यात्रा के यात्री चित्रकूट क्षेत्र के तमाम पौराणिक, ऐतिहासिक स्थलों के साथ-साथ दुस्साहसिक पर्यटन के विकास की संभावना तलाशते हुए कुदरत के करिश्मों के बीच आदि मानवों की गुफाओं, उनसे जुड़े किस्सों, विश्व प्रसिद्ध रचनाकारों, कला और संगीत के अनन्य साधकों, राजाओं, रजवाड़ों, राजसत्ता हासिल करने के लिए चली गयी शह और मात की चालों और रणबाकुरों की वीरता की कहानियों को जन जन तक पहुंचाने के उद्देश्य से आ रहे है।
स्वीडन के ही शोधकर्ताओं ने इसी वर्ष पृथ्वी पर पौधे के रूप में मौजूद जीवन के सर्वाधिक पुराने सबूत के तौर पर चित्रकूट की चट्टानों में दबे करीब 160 करोड़ वर्ष पुराने लाल शैवाल के जीवाश्म की खोज की थी।
शोध के अनुसार ईसा पूर्व 5 जनवरी वर्ष 5089 को राम की 25वीं सालगिरह के पर पिता दशरथ ने वनवास जाने की आज्ञा दी थी। शोध के आधार पर सिर्फ 7106 वर्ष पहले राम ने चित्रकूट परिक्षेत्र में वनवास का तीन चौथाई से भी ज्यादा समय व्यतीत किया था। मगर चित्रकूट को न तो यूनेस्को ने विश्व धरोहर की मान्यता दी, और न ही केंद्र व राज्य सरकारों ने अनादि भू-भाग को पर्यटन मानचित्र में शामिल किया।
स्वीडन के शोधकर्ता अत्रि, अनुसुइया जैसे महान तपस्वियों की तपस्थली, देवताओं के गुरु बृहस्पति बाल्मीकि, अंगिरा, कपिल, शरभंग, गर्गाचार्य, महर्षि गौतम, पतंजलि, शाण्डिल्य, अगस्त और सुतीक्ष्ण जैसे ऋषियों की साधनास्थली, तुलसी, रहीम, तानसेन और बीरबल जैसे रचनाधर्मी और कलासाधकों से जुड़े स्थलों यात्रा में धरती में स्थापित प्रथम शिवलिंग आदि शामिल है।
मुगल बादशाह औरंगजेब द्वारा बनवाए गए मंदिर, दुष्यंत और शकुंतला के पुत्र भरत की जन्मस्थली, ब्रह्मा, शिव, राम, इंद्र, सूर्य और देवगुरु बृहस्पति की साधना स्थलियों, रमणीक वादियों में बने आश्रमों, दुनिया में जीविकोपार्जन के सबसे ज्यादा अवसर सृजित करने वाले कवि की जन्मस्थली और एडवेंचर टूरिज्म से जुड़े 100 फीसदी प्राकृतिक जल प्रपातों, दैवीय घटनाओं की गवाह रही शिलाओं, आदि मानव की गुफाओं के अगूढ़ तथ्यों को खोजने जाएंगे।