सतना विधायक शंकरलाल तिवारी ने पन्नीलाल के घंटाघर को धराशायी करने क बाद अपना विरोध जताया है। कहा इस तरह के निर्णय बिना आम सहमति के कैसे किए जा रहे है। मैं से बात सुनकर स्वयं हतप्रभ हूं जबकि ऐसा नहीं होना चाहिए था। उन्होंने कहा कि तत्कालीन कमिश्नर ने भी मुझसे चर्चा की थी। साथ ही कहा था शहर सहमत नहीं। इसलिए घंटाघर नहीं गिराया जाएगा।
आरोप है कि शहर के इस चौराहे को भी समाज विशेष के लोगों को सौंपने की तैयारी की गई है। यह चौराहा शहर का हृदय माना जाता रहा है इसका विकास और सौंदर्यीकरण नगर निगम को खुद कराना चाहिए, लेकिन निगम शहर के बाजार क्षेत्र के चौराहों को धर्म समाज के नाम पर ऐसे बांट रहा है जैसे टेंडर हो। बाजार के अलावा शहर के अन्य चौराहे सुंदर बनाने की मांग के साथ मांगने तो कोई नहीं आ रहा सिर्फ बाजार के चौराहों पर ही लोग फोकस हैं। जिस समाज को यह चौराहा देने की तैयारी है उसे पहले ही कई स्थान दिए जा चुके हैं। हाल ही में एक सार्वजनिक कुआं भी दे दिया गया जो बाउंड्री के अंदर कर लिया गया है और अब उससे कोई और पानी तक नहीं प्राप्त कर सकता।
मैं कमजोर नहीं था, इतना बूढ़ा भी नहीं था… लेकिन मुझे मार डाला गया। अभी भी मेरी धमनियां मजबूत थी और कंकाल में जान थी। देखो न गिर के भी अस्तित्व नहीं खोया। ये अलग है कि अंतिम सांसे ले रहा हूँ, क्योंकि जल्द ही दैत्याकार लौह पंजे मेरे अस्तित्व को ही मिटा कर समेट ले जाएंगे। मुझे क्यो मारा गया, मालूम है…? नहीं… तो जान लीजिए… मैंने बीच बाजार धन्नासेठों के सामने सर उठा कर खड़ा होने का साहस जो किया था। अगर मैं भी किसी रहिसजादे कि इमारत होता और मेरी वजह से लोग सड़कों पर मरते रहते तो भी किसी का साहस तब मुझे छूने का न होता। अफसोस है कि मैं किसी धनिक की पैदाइश क्यो न हुआ या मुझे किसी हिन्दू या मुसलमान ने क्यों नही बनाया। वरना औकात नही थी किसी की, इस तरह खुलेआम दिन दहाड़े मुझे कत्ल कर दिया जाता।
मेरी हस्ती उस दादा से तो पूछते जो अपने नाती को मेरे पास लाकर बताते थे। देखो बेटा पहले ऐसे सामुदायिक घडिय़ों से समय देखा जाता था और तब समय की वकत थी। आज उस युवा से पूछो जो अपने बचपन की अठखेली मेरी छाया में की है और मां पापा के साथ फुल्की खाने यहां आया है। उस बूढ़ी दादी से पूछो जिसे दिए कि बाती मेरे आगोश में बैठे लोगों से मिलती थी। उन हिंदुओं से पूछो जिन्होंने कितने भरत मिलाप मेरी ही बांहों में कराए है। उन मुसलमानों से पूछो जिन्होंने ताजिये मेरी छांव में बैठ के ठंडे किये है। उन युवाओं से पूछो जिनकी रंगीनियत मैं हुआ करता था। लेकिन मैं मार डाला गया उन हुक्मरानों के गलत फैसले से, जिन्होंने मेरी मजबूती पर सवाल इस लिए उठाए क्योंकि चंद धन्नासेठों ने रुपयों की थैली से मेरा सौदा कर दिया।