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महामारी से घबराए शहर, गावों में पसरा सन्नाटा

locationसतनाPublished: May 14, 2020 11:12:34 pm

Submitted by:

Sukhendra Mishra

देश में जब-जब महामारी आई गांव व किसान बने मददगार

घर जाने से पूर्व तेज धूप में परेशान होते श्रमिक

गांव व किसान बने मददगार

सतना. जिला मुख्यालय से महज १५ किमी दूर स्थित पिथौराबाद गांव में चारोओर सन्नाटा पसरा था। पूछने पर लोगों ने बताया की शहरों से गांव की ओर लौट रहे प्रवासी मजदूरों ने गांव की शांति पर ग्रहण लगा दिया है। कोराना महामारी के भय से पूरा गांव घरों में दुबक गया है। ग्रामीणों में इस बीमारी को लेकर इतना भय है कि लोग एक दूसरे के घर जाना बंद कर दिया है। जिले में धान गुरू के नाम से चर्चित पद्मश्री बाबूलाल दाहिया ने अपने जीवन के अनुभव साझा करते हुए बताया कि देश में जब-जब महामारी का प्रकोप हुआ है।
इतिहास गवाह है गांव एवं किसान ही देश के काम आए हैं। शहर सिर्फ सुख के साथी है। जब भी देश में आपदा आई गांव ही लोगों को आश्रय और जिंदा रहने के संसाधन उपलब्ध कराए हैं। उन्होंने बताया की 1912 में आई लाल बुखार महामारी हो या 1946 में प्लेग का प्रकोप तब भी शहर महामारी का दंश नहीं झेल पाए थे। महामारी से बचने लोगों ने गांवों में शरण ली थी। एक बार फिर संकट की इस घड़ी में शहरों से पलायन जारी है गांव लोगों का सहारा बन रहे हैं।
हर बार हवाई जहाज से आई महामारी
पद्मश्री बाबूलाल दाहिया ने बताया कि प्लेग महामारी भी विदेश से हवाई जहाज में चढ़कर भारत आई थी। कोरोना भी एरोप्लेन से आया है। यदि सरकार समय रहते विदेश यात्रा को लाकडाउन कर देती तो देश को लाकडाउन की आग में झोकने की जरूरत नहीं पड़ती। लेकिन हमारी सरकारों ने विदेश से आने वाली महामारियों से आज तक कोई सबक नहीं लिया।
गांव देश का आधार
गांव आज भी प्रकृति पर निर्भर है। इसलिए जब भी प्राकृतिक आपदा आती है ग्रामीण उस विकट परिस्थित में भी बच जाते हैं। जबकी शहर में रहने वाले लोग हमेशा महामारी का शिकार हुए हैं। गांव को प्रकृति ने कई पोषक तत्व दिए हैं। खाने के लिए अनाज दिया है। महूआ का लाटा संकट काल में आहार का काम करता है और विटामिन का भी। कोदो कुटकी एवं जोढऱी अकाल के समय ग्रामीणों को जिंदा रखने वाले अनाज है। गांव में दूध दही एवं मट्टा आज भी लोगों को मुफ्त में मिल जाता है। शहर में यह संभव नहीं हैं। इसलिए गांव देश का आधार है। गांव एवं किसानों को संरक्षण की जरूरत है।
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