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MP Election 2018: सिंगरौली जिले के रहवासियों का दर्द उभरकर सामने आया, कहा- प्रदूषण से बड़ा कोई मुद्दा नहीं

locationसतनाPublished: Nov 09, 2018 06:25:39 pm

Submitted by:

suresh mishra

MP Election 2018: सिंगरौली जिले के रहवासियों का दर्द उभरकर सामने आया, कहा- प्रदूषण से बड़ा कोई मुद्दा नहीं

MP Election 2018: singrauli jile mein pradushan sabse bada mudda

MP Election 2018: singrauli jile mein pradushan sabse bada mudda

राघवेंद्र चतुर्वेदी@सिंगरौली। तीन विधानसभाओं वाले सिंगरौली जिले में प्रदूषण से बड़ा कोई मुद्दा नहीं है। जिले को आठ साल पहले क्रिटिकल पॉल्यूटिंग जोन में शामिल किया गया है। चिमनी से निकलने वाला धुआं, कोयले का राखड़ और बड़े-बड़े ट्रकों से निकलने वाले धुएं से कितना प्रदूषण फैल रहा है? इसका कोई माप नहीं। इसके बाद भी चुनावी मुद्दों के नाम पर इसकी गंभीरता से कोई पार्टी या प्रत्याशी चर्चा तक नहीं करते। किसी के पास कोई विजन प्लान तक नहीं है।
तो क्या सिंगरौली का फेफड़ा लोहे से बना है
जिला अस्पताल सिंगरौली के डॉ. आरबी सिंह ने औद्योगिकीकरण से मानव स्वास्थ्य पर पड़ रहे दुष्प्रभाव को करीब से महसूस किया है। उस हर बदलाव को देखा है जो सिंगरौली को बीमार बना रहा है। वे कहते हैं कि दिल्ली में वाहन सीएनजी से चलाएंगे, प्रदूषण से लोगों के फेफड़े में संक्रमण हो जाएगा। दिल्ली का फेफड़ा कोमल है, तो क्या सिंगरौली का फेफड़ा लोहे से बना है। चिमनी का धुआं, कोयले के पार्टिकल दिनभर वातावरण में रहने के बाद रात में ओस से नीचे आ जाता है।
बारिश में सर्वाधिक बिजली यहां गिरती है
सुबह लोग स्वस्थ्य रहने सड़कों पर निकलते हैं, पसीना बहाते हैं। उन्हें नहीं पता कि इस बीच जो सांस नाक से ले रहे हैं वह दस गुना प्रदूषित हैं। रिहंद का पानी राखड़ से प्रदूषित है। रिलायंस, एस्सार और दूसरी बिजली इकाइयों से निकलने वाली तार के जाल उत्पन्न होने वाली विद्युत तरंगे कार्बन के साथ मिल वातावरण को आयोनाइज्ड कर देती हैं। नतीजा, बारिश में सर्वाधिक बिजली यहां गिरती है। आने वाले समय में यहां कैंसर के मरीज इतने बढ़ेंगे कि कल्पना नहीं कर सकते।
पांच साल से बह रही मौत
रिलायंस के सासन परियोजना इकाई के पीछे रहने वाले चांपा गांव के सवाई लाल व उनके बेटे बताते हैं कि प्रदूषण ने सब कुछ तबाह कर दिया। राखी (पावर हाउस से निकलने वाला राखड़) से पानी पीने लायक नहीं रहा। पुरवाई चलती है तो राखी के कारण सांस लेना मुश्किल हो जाता है। आस-पास गांव के लगभग दो हजार लोग हवा और पानी के प्रदूषण से परेशान हैं। धनामती, फूलमती, रामजनम व दादू राम दूसरे ग्रामीण भी अपने को ढगा सा महसूस कर रहे हैं। इनका कहना है कि रिलायंस ने जमीन अधिग्रहण करते जो बाते कहीं उसमें कुछ भी पूरा नहीं हुआ। सिंगरौली में पांच साल के दौरान औद्योगिक विस्तार ज्यादा हुआ। रिलायंस, एस्सार, जेपी निगरी और हिंडाल्को की इकाइयां यहां स्थापित हुईं। इन इकाइयों से प्रदूषण ज्यादा बढ़ा, तो पर्यावरण सुधार के नाम पर होने वाले प्रयास भी कागजों तक सीमित रहे।
… तो आठ साल में राखड़ के पहाड़ के नीचे दब जाएगा सिंगरौली
प्रदूषण नियंत्रण विभाग के अनुसार जिले में बिजली इकाइयां प्रतिदिन 38 हजार टन राखड़ उत्सर्जित कर रही हैं। इसमें राखड़ डिस्पोज का औसत अधिकतम 40 प्रतिशत है। यानी प्रतिदिन लगगभ 23 हजार टन और सालभर में 85 लाख टन से ज्यादा राखड़ का पहाड़ निर्मित होगा। बिजली उत्पादन इकाइयां राखड़ भरने के लिए डैम के मेढ़ की उंचाई लगातार बढ़ा रही हैं। इससे भी भविष्य में खतरा हो सकता है। जानकारों का कहना है कि राखड़ भंडारण की स्थिति यही रही तो 8 साल में सिंगरौली राखड़ के पहाड़ में दब जाएगा।
