मामला अपने आप में गंभीर है। लेकिन, आरोप-प्रत्यारोप का खेल जारी हो चुका है। एक ओर एनआरसी से औपचारिकता पूरा करते हुए परिजनों को तत्काल गांव भेज दिया गया। दूसरी ओर मामले दबाने के लिए कहा गया कि पानी की बाल्टी मासूम के अभिभावक ने रखी थी।
एनआरसी रामनगर में पीने के पानी की व्यवस्था नहीं है। इसके चलते अधिकतर अभिभावक अपने स्तर पर पानी की व्यवस्था करते हैं। जिसे किसी बर्तन में बेड के पास ही रखते हैं। इसी तरह मासूम के अभिभावकों ने भी किया, जो जानलेवा साबित हुआ। सवाल उठता है कि कुपोषण के नाम पर हर साल ४ करोड़ से ज्यादा का बजट जिले में खर्च किया जाता है। उसके बावजूद पीने के पानी की व्यवस्था भी जिम्मेदार नहीं कर सके।
एनआरसी के प्रोटोकॉल के अनुसार बाल्टी या अन्य सामग्री बेड के पास नहीं होनी चाहिए थी। अगर, परिजन रखे हुए थे तो नियमत: उसे हटवा देना चाहिए था। लेकिन, एनआरसी में पदस्थ स्टाफ ने ऐसा नहीं किया। उसके बाद भी जिम्मेदार अधिकारी स्टाफ की जगह परिजनों के ऊपर लापरवाही का आरोप लगाकर स्टाफ को बचाने में लगे हुए हैं। जबकि, एनआरसी के स्टाफ ने प्रोटोकॉल का उल्लंघन किया है। नियमानुसार सीधे कार्रवाई सुनिश्चित करना चाहिए।
मामले में हर कदम पर लापरवाही हुई है। जिस मासूम की मौत हुई है, उसका नाम दो आंगनबाड़ी केंद्र में दर्ज है। सूत्रों की मानें तो आंगनबाड़ी केंद्र 2 व 3 में नाम दर्ज है। यह जानकारी भी जिम्मेदारों को है। लेकिन, लापरवाही के लिए भी कोई कार्रवाई सुनिश्चित नहीं की गई।
रामनगर एनआरसी को शत-प्रति बेड एक्युपेंसी के लिए प्रदेश में नंबर एक स्थान मिला था। इसके लिए पुरस्कृत भी किया गया। उसी एनआरसी में स्टाफ की लापरवाही से मासूम की मौत हो गई।
एनआरसी रामनगर में एक बेड पर तीन बच्चों को रखा गया था। जिस बेड पर मासूम थी, उसके साथ अन्य एक बच्चा भी था। यानी बेड पर दो बच्चों को रखा गया था।
डॉ. आलोक अवधिया, बीएमओ, रामनगर बाल्टी के पानी में डूबने से मासूम की मौत की सूचना मिली है। जांच कराते हुए संबंधितों के खिलाफ कार्रवाई होगी।
डॉ. विजय कुमार आरख, सीएमएचओ