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सियासी चेहरे, जिनसे साधी जाती है विंध्य की सियासत

locationसतनाPublished: Nov 11, 2018 02:53:26 am

Submitted by:

Sonelal kushwaha

कोई 40 साल से विधायक तो कोई लोकसभा में कर चुका क्षेत्र का प्रतिनिधित्व

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Political face, which are used in Vindhy’s politics

सतना (सोनेलाल कुशवाहा). विंध्य की राजनीति में कुछ ऐसे सियासी चेहरे हैं जो बीते कई वर्षों से राजनीति में सक्रिय हैं। कभी विधानसभा में क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं तो कभी जनता से चुनकर संसद पहुंच गए। यानी क्षेत्र की राजनीति इन्हीं के इर्दगिर्द घूमती नजर आ रही है। राजनीतिक पार्टियों के साथ-साथ स्थानीय मतदातों ने भी इन पर भरोसा जताया। अब एक बार फिर इन्हीं चेहरों को आगे रखकर प्रमुख राजनीतिक दल विंध्य की रणनीति को साधने में लगे हुए हैं।
भाजपा के चेहरे


नागेंद्र सिंह: विंध्य की राजनीति में 40 साल से सक्रिय हैं। पहले जनसंघ और अब भाजपा से मैदान में हैं। १९७७ में कांग्रेस के महेंद्र सिंह को हराकर पहली बार विधायक चुने गए। 1980, 2003 व 2008 में भी विधायक रहे। प्रदेश सरकार के मंत्री भी रहे। 2014 में भाजपा ने खजुराहो से लोकसभा चुनाव लड़ाया। ढाई लाख वोट से जीतकर सांसद बने।
जुगुल किशोर बागरी: 40 साल से राजनीति में सक्रिय हैं। चार बार रैगांव से विधायक व एक बार प्रदेश सरकार में मंत्री। पहली बार 1980 में निर्दलीय लड़े। विधानसभा के सभी चुनाव लड़ते रहे हैं। 1993 से 2008 तक लगातार चार बार विस में क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया। शिवराज सरकार में मंत्री भी रहे। 2013 में बेटे को चुनाव लड़ाया, लेकिन वह हार गए। इस बार खुद मैदान में हैं।
नागेंद्र सिंह गुढ़: राजनीति की शुरुआत 1985 में की थी। अर्जुन सिंह ने कांग्रेस की सदस्यता दिलाई थी। 1985 के चुनाव में पहली बार विधायक बने। इसके बाद भी कई बार चुनाव लड़े। 2000 में कांग्रेस छोड़ भाजपा ज्वाइन कर ली। 2003 और 2008 में भाजपा की टिकट पर विधायक बने। 2013 के चुनाव में हार गए थे। इसके बाद भी पार्टी ने भरोसा जताया है।
केदारनाथ शुक्ला: सीधी विधानसभा क्षेत्र से लगातार आठवीं बार मैदान में हैं। वे 1980 से विधानसभा के सभी चुनाव लड़ते आ रहे हैं। शुरुआती दौर में सफलता तो नहीं मिली, लेकिन बीते 10 साल से लगातर विधायक हैं। इस बार पार्टी ने एक बार फिर भरोसा जताया है।
राजेन्द्र शुक्ला: राजनीति की शुरुआत 1992 में कांग्रेस पार्टी से की थी। युवा कांग्रेस के कई बड़े पदों पर रहे। इसके बाद 1996 में पार्टी छोड़ भाजपा में शामिल हो गए। 1998 में भाजपा से रीवा सीट पर लड़े और चुनाव हार गए। २००३ में फिर पार्टी ने भरोसा जताया। इसके बाद जीत गए। 2008 और 2013 का चुनाव भी जीता। शिवराज सरकार में कद्दवार मंत्री रहे।
भाजपा के चेहरे


राजेन्द्र सिंह: 40 साल से राजनीति में सक्रिय हैं। पहला चुनाव इन्होंने १९८० में जीता था। तब से 4 बार विधायक, 2 बार मंत्री और 1 बार विधानसभा उपाध्यक्ष बने। बीच में लोकसभा चुनाव भी लड़ा था, लेकिन सफलता नहीं मिली। एक बार इसी सीट से इनके पिता शिवमोहन सिंह भी विधायक बन चुके हैं। पार्टी ने एक बार फिर प्रत्याशी बनाया है।
अजय सिंह: पिता की परम्परागत सीट चुरहट से पहली बार 1985 में विधायक बने। तब से 1990, 1990, 2003, 2008 व 2013 सहित छह बार विधायक बन चुके हैं। 1993 में सीएम सुंदरलाल पटवा के खिलाफ भोजपुर से चुनाव लड़ा। कांग्रेस सरकार में मंत्री और बाद में नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी। २०१४ में सतना से लोकसभा चुनाव भी लड़ा। फिर चुरहट से प्रत्याशी हैं।
मुकेश नायक: 40 साल से राजनीति में सक्रिय हैं। 1985 में दमोह विधानसभा क्षेत्र से प्रदेश के सबसे युवा विधायक बने थे। इसके बाद 1993 में पड़ोसी जिले पन्ना की पवई से दिलहर कुमारी को हराकर चर्चा में रहे। अब तक ३ बार विधायक, एक बार प्रदेश सरकार में मंत्री व पार्टी की संगठनात्मक इकाइयों में विभिन्न पदों पर आसीन रहे।
कमलेश्वर द्विवेदी: 1980 में पहली बार विधायक बने। 1985 व 1990 में भी जीते। 1993 के विधानसभा चुनाव में सपा नेता कृष्ण कुमार से हार गए। जनपद अध्यक्ष रहे, तीन बार विधायक बने 1998 में टिकट न मिलने पर पार्टी से बगावत भी कर चुके हैं। 2013 में मामूली अंतर से हारे। इस बार फिर मैदान में।

सुंदरलाल तिवारी: 30 साल से सक्रिय हैं। पिता की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं। गंगेव जनपद अध्यक्ष के रूप में राजनीतिक कॅरियर शुरू किया। 2013 में गुढ़ से विधायक चुने गए। एक बार सांसद भी रहे। शुरुआती दौर में सत्ता की बजाय संगठन को तरहीज दी। जिलाध्यक्ष व प्रदेश उपाध्यक्ष सहित अन्य कई महत्वपूर्ण पदों पर रहे। गुढ़ से फिर प्रत्याशी।
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