बड़ा सवाल: 20 किमी. की दूरी में कैसे बदल गई पानी की तासीर!
प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारी भी मानते हैं कि यूपी वाले हिस्से यानी शक्तिनगर व सोनभद्र जिले के रिहंद डेम से लगे क्षेत्र रेणुकोट व आसपास पानी भूजल में मरकरी, आर्सेनिक और लेड का प्रभाव है। लेकिन मध्यप्रदेश वाला हिस्सा यानी विंध्यनगर, बैढऩ व सिंगरौली के पानी ऐसा नहीं है। दोनों ही स्थानों की दूरी 20 किलोमीटर है। भूजल का बड़ा स्रोत दोनों ही क्षेत्र में रिहंद का डेम ही है। ऐसे में सवाल उठता है कि यूपी वाले हिस्से का पानी नुकसानदायक है तो एमपी वाले हिस्से का पानी कैसे नहीं रहेगा।
इकाइयों का राखड़ भंडारण एक नजर में…
– एनटीपीसी की चुरचुरिया, शहपुर व बलरी में 890.869 हेक्टेयर क्षेत्रफल में 50-60 मिलियन टन क्षमता के 5 राखड़ डैम है।
– रिलायंस का हर्रहवा में 325 हेक्टेयर, एस्सार का बंधोरा में 85.6 हेक्टेयर, जेपी पावर का निगरी में 21.2 हेक्टेयर व हिंडालको का बरगवां में 30 हेक्टेयर का राखड़ डैम है।
– राखड़ उत्सर्जन की तुलना में डैम का क्षेत्रफल कम है। इसके लिए लगातार डैम की उंचाई बढ़ाकर राखड़ भरा जा रहा है। इसे एशडैक रेंजिंग कहते है।
खास-खास
– केंद्रीय प्रदूषण बोर्ड ने 2010 में सिंगरौली को क्रिटिकल पोल्यूटिंग जोन घोषित किया। आठ साल में सिंगरौली को इससे बाहर निकालने में पौधरोपण के प्रयास नाकाफी रहे हैं। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को दी जानकारी में एनटीपीसी, रिलायंस, जेपी निगरी, हिंडालको व एस्सार द्वारा 80 लाख पौधरोपण की बात कही गई। लेकिन जमीनी हकीकत इससे परे है। ज्यादातर पौधे कागजों में लगे या फिर पौधरोपण के संरक्षण में लापरवाही से सूख गए।
– सिंगरौली जिला अस्पताल में सितंबर माह में टीबी के 23 मरीज, सास व एलर्जी के 1209 व पेट से जुड़ी बीमारी के 3152 मरीज सामने आए। इसमें एनसीएल व एनटीपीसी के अस्पताल में मरीजों की संख्या नहीं है।
– सिंगरौली में 11990 मेगावॉट बिजली उत्पादन की इकाईयां हैं। इसमें एनटीपीसी 4760, रिलायंस सासन 3960, एस्सार 12 सौ मेगावॉट, जेपी पॉवर वेल्चर लिमिटेड 1320 व हिंडालको की इकाई शामिल हैं। उत्तरप्रदेश के हिस्से की इकाइयां मिलाकर यहां कुल बिजली उत्पादन 20242 मेगावॉट क्षमता की इकाईयां हैं।
– प्रदूषण के साथ ही यहां की सबसे बड़ी समस्या विस्थापन है। 1962 में रिहंद डेम बनाने के बाद से विस्थापन प्रारंभ हुआ तो अलग-अलग चरणों में स्थानीय रहवासियों को बसाया गया, इकाइयां आती गई और फिर विस्थापन कर बसाने का सिलसिला चलता रहा। इसमें रिहंद से सिंगरौली फिर अनपरा वहां से सिंगहनी और विंध्यनगर से अब निगरी तक पहुंचा विस्थापन।
सिंगरौली में औद्योगिक इकाइयों से होने वाले प्रदूषण और उससे मानव स्वास्थ्य पर पढऩे वाले नुकसान के लिए एनजीटी ने केंद्र और राज्य स्तर की अलग अलग दो कमेटियां गठित की हंै। इन कमेटियों द्वारा प्रभाव का आकलन करने तकनीकी सलाह और जांच करवाई जा रही है। रिपोर्ट आने के बाद आगे की कार्रवाई करेंगे। राख डिस्पोज करने एनसीएल के ब्लॉक बी परियोजना के गोरबी में भरने की बात चल रही है।
एचडी बाल्मीकि इइ, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड सिंगरौली

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