scriptMP election 2018: जेल में ‘अटल’ सेवा कर पल्लेदार ने पा लिया था विधायकी का टिकट, पढ़ें 5 बार MLA रहे राम चरित्र की कहानी | MP election 2018: Story of singrauli mla Ram Charitra | Patrika News

MP election 2018: जेल में ‘अटल’ सेवा कर पल्लेदार ने पा लिया था विधायकी का टिकट, पढ़ें 5 बार MLA रहे राम चरित्र की कहानी

locationसतनाPublished: Oct 29, 2018 07:29:40 pm

Submitted by:

suresh mishra

विधानसभा क्षेत्र सिंगरौली से पांच बार विधायक बने रामचरित्र की कहानी

MP election 2018: Story of singrauli mla Ram Charitra

MP election 2018: Story of singrauli mla Ram Charitra

अजीत शुक्ला@सिंगरौली। काम पल्लेदारी रहा। जनसंघ की शाखा में आते-जाते जुड़ाव हो गया। नतीजा इमरजेंसी के दौरान गोवा आंदोलन में भेजे गए और जेल जाना पड़ा। तिहाड़ जेल में मुलाकात अटल बिहारी वाजपेयी से हुई। आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभा रहे अटलजी की वहां जेल में सेवा की। यही ‘अटल सेवा’ बाद में मेवा बनी। बात सिंगरौली विधानसभा क्षेत्र से पांच बार विधायक रहे रामचरित्र की कर रहे हैं।
‘अटल सेवा’ से मेवा के रूप में विधायकी का टिकट पाने वाले रामचरित्र की विधायकी राजनीति के दिनों में उनके काफी करीब रहे अधिवक्ता रमाशंकर शाह बताते हैं कि 1975-76 के आंदोलन के बाद वर्ष 1977 में विधानसभा चुनाव हुआ तो रामचरित्र को सिंगरौली विधानसभा क्षेत्र से पहली बार टिकट मिला।
जनता पार्टी से टिकट मिलने का जरिया ‘अटल सेवा’ रही, सो जीत भी हासिल हुई। इसी के साथ पल्लेदार रामचरित्र की विधायी राजनीति का समय शुरू हो गया। रमाशंकर की मानें तो खुद विधायक इस बात को स्वीकार करते रहे कि जेल में उन्होंने अटलजी का पैर तक दबाया था। सेवा खुद अपनी मर्जी से किया था, क्योंकि उन दिनों अटल जी काफी दौड़-भाग किया करते थे।
केवल वंशमणि वर्मा से मिली शिकस्त
वर्ष 1977 की जीत के बाद विधायक बने रामचरित्र को कुल पांच बार बतौर विधायक क्षेत्र की जिम्मेदारी मिली। पहली बार जनता पार्टी से उसके बाद भारतीय जनता पार्टी से वह चुनाव लड़े। उन्होंने वर्ष 1980, 1985 व 1996 में जीत दर्ज की। इस बीच दो बार उन्हें वंशमणि वर्मा से शिकस्त मिली। वर्ष 2008 के विधानसभा चुनाव में उनकी जीत आखिरी रही। वर्ष 2013 में उन्हें टिकट नहीं मिला और वर्ष 2016 में उनकी मृत्यु हो गई।
भाग्य से आरक्षित हो गई थी सीट
जनसंघ से जुड़े और रामचरित्र के करीबी रहे मानिकराम वर्मा बताते हैं कि गोवा आंदोलन में भेजे जाने और उनकी गिरफ्तारी के बाद वह नेताओं की निगाह में आए। उनके लिए भाग्य की बात यह रही कि वर्ष 1977 के चुनाव में सिंगरौली सीट आरक्षित हो गई। नतीजा उन्हें विकल्प के रूप में चुना गया। यही उनके भाग्योदय की शुरुआत मानी जाती है। टिकट के लिए अटलजी ने ही कुशाभाऊ ठाकरे को उनका नाम सुझाया था।
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