गत वर्ष बरसात के समय शिवमंदिर के पीपल पेड़ का एक हिस्सा घंटाघर पर गिर गया था। इससे वह जर्जर हो गया था। निगम ने एक दिन के लिए रास्ता बंद कर पीपल के पेड़ के हिस्से को हटवाया था। हालांकि इस घटना में घंटाघर का ऊपरी हिस्सा ही प्रभावित हुआ था। उसके बावजूद निगम ने इसे जर्जर घोषित किया और गिरा दिया।
घंटाघर गिराने के बाद राजनीति भी शुरू हो गई। अतिक्रमण दस्ते की कार्रवाई के बाद युकां ने आक्रोश व्यक्त किया है। देंवेंद्र तिवारी के नेतृत्व में कलेक्टर को संबोधित ज्ञापन तहसीलदार को सौंपा गया। इसमें घंटाघर को विरासत बताया गया। साथ ही कहा गया कि ये पहचान थी, जर्जर नहीं था। उसके बावजूद कुछ लोगों को लाभ देने के लिए निगम ने मनमानी पूर्ण कार्रवाई की है। सवाल उठता है कि जब कार्रवाई हो रही थी तब न तो जनप्रतिनिधि आगे आए और न ही अन्य समाजसेवी संस्थाएं?
व्यापारियों की मांग पर निगमायुक्त ने इंजीनियरों की 3 सदस्यीय जांच टीम गठित कर घंटाघर का सर्वे कराया था। जांच टीम ने अपने सर्वे रिपोर्ट में घंटाघर को जर्जर बताते हुए लोगों को लिए खतरा बताया था। इंजीनियरों की रिपार्ट के आधार पर निगम प्रशासन ने घंटाघर को जर्जर घोषित करते हुए प्रस्ताव मेयर इन काउंसिल की बैठक में रखा।
पन्नीलाल चौक स्थित घंटाघर विगत ३२ साल से शहर की पहचान था। निगम ने इसे १९८४-८५ में बनवाया था। शुरू में इसमें चार बड़े आकार की घडिय़ां लगाई गईं थीं। इससे लोग अपनी घड़ी का समय सही करते थे। इसके चलते इसका नामकरण घंटाघर के रूप में हुआ। तब से इसकी यही पहचान थी।
पन्नीलाल चौक के बीचोंबीच १०० साल पुराना कुआं है। इसके सौंदर्यीकरण का प्रस्ताव आया था, तो निगम ने घंटाघर बनवाने का निर्णय लिया था। ताकि कुआं भी सुरक्षित रहे और सौंदर्यीकरण भी हो जाए।
नगर निगम प्रशासन ने चार माह पूर्व ही घंटाघर को गिराने का प्रस्ताव तैयार कर लिया था। एमआईसी में इस प्रस्ताव के पास होने की जानकारी पूरे शहर को थी। इसके बावजूद घंटाघर को बचाने शहर का न तो कई सामाजिक संगठन आगे आया और न ही शहर की जनता जागी।