम सड़क पर उतर आई, तो स्थिति बदली और मेडिकल कॉलेज की मांग पूरी हुई। ऐसे कई मुद्दे है। जिन्हें पूरा किया जाता है, तो शहर विकास के लिए मील का पत्थर साबित हो सकते हैं।
मेडिकल कॉलेज सतना की बड़ी मांग थी, डेढ़ दशक तक प्रयास चला। पक्ष-विपक्ष के जनप्रतिनिधि मुद्दे को राजनीतिक लाभ-हानि के नजरिए से देखते रहे। पर जब सतना की आवाम सड़क पर उतर आई, तो स्थिति बदली और मेडिकल कॉलेज की मांग पूरी हुई। ऐसे कई मुद्दे है। जिन्हें पूरा किया जाता है, तो शहर विकास के लिए मील का पत्थर साबित हो सकते हैं।
विकास की रफ्तार में रीवा से पिछड़ गया सतना
एक दशक पहले तक सतना व रीवा की तुलना होती थी। अब सतना को रीवा की अपेक्षा विकसित शहर माना जाता रहा, लेकिन वर्तमान परिदृश्य में सतना पिछड़ गया। सतना में विकास के कई प्रोजेक्ट स्वीकृत भी हुए। पर धीमी गति और मॉनीटरिंग में लापरवाही से शहर का विकास उस रफ्तार से आगे नहीं बढ़ पाया।
एक दशक पहले तक सतना व रीवा की तुलना होती थी। अब सतना को रीवा की अपेक्षा विकसित शहर माना जाता रहा, लेकिन वर्तमान परिदृश्य में सतना पिछड़ गया। सतना में विकास के कई प्रोजेक्ट स्वीकृत भी हुए। पर धीमी गति और मॉनीटरिंग में लापरवाही से शहर का विकास उस रफ्तार से आगे नहीं बढ़ पाया।
राजनीति कम हो गया कद
प्रदेश की राजनीति में सतना का विशेष प्रभाव रहा। 1980 और 1985 में जीतने वाले लालता प्रसाद खरे मंत्रिमंडल में शामिल रहे। इसी तरह 1990 व 1993 में विधायक बने बृजेंद्र पाठक मंत्री बने, फिर 1998 में विधायक चुने गए सईद अहमद भी मंत्री रहे। लेकिन, 2003 से हैट्रिक लगाने के बाद भी शंकरलाल तिवारी को मौका नहीं मिला।
प्रदेश की राजनीति में सतना का विशेष प्रभाव रहा। 1980 और 1985 में जीतने वाले लालता प्रसाद खरे मंत्रिमंडल में शामिल रहे। इसी तरह 1990 व 1993 में विधायक बने बृजेंद्र पाठक मंत्री बने, फिर 1998 में विधायक चुने गए सईद अहमद भी मंत्री रहे। लेकिन, 2003 से हैट्रिक लगाने के बाद भी शंकरलाल तिवारी को मौका नहीं मिला।
14 हजार मतदाता बढ़े
वर्ष 2013 की अपेक्षा इस बार करीब सात फीसदी मतदाता संख्या में वृद्धि हुई है। इसमें पहली बार वोट करने वाले मतदाताओं की संख्या करीब 70 फीसदी है, जो चुनाव में प्रभावकारी भूमिका अदा करेंगे। वर्ष 2013 में 216181 मतदाता थे, जो 14219 बढ़ कर वर्ष 2018 में 230400 हो चुके हैं। इसमें पुरुष 121729 व महिला 108661 मतदाता हैं। थर्ड जेंडर के रूप में भी 10 मतदाता है।
वर्ष 2013 की अपेक्षा इस बार करीब सात फीसदी मतदाता संख्या में वृद्धि हुई है। इसमें पहली बार वोट करने वाले मतदाताओं की संख्या करीब 70 फीसदी है, जो चुनाव में प्रभावकारी भूमिका अदा करेंगे। वर्ष 2013 में 216181 मतदाता थे, जो 14219 बढ़ कर वर्ष 2018 में 230400 हो चुके हैं। इसमें पुरुष 121729 व महिला 108661 मतदाता हैं। थर्ड जेंडर के रूप में भी 10 मतदाता है।
महत्वपूर्ण मुद्दे
– शहर में बढ़ता प्रदूषण का स्तर।
– रीवा रोड सहित पूरे शहर में अनियोजित विकास।
