राहुल सिंह ने इस मामले में जब सतना पुलिस को तलब किया, तो चौंकाने वाली गड़बड़ी सामने आई है। सतना के पुलिस अधीक्षक रियाज इकबाल ने सीएसपी के जरिए सूचना आयोग को लिखित जवाब में कहा था कि नो पाॢकंग चालान नोटिस की कोई भी जानकारी पुलिस विभाग के पास उपलब्ध नहीं है। सतना पुलिस ने भी यह बताया कि उनके पास इसका कोई रेकॉर्ड ही नहीं है कि नो पाॢकंग नोटिस कितनी मात्रा में पुलिस ने छपवाया है और चस्पा नोटिस के एवज में कितने रुपए का चालान पुलिस ने काटा था।
अवैध वसूली का यह खुलासा एक आरटीआइ से हुआ है। सतना के जवाहरलाल जैन ने सूचना के अधिकार के तहत याचिका दायर की। जैन के मुताबिक 2016 में वाहनों पर चस्पा नो पार्किंग चालान नोटिस के बारे में जानकारी मांगी गई थी। इस मामले में थानेदार कोतवाली सतना का बयान बहुत ही हास्यास्पद था। उसने कहा था कि अधिकारी से इस बात की अपेक्षा नहीं की जानी चाहिए कि उसके पास हर समस्या का हल है। साथ ही उसने कहा था कि जानकारी लोकहित में नहीं दी जा सकती है। उस थानेदार ने आवेदक को सलाह भी दे डाली थी कि जानकारी चाहिए तो बाजार से मोटर व्हीकल एक्ट की किताब खरीद कर पढ़ लें। जवाहरलाल जैन ने अपील करते हुए कहा था कि सतना पुलिस मनमाने ढंग से जुर्माने की रसीद काटती है, वाहन चालकों को प्रभाववश छोड़ दिया जाता है।
राज्य के सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने अपने आदेश में कहा है कि अवैध चालान से सरकार को राजस्व का नुकसान हो रहा है। पुलिस की चालानी करवाई का रेकॉर्ड होना चाहिए और हैदराबाद जैसे शहरों में उपयोग में लाई जा रही ऑनलाइन बॉडी कैमरा से एक पारदर्शी, भ्रष्टाचार मुक्त व्यवस्था का निर्माण हो सकता है। सूचना आयोग ने इस मामले से जुड़े सारे दस्तावेज, कार्रवाई के लिए मध्यप्रदेश के डीजीपी वीके सिंह और राज्य के महालेखाधिकारी रविन्द्र पत्तार को उपलब्ध कराए है, ताकि आगे अवैध वसूली की वजह से सरकार को राजस्व का नुकसान न हो।
सूचना आयुक्त ने अपने आदेश में कहा है कि पुलिस विभाग के नियमों के मुताबिक ही ट्रैफिक नियमों के उल्लंघन करने वालों पर चालानी कार्रवाई हो सकती है। इसके तहत गवर्नमेंट प्रेस से छपे चालान की हर रसीद की तीन कॉपियां रहती हैं, जिसमे से एक कॉपी ट्रेजरी, दूसरी जिसके खिलाफ चालानी कार्रवाई हुई हो और तीसरी कॉपी पुलिस विभाग के पास रहती है। इसके साथ ही इस पूरी कार्रवाई का पंचनामा भी बनता है।
कुछ दिन पहले ही सोशल मीडिया में चर्चा रही कि चालान कार्रवाई में बड़ा हेरफेर हो रहा है। जुर्माना भरने वाले को दी जाने वाली रसीद ज्यादा रकम भरकर दी गई जबकि इसी रसीद की दूसरी प्रति में जुर्माना राशि को चौथाई कर दिया गया। हालांकि पुलिस के फेर में फंसने के डर से वाहन मालिक ने उच्च स्तर पर शिकायत नहीं की। दूसरी ओर ट्रैफिक पुलिस के अफसरों ने मामले को तूल देने से बचा लिया।
इस मामले में फैसला सुनाते हुए राज्य सूचना आयुक्त ने कहा कि 2012-13 में भी भोपाल में तत्कालीन डीआइजी श्रीनिवास वर्मा ने ट्रैफिक चालान में उपयोग में लाई जा रही अवैध रसीद कट्टे का रैकेट पकड़ा था। सूचना आयुक्त का मानना है कि इस तरह की वसूली के चलते चालान की राशि शासन के खजाने में न जाकर भ्रष्ट व्यवस्था की भेंट चढ़ जाती है।
राहुल सिंह ने सतना में उजागर हुई इस गड़बड़ी पर दिए अपने आदेश में कहा कि यदि पुलिस विभाग के पास इस बात का रेकॉर्ड नहीं है। तो इस बात का पता लगाना असंभव है कि कितने लोगों का चालान जारी किया गया। कितने लोगों से वसूली कर सरकारी खजाने में रकम जमा की गई।
राज्य सूचना आयुक्त ने इस गड़बड़ी को गंभीरता से लेते हुए सतना के तत्कालीन एसपी, सीएसपी और थानेदार को कारण बताओ नोटिस जारी किया है।