कारीगोही में भले कहने को अस्पताल है, लेकिन यहां लोग कम ही आते हैं। स्थानीय लोगों ने बताया कि अस्पताल में कहने को डाक्टर हैं, लैब टेक्नीशियन है और नर्सिंग स्टाफ है। लेकिन अक्सर नदारद रहते हैं। यही वजह है कि यहां लोग इलाज के लिये बाबाओं के चक्कर में फंस जाते हैं। इसी स्थिति का फायदा
उठाते हुए यहां फलाहारी बाबा जैसे लोगों की दुकान चल रही है।
अस्पताल परिसर में तिली की फसल लहलहा रही है। पूछने पर ग्रामीणों ने बताया कि यहां पदस्थ लैब टेक्नीशियन भागवत शुक्ला ने यह फसल बोई हुई है। जब अस्पताल बंद होने का कारण पूछा गया तो बताया कि यह अस्पताल तो नाम का है। यहां स्टाफ महीने में एक दो बार ही आता है। इस वजह से यहां मरीज भी नहीं जाते। ऐसे में लैब टेक्नीशियन ने अस्पताल परिसर को खेत में तब्दील कर दिया है।
स्थानीय लोगों ने बताया कि तराई का यह इकलौता अस्पताल है जहां स्टाफ पदस्थ है। आदिवासी बाहुल्य इलाके में इस अस्पताल की काफी उपयोगिता है। लेकिन इस अस्पताल के बंद रहने से मजबूरी में लोगों को मझगवां या बिरसिंहपुर जाना पड़ता है। बताया गया है कि इस अस्पताल की टेरीटरी में 30 हजार की आबादी आती है, जो सहज सुलभ इलाज से महरूम है।
डॉ. तरुणकांत त्रिपाठी, बीएमओ