– सतना-बेला, सतना-चित्रकूट मार्ग के निर्माण देरी।
– दो सीमेेंट कंपनी व लघु उद्योग होने के बाद भी बेरोजगारी बड़ा मुद्दा।
– हर राजनीतिक निर्णय का व्यापार पर असर।
– स्वास्थ सुविधाओं के विस्तार की मांग। हालांकि मेडिकल कॉलेज स्वीकृत हुआ है।
– एक और सरकारी कॉलेज की मांग।
– नए बस स्टैंड की जरूरत
– शहर का विस्तार, सिकुड़ती जगह।
– शहर में बढ़ता प्रदूषण का स्तर।
– रीवा रोड सहित पूरे शहर में अनियोजित विकास।
– सतना-बेला, सतना-चित्रकूट मार्ग के निर्माण देरी।
– दो सीमेेंट कंपनी व लघु उद्योग होने के बाद भी बेरोजगारी बड़ा मुद्दा।
– हर राजनीतिक निर्णय का व्यापार पर असर।
– स्वास्थ सुविधाओं के विस्तार की मांग। हालांकि मेडिकल कॉलेज स्वीकृत हुआ है।
– एक और सरकारी कॉलेज की मांग।
– नए बस स्टैंड की जरूरत
– शहर का विस्तार, सिकुड़ती जगह।
कब-कौन रहा विधायक
– 1957 विशेश्वर प्रसाद (कांग्रेस) 18.37 गजेंद्र सिंह 14.73
– 1957 शिवानंद श्रीवास्तव (कांग्रेस) 16.82
– 1962 गोविंद नारायण सिंह (कांग्रेस) 46.62 महेंद्र सिंह (एसओपी) 33.61
– 1967 कांताबेन पारिख (कांग्रेस) 46.11 एस सिंह (जनसंघ) 42.22
– 1972 कांताबेन पारिख (कांग्रेस) 56.26 सुखेंद्र सिंह (जनसंघ) 31.25
– 1977 अरुण सिंह (कांग्रेस) 41.83 हुकुम चंद (जेएनपी) 40.59
– 1980 लालता प्रसाद खरे (कांग्रेस) 49.94 मुरलीधर शर्मा (जेएनपी) 17.65
– 1985 लालता प्रसाद खरे (कांग्रेस) 52.72 अरुण सिंह (कांग्रेस) 41.98
– 1990 बृजेंद्र पाठक (भाजपा) 40.29 लालता प्रसाद खरे (कांग्रेस) 32.97
– 1993 बृजेंद्र पाठक (भाजपा) 24.66 सईद अहमद (कांग्रेस) 23.13
– 1998 सईद अहमद (कांग्रेस) 31.60 शंकरलाल तिवारी (निर्द.) 29.31
– 2003 शंकरलाल तिवारी (भाजपा) 42.19 सईद अहमद (कांग्रेस) 22.72
– 2008 शंकरलाल तिवारी (भाजपा) 38.45 सईद अहमद (कांग्रेस) 27.72
– 2013 शंकरलाल तिवारी (भाजपा) 41.59 राजाराम त्रिपाठी (कांग्रेस) 30.23
– 1957 विशेश्वर प्रसाद (कांग्रेस) 18.37 गजेंद्र सिंह 14.73
– 1957 शिवानंद श्रीवास्तव (कांग्रेस) 16.82
– 1962 गोविंद नारायण सिंह (कांग्रेस) 46.62 महेंद्र सिंह (एसओपी) 33.61
– 1967 कांताबेन पारिख (कांग्रेस) 46.11 एस सिंह (जनसंघ) 42.22
– 1972 कांताबेन पारिख (कांग्रेस) 56.26 सुखेंद्र सिंह (जनसंघ) 31.25
– 1977 अरुण सिंह (कांग्रेस) 41.83 हुकुम चंद (जेएनपी) 40.59
– 1980 लालता प्रसाद खरे (कांग्रेस) 49.94 मुरलीधर शर्मा (जेएनपी) 17.65
– 1985 लालता प्रसाद खरे (कांग्रेस) 52.72 अरुण सिंह (कांग्रेस) 41.98
– 1990 बृजेंद्र पाठक (भाजपा) 40.29 लालता प्रसाद खरे (कांग्रेस) 32.97
– 1993 बृजेंद्र पाठक (भाजपा) 24.66 सईद अहमद (कांग्रेस) 23.13
– 1998 सईद अहमद (कांग्रेस) 31.60 शंकरलाल तिवारी (निर्द.) 29.31
– 2003 शंकरलाल तिवारी (भाजपा) 42.19 सईद अहमद (कांग्रेस) 22.72
– 2008 शंकरलाल तिवारी (भाजपा) 38.45 सईद अहमद (कांग्रेस) 27.72
– 2013 शंकरलाल तिवारी (भाजपा) 41.59 राजाराम त्रिपाठी (कांग्रेस) 30.23