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खेमका की गेरू फैक्ट्री के प्रदूषण ने रोकी मरीजों की राह

locationसतनाPublished: Nov 22, 2021 02:19:37 am

Submitted by:

Pushpendra pandey

खनिज और प्रदूषण विभाग की मनमानी, स्वास्थ्य महकमे ने भी साधी मिलीभगत की चुप्पी, स्वास्थ्य केंद्र रहता है वीरान, सतना की दौड़ लगाते हैं मरीज और परिजन

Ocher factory in Satna jaitwara

Ocher factory in Satna jaitwara

सतना. गेरू फैक्ट्री से निकलने वाले जहरीले धुएं ने जैतवारा प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र को वीरान सा बना दिया है। प्रदूषण के कारण यहां न मरीज आते हैं और न चिकित्सक। हाल यह है कि दिनभर में महज 8-10 मरीज ही पहुंचते हैं, जबकि आबादी लाख से ऊपर है। वहीं जैतवारा कस्बे के 75-100 मरीज प्रतिदिन जिला अस्पताल पहुंच रहे हैं। ऐसे में जिला अस्पताल के डॉक्टरों पर मरीजों का भार बढ़ता जाता है। दरअसल, जैतवारा प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र से लगी हुई गेरू की फैक्ट्री है। कारोबारी खेमका की यह फैक्ट्री दिन-रात चलती रहती है। इससे निकलने वाला जहरीला धुआं आसपास के वातावरण को दूषित करता है तो फैक्ट्री के शोर-शराबे से लोगों को परेशानी होती है। प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र से लगे खनिज के भंडारण स्थल और फैक्ट्री में भारी वाहनों का भी लगातार आना जाना बना रहता है। इन भारी वाहनों से हादसे की आशंका के चलते मरीज और परिजन अस्पताल से दूरी बना रहे हैं। इस ओर किसी भी जिम्मेदार का ध्यान नहीं जा रहा है।
इन नियम और शर्तों का पालन नहीं

प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के बगल में चल रही फैक्ट्री में संचालक ने नियम कायदे ताक पर रख दिए हैं। प्रदूषण विभाग की मानें तो यहां भंडारित खनिज को ढंक कर रखना होता है। फैक्ट्री परिसर के चारों ओर 15 फीट तक बाउंड्रीवाल जरूरी होती है। धूल को अवशोषित करने के लिए बैक फिल्टर लगाना पड़ता है। लेकिन, यहां ऐसा नहीं है। प्रदूषण विभाग की शर्तों के अनुसार सिर्फ प्लांटेशन कराया गया है, वह भी भंडारित खनिज को छिपाने के लिए। शिकायत होने पर कुछ दूरी तक बाउंड्री बनवाई गई है पर अस्पताल तक वह भी नहीं। अस्पताल परिसर शुरू होने से पहले ही बाउंड्री खत्म हो गई है। ऐसे में भंडारित खनिज पौधों की आड़ में रहता है। जब कभी तेज हवा या आंधी चलती है तो धूल अस्पताल परिसर में भर जाती है।
ये हैं जिम्मेदार, जिन्होंने केंद्र को बनाया वीरान

जैतवारा प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र को वीरान करने में एक-दो नहीं बल्कि कई विभाग जिम्मेदार हैं। सबसे पहला नंबर खनिज विभाग का है। अस्पताल के बगल में लाइसेंस दिया गया। इसके बाद तय मापदंडों की लगातार अनदेखी की गई। स्थानीय लोगों ने माइनिंग इंस्पेक्टर रामसुशील चौरसिया और खनिज अधिकारी सत्येंद्र सिंह की कार्यशैली पर सवाल उठाए। कहा, मिलीभगत के कारण यहां किसी प्रकार की कार्रवाई नहीं की जाती है। दूसरा नंबर है प्रदूषण विभाग का। लगातार शिकायत होने के बाद विभाग ने पर्यावरणीय शर्तों को पूरा करने का फरमान तो जारी कर दिया पर कारोबारी ने क्या किया यह देखने के लिए कोई नहीं पहुंचा। क्षेत्रीय अधिकारी केपी सोनी की यह अनदेखी कस्बे के मरीजों पर भारी पड़ रही है। इस पूरे खेल में स्वास्थ्य महकमे का रोल भी कम नहीं है। स्वास्थ्य विभाग द्वारा आज तक किसी प्रकार की आवाज नहीं उठाई गई।
सीएचसी में स्टाफ
चिकित्सक 02
स्टॉफ नर्स 05
लैब टेक्नीशियन 01
फार्मासिस्ट 01
एएनएम 02
वार्ड ब्यॉय 01
कप्यूटर ऑपरेटर 01
रुटीन ओपीडी 10-15

जिला अस्पताल में बढ़ रहा भार
जैतवारा प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में दो चिकित्सक और 5 स्टाफ नर्स पदस्थ हैं। यहां की रुटीन ओपीडी महज 15-20 होने के कारण दिनभर स्टाफ खाली बैठा रहता है। मरीज बताते हैं कि यहां के स्टाफ को भी काम नहीं करने की लत लग गई है। अब यहां सामान्य बुखार का भी इलाज नहीं मिलता है। डॉक्टर सामान्य रोगी को भी जिला अस्पताल के लिए रेफर कर देते हैं। यह व्यवहार देख मरीजों ने केंद्र की ओर जाना ही छोड़ दिया है। वे सीधे जिला अस्पताल पहुंच रहे हैं। इस कारण अस्पताल के डॉक्टरों पर मरीजों का भार बढ़ रहा है।
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