दोस्त और मां बनकर दिया प्यार दुलार
उतैली निवासी फौज से रिटायर्ड सूबेदार मेजर रामप्रकाश पटेल ने अपने भाई के लिए जितनी देख-रेख की शायद ही कोई भाई इतना कर पाए। जी हां, जब भाई जय प्रताप सिंह पटेल आठ वर्ष का था तभी उसके अपने गांव से वे अपने साथ लेकर श्रीनगर लेकर चले गए। क्योंकि वह अपने भाई को अच्छा इंसान, शिक्षित और अनुशाषित व्यक्ति बनाना चाहते थे, वह जानते थे कि गांव का महौल में उनके भाई की देख रेख इतनी अच्छी नहीं हो पाएगी। उन्होंने जय का एडमीशिन आर्मी स्कूल में कराया। वे बताते हैं कि जब वे सुबह पीटी के लिए जाते थे तभी भाई को जगा कर कुछ पढऩे का एसाइनमेंट देकर जाते। फिर जब वह पीटी से वापस आते तो भाई की नहलाते स्कूल के लिए तैयार करते और स्कूल छोडऩे जाते। फिर ड्यूटी में लग जाते। बीच में समय निकाल कर भाई के लिए टिफिन लेकर स्कूल जाते उसको अपने हाथो से खाना खिलाते थे। एग्जाम के दौरान अवकाश लेकर परीक्षा की तैयारी करवाते थे। जब भाई 12 साल का हुआ तो उनकी मां का निधन हो गया। उसके बाद तो जय की पूरी जिम्मेदारी उनके ऊपर आ गई। उन्होंने जय की हर छोटी -छोटी सी ख्वाइश को पूरा किया। 12वीं तक जय को अपने पास रखा। 12वीं के बाद जय का एडमीशिन नागपुर के इंजीनियरिंग कॉलेज में करवा दिया। इसके बाद वह हर महीने जय से मिलने श्रीनगर से जाते रहे। उनका कहना है कि जय को उन्होंने अपने बेटे की तरह पाला है। दोनों की अच्छी बॉंडिंग है। आज जय अमेरिका के मल्टीनेशनल कंपनी में इंजीनियर है। जिसका श्रेय उनके बड़े भाई ५५ वर्षीय रामप्रकाश को जाता है।
उतैली निवासी फौज से रिटायर्ड सूबेदार मेजर रामप्रकाश पटेल ने अपने भाई के लिए जितनी देख-रेख की शायद ही कोई भाई इतना कर पाए। जी हां, जब भाई जय प्रताप सिंह पटेल आठ वर्ष का था तभी उसके अपने गांव से वे अपने साथ लेकर श्रीनगर लेकर चले गए। क्योंकि वह अपने भाई को अच्छा इंसान, शिक्षित और अनुशाषित व्यक्ति बनाना चाहते थे, वह जानते थे कि गांव का महौल में उनके भाई की देख रेख इतनी अच्छी नहीं हो पाएगी। उन्होंने जय का एडमीशिन आर्मी स्कूल में कराया। वे बताते हैं कि जब वे सुबह पीटी के लिए जाते थे तभी भाई को जगा कर कुछ पढऩे का एसाइनमेंट देकर जाते। फिर जब वह पीटी से वापस आते तो भाई की नहलाते स्कूल के लिए तैयार करते और स्कूल छोडऩे जाते। फिर ड्यूटी में लग जाते। बीच में समय निकाल कर भाई के लिए टिफिन लेकर स्कूल जाते उसको अपने हाथो से खाना खिलाते थे। एग्जाम के दौरान अवकाश लेकर परीक्षा की तैयारी करवाते थे। जब भाई 12 साल का हुआ तो उनकी मां का निधन हो गया। उसके बाद तो जय की पूरी जिम्मेदारी उनके ऊपर आ गई। उन्होंने जय की हर छोटी -छोटी सी ख्वाइश को पूरा किया। 12वीं तक जय को अपने पास रखा। 12वीं के बाद जय का एडमीशिन नागपुर के इंजीनियरिंग कॉलेज में करवा दिया। इसके बाद वह हर महीने जय से मिलने श्रीनगर से जाते रहे। उनका कहना है कि जय को उन्होंने अपने बेटे की तरह पाला है। दोनों की अच्छी बॉंडिंग है। आज जय अमेरिका के मल्टीनेशनल कंपनी में इंजीनियर है। जिसका श्रेय उनके बड़े भाई ५५ वर्षीय रामप्रकाश को जाता है।