ये है कथा
कहते है कि हजारों वर्षों पहले कश्यप ऋषि के 2 पुत्र हुए। जिनमे से एक का नाम हरिण्याक्ष तथा दूसरे का हिरण्यकशिपु था। हिरण्याक्ष को भगवान विष्णु ने पृथ्वी की रक्षा के लिए वराह रूप धरकर मार दिया था। अपने भाई की मृत्यु से दुखी और क्रोधित हिरण्यकशिपु ने भाई की मृत्यु का प्रतिशोध लेने के लिए अजेय होने का संकल्प किया। फिर उसने कई वर्षों तक कठोर तप किया। उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने उसे अजेय अमर होने का वरदान दिया।
कहते है कि हजारों वर्षों पहले कश्यप ऋषि के 2 पुत्र हुए। जिनमे से एक का नाम हरिण्याक्ष तथा दूसरे का हिरण्यकशिपु था। हिरण्याक्ष को भगवान विष्णु ने पृथ्वी की रक्षा के लिए वराह रूप धरकर मार दिया था। अपने भाई की मृत्यु से दुखी और क्रोधित हिरण्यकशिपु ने भाई की मृत्यु का प्रतिशोध लेने के लिए अजेय होने का संकल्प किया। फिर उसने कई वर्षों तक कठोर तप किया। उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने उसे अजेय अमर होने का वरदान दिया।
स्वर्ग पर जमाया अधिकार
वरदान प्राप्त करके हिरण्यकशिपु ने स्वर्ग पर अधिकार कर लिया। देवताओं को मारकर भगा दिया और स्वत: संपूर्ण लोकों का अधिपति हो गया। देवता स्वर्ग विहीन हो गए थे। वे असुर हिरण्यकशिपु को किसी प्रकार से पराजित नहीं कर सकते थे। क्योंकि ब्रह्मा की हिरण्यकश्यप कठोर तपस्या करता है। उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा वरदान देते हैं कि उसे न कोई घर में मार सके न बाहर, न अस्त्र से और न शस्त्र से, न दिन में मरे न रात में, न मनुष्य से मरे न पशु से, न आकाश में न पृथ्वी में।
वरदान प्राप्त करके हिरण्यकशिपु ने स्वर्ग पर अधिकार कर लिया। देवताओं को मारकर भगा दिया और स्वत: संपूर्ण लोकों का अधिपति हो गया। देवता स्वर्ग विहीन हो गए थे। वे असुर हिरण्यकशिपु को किसी प्रकार से पराजित नहीं कर सकते थे। क्योंकि ब्रह्मा की हिरण्यकश्यप कठोर तपस्या करता है। उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा वरदान देते हैं कि उसे न कोई घर में मार सके न बाहर, न अस्त्र से और न शस्त्र से, न दिन में मरे न रात में, न मनुष्य से मरे न पशु से, न आकाश में न पृथ्वी में।
प्रभु भक्तों पर जारी रहा अत्याचार
भक्त प्रहलाद के जन्म के बाद हिरण्यकश्यप उसकी भक्ति से भयभीत हो जाता है। उसे मृत्युलोक पहुंचाने के लिए प्रयास करता है। इसके बाद भगवान विष्णु भक्त प्रहलाद की रक्षा के लिए नरसिंह अवतार लेते हैं और हिरण्यकश्यप का वध कर देते हैं। नरसिंह द्वारा हिरण्यकश्यप का नाश हुआ किंतु एक और समस्या खड़ी हो गई। भगवान नरसिंह इतने क्रोध में थे कि लगता था, जैसे वे प्रत्येक प्राणी का संहार कर देंगे। यहां तक कि स्वयं प्रह्लाद भी उनके क्रोध को शांत करने में विफल रहा। सभी देवता भयभीत हो भगवान ब्रह्मा की शरण में गए।
भक्त प्रहलाद के जन्म के बाद हिरण्यकश्यप उसकी भक्ति से भयभीत हो जाता है। उसे मृत्युलोक पहुंचाने के लिए प्रयास करता है। इसके बाद भगवान विष्णु भक्त प्रहलाद की रक्षा के लिए नरसिंह अवतार लेते हैं और हिरण्यकश्यप का वध कर देते हैं। नरसिंह द्वारा हिरण्यकश्यप का नाश हुआ किंतु एक और समस्या खड़ी हो गई। भगवान नरसिंह इतने क्रोध में थे कि लगता था, जैसे वे प्रत्येक प्राणी का संहार कर देंगे। यहां तक कि स्वयं प्रह्लाद भी उनके क्रोध को शांत करने में विफल रहा। सभी देवता भयभीत हो भगवान ब्रह्मा की शरण में गए।
भगवान शंकर पर आक्रमण
देवताओं के साथ स्वयं परमपिता ब्रह्मा और भगवान विष्णु के आग्रह पर भगवान शिव नरसिंह का क्रोध शांत करने पहुंचे, उस समय तक नरसिंह का क्रोध सारी सीमाओं को पार कर गया था। साक्षात शंकर को सामने देखकर भी उनका क्रोध शांत नहीं हुआ बल्कि वे स्वयं शंकर पर आक्रमण करने दौड़े। उसी समय शंकर ने एक विकराल ऋषभ का रूप धारण किया और नरसिंह को अपनी पूछ में लपेटकर खींचकर पाताल में ले गए। काफी देर तक शंकर ने नरसिंह को वैसे ही अपने पूछ में जकड़कर रखा। अपनी सारी शक्तियों और प्रयासों के बाद भी नरसिंह उनकी पकड़ से छूटने में सफल नहीं हो पाए। अंत में शक्तिहीन होकर उन्होंने ऋषभ रूप में भगवान शंकर को पहचाना और तब उनका क्रोध शांत हुआ।
देवताओं के साथ स्वयं परमपिता ब्रह्मा और भगवान विष्णु के आग्रह पर भगवान शिव नरसिंह का क्रोध शांत करने पहुंचे, उस समय तक नरसिंह का क्रोध सारी सीमाओं को पार कर गया था। साक्षात शंकर को सामने देखकर भी उनका क्रोध शांत नहीं हुआ बल्कि वे स्वयं शंकर पर आक्रमण करने दौड़े। उसी समय शंकर ने एक विकराल ऋषभ का रूप धारण किया और नरसिंह को अपनी पूछ में लपेटकर खींचकर पाताल में ले गए। काफी देर तक शंकर ने नरसिंह को वैसे ही अपने पूछ में जकड़कर रखा। अपनी सारी शक्तियों और प्रयासों के बाद भी नरसिंह उनकी पकड़ से छूटने में सफल नहीं हो पाए। अंत में शक्तिहीन होकर उन्होंने ऋषभ रूप में भगवान शंकर को पहचाना और तब उनका क्रोध शांत हुआ।