दादू... पहिल बार लगा कि पुलिसौ या मेर होत ही, नहीं ता हम डंडा और बत्ती भर जानत रहेन
परसमनिया पठार में महिला सम्मान की रोशनी लेकर पहली बार पहुंची पुलिस ने जगाई आंखों में चमक, जंगल से घिरे गांवों में आज भी शोषण और दहशत के बीच जी रही हैं आदिवासी महिलाएं

सतना. दादू... पहिल दार देखेन कि पुलिस लोगन से इतने मिठास से बात करत ही और या मेर होत ही। नहीं त हम पुलिस का डंडा और गाड़ी के बत्ती भर से जानत रहेन। जउन नाटक देखाय के बताइन कि कइसन हमरे लाने कानून बने हैं और कौन मेर विपत्ति मा शिकायत करके पुलिस से मदद लै सकित है। यह कहना रहा परसमनिया पठार में रहने वाली 52 वर्षीय महिला दुर्घटिया बाई कोल का। परसमनिया में मुख्यमंत्री के महिला अपराध से सुरक्षा और जागरुकता से जुड़े अभियान 'सम्मान' में वह शामिल होने आई थी। यह पहला अवसर था जब यहां पुलिस ने इस तरह का व्यापक जनजागरुकता का कार्यक्रम कर लोगों में विश्वास जगाने की पहल की थी।
परसमनियां, जहां आज भी डरते हैं लोग
परसमनिया पठार सतना जिले का वन आच्छादित वह इलाका है जहां आज भी आम आदमी सामान्य रूप से जाने में डरता है। गहरी खदानों में अपनी जीविका तलाशने वाले आदिवासी परिवार आज भी तमाम शोषण के शिकार तो होते रहते हैं वहीं पूरा क्षेत्र गरीबी, बेरोजगारी और विकास से कोसों दूर है। लेकिन इस पठार में पहली बार महिला अपराध से सुरक्षा और सम्मान के लिए सतना पुलिस इस आदिवासी अंचल की महिलाओं के बीच पहुंची। भाषाई संवाद में किसी तरह का अवरोध न हो इसके लिए नुक्कड़ नाटक के जरिये अपनी बात रखी तो पीपीटी के माध्यम से महिला जागरुकता की अलख जगाई गई।
कुछ देखो तो कुछ कहो...
पुलिस अधीक्षक धर्मवीर सिंह ने इस दौरान महिलाओं को प्रेरित किया कि किसी भी तरह के होने वाले अपराध के लिए आवाज उठाएं। एक नारा भी दिया कि कुछ देखो तो कुछ कहो... चुप न रहो। इस दौरान सहायक पुलिस अधीक्षक हितिका वासल, महिला बाल विकास विभाग के जिला कार्यक्रम अधिकारी सौरभ सिंह भी उपस्थित रहे।
जुटीं 16 पंचायतों की महिलाएं
आदिवासी बाहुल्य परसमनिया पठार की 16 पंचायतों की महिलाओं का दोपहर बाद से ही परसमनिया में जुड़ना शुरू हो गया था और कार्यक्रम तक डेढ़ हजार के लगभग महिलाएं उपस्थित हो गई थीं। वनोपज और पटिया पत्थर की खदानों में जिंदगी की जंग लड़ने वाली यहां की महिलाओं का तमाम कुरीतियों और महिला अपराध से सामना आए दिन होता रहता है। नशे की प्रवृत्ति और जातीय व्यवस्था भी यहां महिलाओं के लिए बड़ी समस्या है। इन सबको देखते हुए सतना पुलिस ने महिला बाल विकास विभाग के सहयोग इस स्थान को चुना गया और महिला सुरक्षा को लेकर कार्यक्रम किया।
नौटंकी को बनाया संवाद का माध्यम
आमतौर पर पुलिस को लेकर मन में बैठे डर को देखते हुए एसपी धर्मवीर सिंह ने नौटंकी की संवाद शैली को माध्यम बनाते हुए पहले यहां नुक्कड़ नाटक के माध्यम से अपनी बात पहुंचाई। नाटक के माध्यम से बताया गया कि किसी भी परेशानी में फंसने पर किस तरह से पुलिस को एक फोन पर बुलाया जा सकता है। कैसे अपनी बात पुलिस को बताई जा सकती है और किस तरह पुलिस मदद करती है। इस दौरान डायल 100, 1098 और 180 का उपयोग और इसके मायने बताए गए। पुलिस का यह चेहरा देखकर यहां की महिलाओं में उत्साह और विश्वास का वातावरण देखने को मिला। इस दौरान महिला हिंसा के विरुद्ध सामूहिक शपथ भी दिलाई गई।
काम के लिए बाहर जाने वालों की पंजी
पुलिस अधीक्षक ने शुरुआत में महिला अपराध को समझाया। जब उन्हें लगा कि उनकी बात पर यहां उपस्थित समुदाय भरोसे से सुन रहा है तो उन्होंने कहा कि कभी भी यहां से बाहर अगर कोई नाबालिक या युवती काम के लिए बाहर जाती है तो उसकी पूरी जानकारी पंचायत में दर्ज की जाए। वह किसके साथ जा रही है, कहां जा रही है, किस तरह का काम है और जहां जा रही है उसका संपर्क नंबर क्या है आदि जानकारी ग्राम पंचायत का जनप्रतिनिधि व पंयायत अमला दर्ज करे और इसकी सूचना पुलिस को भी दे। इससे न केवल नाबालिगों के साथ होने वाली घटनाओं पर रोक लगेगी बल्कि वे सुरक्षित भी रहेंगी। उन्होंने हर तीन माह में यहां इस तरह के संवाद करने का भरोसा भी जगाया। सहायक पुलिस अधीक्षक हितिका वासल ने बाल विवाह, छेड़खानी, घरेलू हिंसा जैसे मामलों पर महिलाओं को विस्तार से बताया।
बनो आप असली हीरो
महिला बाल विकास के सौरभ सिंह ने जिले की मुन्नीबाई कोल का उदाहरण देते हुए बताया कि किस तरीके से एक महिला दूसरी की मदद करके आज प्रदेश की रियल हीरो बन गई है। कहा, आप लोग भी ऐसा करें और प्रदेश में अपना नाम और पहचान बनाए। हर गलत काम का विरोध करने की नसीहत भी उन्होंने दी।
खुद के गीत, खुद के नाटक
इस दौरान उत्साहित महिलाओं और युवतियों ने खुद भी सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किए तो एक छात्रा ने खुद का लिखा गीत गाकर अपनी बात रखी। जिपं सदस्य कमल सिंह मरकाम और उनकी टीम ने लोक नृत्य प्रस्तुत कर महिला हिंसा रोकने का संदेश दिया।
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