ये भी पढ़ें: पितृपक्ष में गया जाने के लिए चलेंगी स्पेशल ट्रेनें, यहां देखें पूरी समय सारणी पं. हरिनारायण शास्त्री की मानें तों हर वर्ष भाद्रपद की पूर्णिमा से लेकर आश्विन कृष्णपक्ष की अमावस्या तक के काल को पितृ पक्ष या श्राद्ध पक्ष भी कहा जाता है। अंतिम दिन को सर्वपितृ अमावस्या या महालया अमावस्या के रूप में हिन्दू समाज जानता है। शास्त्रों में महालया अमावस्या को पितृ पक्ष या श्राद्ध का सबसे शुभ दिन माना गया है। जिन परिवार के सदस्यों को पूर्वज की सही पुण्यतिथि नहीं मालुम है। वो इस दिन श्रद्धांजलि सहित पिंडदान कर सकते है।
ये भी पढ़ें: जानें कब से शरु हो रहे हैं पितृ पक्ष, कब करें श्राद्ध और किन नियमों का करें पालन 13 सितंबर से चालू हो रहे पितृ पक्ष
हिंदू कैलेंडर के अनुसार हर साल अश्विन मास के कृष्ण पक्ष में पितृ पक्ष पड़ते हैं। अश्विन मास के कृष्ण पक्ष की पूर्णिमा तिथि को श्राद्ध पक्ष की शुरुआत होती है और अमावस्या को इसकी समाप्ति होती है। इस बार पितृ पक्ष 13 सितंबर 2019, पूर्णिमा के दिन से शुरु होकर 28 सितंबर, अमावस्या के दिन खत्म होंगे। पूर्णिमा तिथि से अमावस्या तक पूरा पखवाड़ा श्राद्ध कर्म करने का विधान है। इस दौरान अपने पूर्वजों के प्रति श्रद्धा प्रकट की जाती है, जिसे हम श्राद्ध कहते हैं। हिंदू मान्यताओं के अनुसार पितृ पक्ष में कोई भी नये कार्य नहीं किये जाते हैं और ना ही नए वस्त्र खरीदे या पहनें जाते हैं।
हिंदू कैलेंडर के अनुसार हर साल अश्विन मास के कृष्ण पक्ष में पितृ पक्ष पड़ते हैं। अश्विन मास के कृष्ण पक्ष की पूर्णिमा तिथि को श्राद्ध पक्ष की शुरुआत होती है और अमावस्या को इसकी समाप्ति होती है। इस बार पितृ पक्ष 13 सितंबर 2019, पूर्णिमा के दिन से शुरु होकर 28 सितंबर, अमावस्या के दिन खत्म होंगे। पूर्णिमा तिथि से अमावस्या तक पूरा पखवाड़ा श्राद्ध कर्म करने का विधान है। इस दौरान अपने पूर्वजों के प्रति श्रद्धा प्रकट की जाती है, जिसे हम श्राद्ध कहते हैं। हिंदू मान्यताओं के अनुसार पितृ पक्ष में कोई भी नये कार्य नहीं किये जाते हैं और ना ही नए वस्त्र खरीदे या पहनें जाते हैं।
पिंड के रूप में मिलता है पुरखों को भोजन
पुराणों में बताया गया है कि पुरखों की तृप्ति के लिए श्रद्धा से किया गया तर्पण और पिंडदान, पिंड के रूप में पुरखों को मिलता है। ब्राह्मणों को भोज और भूखें को भोजन देना श्राद्ध कहलाता है। इन दिन किए गए कार्य से पूर्वजों का आर्शिवाद मिलता है। जिससे हमारे घर में सुख शांति और समृद्धि मिलती है। कहा जाता है कि इस दिन अगर पितृ रुष्ट हो गए तो जीवन भर दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।
