दरअसल, पन्ना टाइगर रिजर्व के सुरक्षित जंगलों से निकलकर महज 26 माह की उम्र में सरभंगा क्षेत्र पहुंची बाघिन पी 213 (22) अब करीब 6 साल की हो गई है लेकिन उसके गले में अभी भी पन्ना वाला रेडियो कॉलर ही डला था। उसके पुराना होने से एंटिना में सही सिग्नल नहीं मिल रहे थे। इससे वन अफसरों को बाघिन की निगरानी में परेशानी हो रही थी। शुक्रवार को पन्ना टाइगर रिजर्व की रेस्क्यू टीम चार हाथी, आठ महावत के साथ सरभंगा के जंगल में उतरी। लगभग पांच घंटे की मशक्कत के बाद बाघिन रेस्क्यू टीम की घेराबंदी में आई। उसे ट्रेंकुलाइज कर दोपहर ढाई बजे नया रेडियो कॉलर पहनाया गया। इसके बाद बाघिन को वापस जंगल में छोड़ दिया गया।
सिग्नल हो गए थे वीक
सिग्नल हो गए थे वीक
पन्ना टाइगर रिजर्व के वन्य प्राणी चिकित्सक डॉ. संजीव गुप्ता ने बताया कि बाघिन का कॉलर पुराना होने से उसके सिग्नल वीक हो गए थे। मझगवां के जिस वनक्षेत्र में बाघिन विचरण करती है, उसके बीच से रेल लाइन निकली है। इससे वहां बाघिन की निगरानी के लिए रेडियो कॉलर बदलना अनिवार्य हो गया था। रेडियो कॉलर बदलने के लिए जरूरी मंजूरी लेने के बाद बाघिन को ट्रेंकुलाइज कर उसे रेडियो कॉलर पहनाने का निर्णय लिया गया।
रेस्क्यू टीम में शामिल थे 40 कर्मचारी
बाघिन को घेरकर ट्रेंकुलाइज करने के लिए पन्ना टाइगर रिजर्व से वन्य प्राणी चिकित्सक संजीव गुप्ता के नेतृत्व में चार हाथी, आठ महावत और सात अन्य लोगों की टीम सुबह ही सतना जिले के सरभंगा के घने जंगलों में पहुंच गई थी। वहां डीएफ ओ सतना राजीव कुमार मिश्रा और मुकुंदपुर जू के विशेषज्ञों सहित 40 से 50 लोगों की भारी भरकम टीम तैयार थी।
एयरगन से लगाई डॉट
बाघिन को घेरकर ट्रेंकुलाइज करने के लिए पन्ना टाइगर रिजर्व से वन्य प्राणी चिकित्सक संजीव गुप्ता के नेतृत्व में चार हाथी, आठ महावत और सात अन्य लोगों की टीम सुबह ही सतना जिले के सरभंगा के घने जंगलों में पहुंच गई थी। वहां डीएफ ओ सतना राजीव कुमार मिश्रा और मुकुंदपुर जू के विशेषज्ञों सहित 40 से 50 लोगों की भारी भरकम टीम तैयार थी।
एयरगन से लगाई डॉट
रेस्क्यू दल ने हाथियों की सहायता से बाघिन को घेरने का काम सुबह से ही शुरू कर दिया था। चोरों ओर से घिरी इस युवा बाघिन को लेंटाना की घनी झाडिय़ों के बीच दोपहर करीब दो बजे एयर गन से डाट लगाई गई। दवा के प्रभाव से उसके बेहोश होते ही डॉक्टर मौके पर पहुंचे और सेहत की जांच की। इसके बाद बाघिन का पुराना रेडियो कॉलर निकालकर नया कॉलर पहनाया गया। कॉलर पहनाने के बाद बाघिन के शरीर की सूक्ष्मता के साथ जांच की गई। लगभग ढाई बजे बाघिन होश में आई और वापस लेंटाना की घनी झाडिय़ों में छिप गई। रेस्क्यू ऑपरेशन में पन्ना टाइगर रिजर्व के डॉ. संजीव गुप्ता, नवीन कुमार शर्मा, तफ सील खान, उदयमणि सिंह परिहार, भूपेंद्र शुक्ला, अरविंद, रामचरण गौड़, स्वर्ण सिंह सहित आठ महावत, चार हाथी (गणेश, केनकली, वन्या और अनंती) की अहम भूमिका रही।
बाघिन ने जन्मे 9 शावक
डॉ. गुप्ता ने बताया कि बाघिन जबसे सरभंगा के आश्रम में है, तबसे अब तक उसके तीन लिटर हुए हैं। इसमें उसने करीब नौ शावक जन्मे हैं। कुछ शावक बड़े भी हो चुके हैं, जो सरभंगा और चित्रकूट सहित आसपास के जंगलों में विचरण कर रहे हैं। मझगवां के जंगल में बढ़ रहे बाघों के कुनबे की सुरक्षा की जिम्मेदारी सतना वन मंडल की है।
डॉ. गुप्ता ने बताया कि बाघिन जबसे सरभंगा के आश्रम में है, तबसे अब तक उसके तीन लिटर हुए हैं। इसमें उसने करीब नौ शावक जन्मे हैं। कुछ शावक बड़े भी हो चुके हैं, जो सरभंगा और चित्रकूट सहित आसपास के जंगलों में विचरण कर रहे हैं। मझगवां के जंगल में बढ़ रहे बाघों के कुनबे की सुरक्षा की जिम्मेदारी सतना वन मंडल की है।