पवई विधायक की सदस्यता खत्म करने के मामले को लेकर हाईकोर्ट में हुई सुनवाई, जज ने फैसला रखा सुरक्षित
पवई विधायक मामले में जबलपुर हाई कोर्ट में बहस पूरी, फैसला रिजर्व

पन्ना। मध्यप्रदेश के पन्ना जिला अंतर्गत पवई विधानसभा से भाजपा विधायक प्रहलाद लोधी की सदस्यता खत्म करने के मामले की अपील पर बुधवार को जबलपुर हाईकोर्ट में सुनवाई हुई। सुनवाई पूरी करने के बाद जस्टिस वीपीएस चौहान की सिंगल बेंच ने फैसला सुरक्षित रख लिया है। बताया गया कि प्रहलाद लोधी ने भोपाल स्थित एमपी-एमएलए स्पेशल कोर्ट के फैसले को अपील में चुनौती दी थी।
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उन्होंने दो साल की सजा पर रोक लगाने की मांग भी की है। महाधिवक्ता शशांक शेखर ने बताया कि पवई के पूर्व विधायक ने अपील के माध्यम से विधायकी निष्कासित पर रोक लगाने की मांग की थी। हाईकोर्ट में फैसला सुरक्षित अंतरिम आवेदन पर सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने बाद में फैसला देने को कहा।
क्या है मामला
बता दें कि, पन्ना जिले की पवई विधानसभा सीट से भाजपा प्रत्याशी के रूप में विधायक चुने गए प्रहलाद लोधी ने अपील में कहा कि वे निर्दोष हैं। उनके खिलाफ बिना समुचित साक्ष्य के सिर्फ संदेह के आधार पर सजा सुनाई गई है। प्रकरण में बताया कि पन्ना जिले की रैपुरा तहसील में पदस्थ तत्कालीन नायब तहसीलदार आरके वर्मा ने 28 अगस्त 2014 को सिमरिया थाने में रेत से भरी ट्रैक्टर-ट्रॉली को जब्त करके थाने में खड़ा कर दिया था। ट्रैक्टर जब्त करने की सूचना पर भाजपा विधायक प्रहलाद लोधी सहित 12 लोगों ने वापस लौटते समय मडवा गांव के पास बीच रोड पर नायब तहसीलदार की जीप को रोककर उनके साथ मारपीट की और गालियां दीं।
फिर नायब तहसीलदार की शिकायत पर सिमरिया पुलिस ने बलवा व मारपीट की भादंवि की धाराओं के तहत प्रकरण दर्ज किया। 31 अक्टूबर 2019 को सांसद, विधायकों के मामलों की सुनवाई कर रहे भोपाल के विशेष न्यायाधीश सुरेश सिंह की कोर्ट ने भाजपा विधायक प्रहलाद लोधी सहित 12 लोगों को बलवा, मारपीट और गाली-गलौज करने के मामले में दोषी करार देते हुए दो साल की जेल और 3,500 रुपए के जुर्माने की सजा सुनाई थी। इसी फैसले को जबलपुर हाईकोर्ट में चुनौती दी गई है।
किस नियम के कारण गई सदस्यता
सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले के अऩुसार अगर किसी जनप्रतिनिधि को दो साल या उससे अधिक की सजा होती है तो सदस्यता खत्म हो जाएगी। साथ ही वह अगले छह साल तक चुनाव नहीं लड़ सकता है। यह फैसला जस्टिस एके पटनायक और जस्टिस एसजे मुखोपाध्याय की पीठ ने जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 8(4) को असंवैधानिक करार देते हुए कहा था कि दोषी ठहराए जाने की तारीख से ही अयोग्यता प्रभावी होती है। क्योंकि इसी धारा के तहत आपराधिक रिकॉर्ड वाले जनप्रतिनिधियों को अयोग्यता से संरक्षण हासिल है।
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