पुराणों में बताया गया है कि पुरखों की तृप्ति के लिए श्रद्धा से किया गया तर्पण और पिंडदान, पिंड के रूप में पुरखों को मिलता है। ब्राह्मणों को भोज और भूखें को भोजन देना श्राद्ध कहलाता है। इन दिन किए गए कार्य से पूर्वजों का आर्शिवाद मिलता है। जिससे हमारे घर में सुख शांति और समृद्धि मिलती है। कहा जाता है कि इस दिन अगर पितृ रुष्ट हो गए तो जीवन भर दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।
पुरखा ही अपने कुल की रक्षा करते है
पूर्वजों की अशांति के कारण ही परिवार में जन हानि और धन हानि होना शुरू हो जाती है। यमराजगण हर साल पितृ पक्ष या श्राद्ध के समय सभी जीव-जंतुओं को मुक्ति कर देतें है। जिससे परिवार के सदस्यों के पास जाकर तर्पण आदि का भोजन ग्रहण कर सके। पंडितों के अुनसार पुरखा ही अपने कुल की रक्षा करते है। इसको तीन पीढिय़ों तक करने का विधान बताया गया है।
पूर्वजों की अशांति के कारण ही परिवार में जन हानि और धन हानि होना शुरू हो जाती है। यमराजगण हर साल पितृ पक्ष या श्राद्ध के समय सभी जीव-जंतुओं को मुक्ति कर देतें है। जिससे परिवार के सदस्यों के पास जाकर तर्पण आदि का भोजन ग्रहण कर सके। पंडितों के अुनसार पुरखा ही अपने कुल की रक्षा करते है। इसको तीन पीढिय़ों तक करने का विधान बताया गया है।
ये कहलाते है तीन पूर्वज
तीन पूर्वजों में वसु को पिता की तरह, रूद्र को दादा की तरह और आदित्य देव को परदादा की तरह जाना जाता है। पितृ पक्ष या श्राद्ध के समय यही 3 पूर्वज अन्य पूर्वजों का मार्गदर्शन करते हैं। इसलिए शास्त्रों में पितरों का उद्धार करने के लिए पुत्र की अनिवार्यता मानी गई हैं। जन्मदाता माता-पिता को मृत्यु के बाद बेटे विस्मृत न कर दें, इसलिए उनका श्राद्ध करने का विशेष विधान बताया गया है।
तीन पूर्वजों में वसु को पिता की तरह, रूद्र को दादा की तरह और आदित्य देव को परदादा की तरह जाना जाता है। पितृ पक्ष या श्राद्ध के समय यही 3 पूर्वज अन्य पूर्वजों का मार्गदर्शन करते हैं। इसलिए शास्त्रों में पितरों का उद्धार करने के लिए पुत्र की अनिवार्यता मानी गई हैं। जन्मदाता माता-पिता को मृत्यु के बाद बेटे विस्मृत न कर दें, इसलिए उनका श्राद्ध करने का विशेष विधान बताया गया है।
पितृ पक्ष 2019 में श्राद्ध ( Shradh dates in 2019 ) की तिथियां
13 सितंबर- पूर्णिमा श्राद्ध
14 सितंबर- प्रतिपदा
15 सितंबर- द्वितीया
16 सितंबर– तृतीया
17 सितंबर- चतुर्थी
18 सितंबर- पंचमी, महा भरणी
19 सितंबर- षष्ठी
20 अक्टूबर- सप्तमी
21 अक्टूबर- अष्टमी
22 अक्टूबर- नवमी
23 अक्टूबर- दशमी
24 अक्टूबर- एकादशी
25 अक्टूबर- द्वादशी
26 अक्टूबर- त्रयोदशी
27 चतुर्दशी- मघा श्राद्ध
28 अक्टूबर- सर्वपित्र अमावस्या
13 सितंबर- पूर्णिमा श्राद्ध
14 सितंबर- प्रतिपदा
15 सितंबर- द्वितीया
16 सितंबर– तृतीया
17 सितंबर- चतुर्थी
18 सितंबर- पंचमी, महा भरणी
19 सितंबर- षष्ठी
20 अक्टूबर- सप्तमी
21 अक्टूबर- अष्टमी
22 अक्टूबर- नवमी
23 अक्टूबर- दशमी
24 अक्टूबर- एकादशी
25 अक्टूबर- द्वादशी
26 अक्टूबर- त्रयोदशी
27 चतुर्दशी- मघा श्राद्ध
28 अक्टूबर- सर्वपित्र अमावस्या
कहां-कहां किया जाता है पिंडदान
देश में श्राद्ध के लिए हरिद्वार, गंगासागर, जगन्नाथपुरी, कुरुक्षेत्र, चित्रकूट, पुष्कर, बद्रीनाथ सहित 55 स्थानों को महत्वपूर्ण माना गया है। शास्त्रों में पिंडदान के लिए इनमें तीन जगहों को सबसे विशेष माना गया है। इनमें बद्रीनाथ भी है। बद्रीनाथ के पास ब्रह्मकपाल सिद्ध क्षेत्र में पितृदोष मुक्ति के लिए तर्पण का विधान है। हरिद्वार में नारायणी शिला के पास लोग पूर्वजों का पिंडदान करते हैं। बिहार की राजधानी पटना से 100 किलोमीटर दूर गया में साल में एक बार 17 दिन के लिए मेला लगता है।
देश में श्राद्ध के लिए हरिद्वार, गंगासागर, जगन्नाथपुरी, कुरुक्षेत्र, चित्रकूट, पुष्कर, बद्रीनाथ सहित 55 स्थानों को महत्वपूर्ण माना गया है। शास्त्रों में पिंडदान के लिए इनमें तीन जगहों को सबसे विशेष माना गया है। इनमें बद्रीनाथ भी है। बद्रीनाथ के पास ब्रह्मकपाल सिद्ध क्षेत्र में पितृदोष मुक्ति के लिए तर्पण का विधान है। हरिद्वार में नारायणी शिला के पास लोग पूर्वजों का पिंडदान करते हैं। बिहार की राजधानी पटना से 100 किलोमीटर दूर गया में साल में एक बार 17 दिन के लिए मेला लगता है।
पितृ-पक्ष मेला
कहा जाता है पितृ पक्ष में फल्गु नदी के तट पर विष्णुपद मंदिर के करीब और अक्षयवट के पास पिंडदान करने से पूर्वजों को मुक्ति मिलती है। गरुड़ पुराण में कहा गया है कि गया जाने के लिए घर से निकलने पर चलने वाले एक-एक कदम पितरों के स्वर्गारोहण के लिए एक-एक सीढ़ी बनाते हैं।
कहा जाता है पितृ पक्ष में फल्गु नदी के तट पर विष्णुपद मंदिर के करीब और अक्षयवट के पास पिंडदान करने से पूर्वजों को मुक्ति मिलती है। गरुड़ पुराण में कहा गया है कि गया जाने के लिए घर से निकलने पर चलने वाले एक-एक कदम पितरों के स्वर्गारोहण के लिए एक-एक सीढ़ी बनाते हैं।
पिंड दान के लिए कैसे पहुंचे गया
पितृ पक्ष में गया पहुंचकर पिंड दान करने का सबसे बड़ा महत्व है। भारत के अन्य राज्यों के लोग ट्रेन का सहारा लेकर गया पहुंचते है। वहीं कई टूर एंड ट्रेवल कंपनियां बस सहित अन्य माध्यमों से चारों धाम का भ्रमण कराते हुए अन्य तीर्थ स्थानों को घुमाते हुए गया पहुंचती है। गया यात्रा में लोग अपने समर्थ के अनुसार 5 हजार से लेकर 5 लाख तक यात्रा में खर्च कर देते है। रेलवे ने पितृ पक्ष पर एक दर्जन से ज्यादा मेला स्पेशल गाडियां चलाई है।
पितृ पक्ष में गया पहुंचकर पिंड दान करने का सबसे बड़ा महत्व है। भारत के अन्य राज्यों के लोग ट्रेन का सहारा लेकर गया पहुंचते है। वहीं कई टूर एंड ट्रेवल कंपनियां बस सहित अन्य माध्यमों से चारों धाम का भ्रमण कराते हुए अन्य तीर्थ स्थानों को घुमाते हुए गया पहुंचती है। गया यात्रा में लोग अपने समर्थ के अनुसार 5 हजार से लेकर 5 लाख तक यात्रा में खर्च कर देते है। रेलवे ने पितृ पक्ष पर एक दर्जन से ज्यादा मेला स्पेशल गाडियां चलाई है।