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गीतकार कवि गोपालदास नीरज का निधन, साहित्य जगत में शोक, विंध्य से उनका गहरा नाता रहा

locationसतनाPublished: Jul 20, 2018 04:02:12 pm

Submitted by:

Jyoti Gupta

सतना और रीवा में २० से ज्यादा porgram में शामिल हुए

Reaction of Noted poet on Gopaldas Neeraj death

Reaction of Noted poet on Gopaldas Neeraj death

सतना। गीतकार और कवि गोपालदास नीरज का गुरुवार को निधन हो गया। विंध्य से उनका गहरा नाता रहा है। वे सतना और रीवा में २० से ज्यादा porgram में शामिल हुए और रचनाओं से लोगों में दिल में उतर गए। साहित्य के साथ आम लोगों में भी प्रशंसकों का बड़ा वर्ग उनकी रचनाओं का कायल था। उनके निधन की खबर से साहित्य जगत में शोक की लहर दौड़ पड़ी।
जगत के लिए महाशोक से कम नहीं

कालजयी कविताओं के रचयिता गोपालदास ‘नीरज’ का जाना काव्य जगत के लिए महाशोक से कम नहीं है। नीरज केवल कवि स मेलनों के कवि नहीं थे। बदलते वक्त की र तार को कविता में बांधने की महारथ उन्हें हासिल थी। नीरज 2006 व 2007 में सतना आए। दोनों ही बार उन्हें उनके प्रिय साहित्यिक शिष्य विद्याशंकर मिश्र ‘ऋषिवंश’ लाए।
‘साम गायन’ के विमोचन पर आए

कमजोर स्वास्थ्य के बावजूद नीरज स्नेहवश उनका आमंत्रण ठुकरा नहीं सके। पहली बार नीरज ‘ऋषिवंश’ के काव्य संग्रह ‘साम गायन’ के विमोचन पर आए। और, फिर दूसरी बार राग-विराग के। ऋषिवंश की अगुवाई में सतना के साहित्यिक समाज ने टाउन हाल में ‘नीरज निशा’ रखी। कविताओं से अनुराग रखने वाले उन्हें सुनने के लिए उमड़ पड़े।
कविता की नई परिभाषा गढ़ी

मंचीय कविताओं से इतर नीरज ने चर्चा में कविता की नई परिभाषा गढ़ी। कहा, आंखों की भाषा है कविता। सहज-सादगी और सरस्वती के संगम से ही नीरज की पहचान होती है। उनकी पैनी नजर इंसानों बदलते और दोहरे चरित्र पर भी थी। सतना प्रवास पर नीरज ने कहा था- ‘हर चेहरे पर पैबस्त है एक और ही चेहरा, आदमी अब वल्दियत से पहचाना जाएगा’।
जनवादी कविताएं अधिक लोकप्रिय

उन्होंने कविताओं की तीन धाराएं बताई थीं। पहला छंद विहीन, दूसरा वाचिक परंपरा और तीसरा जनवादी कविताएं। टाउन हाल के कवि सम्मेलन से कुछ ही पहले उन्होंने बताया कि, वाचिक परंपरा की जनवादी कविताएं अधिक लोकप्रिय होती है। क्योंकि, उन्हें गाया जाता है। शब्दों की विरली व्या या भी सिर्फ नीरज के ही बस की बात थी।
कहा, शब्द के तीन आयाम

राग-विराग के विमोचन पर उन्होंने कहा, शब्द के तीन आयाम हैं। शब्द का अर्थ है समाज से प्रदत्त। दूसरा आयाम चित्रात्मक है। वह भी समाज से मिला हुआ है। तीसरा आयाम है ध्वनि। ध्वनि का संबंध नाद से है। और, नाद का संगीत से। नीरज का काव्यात्मक नजरिया प्रकृति से गहरे तक ताल्लुक रखता है। उन्होंने कहा, भारत में नदी, पर्वत, रेल, बारिश सबकुछ गाती है।
नकारात्मक परिवर्तन से आहत थे

यहां तक के बारिश भी लय में बरसती है। नीरज समाज में नकारात्मक परिवर्तन से आहत थे। प्रतिक्रिया में कहा, जिस देश में धर्म, राजनीति, नेता और समाज तक भ्रष्ट हो तो कला कैसे बच सकती है। आॢथक स्वार्थ के लिए लोगों ने चेहरे पर एक और चेहरा लगा लिया है। ऐसे बेबाक रचनाधर्मी के न रहने की पीड़ा लंबे समय तक बनी रहेगी।
उनके निधन के बाद कई रचनाएं याद की गई

नीरज वर्ष 2001 में रीवा जिले के तिवनी गांव में राष्ट्रीय स्तर के साहित्यिक कार्यक्रम में आए। उसमें दर्शकों की बढ़ती मांग के चलते भोर तक उन्होंने कविताएं पढ़ी थी। 20 जुलाई 2005 को अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय के स्थापना दिवस पर आयोजित कार्यक्रम में कई यादगार गीत पेश किए। उनके निधन के बाद कई रचनाएं याद की गई जिसमें ‘कफन बढ़ा तो किसलिए, नजर डबडबा गई। शृंगार क्यों सहम गया, बहार क्यों लजा गई।
कवि सम्मेलनों का कवि

न जन्म कुछ न मृत्यु कुछ बस सिर्फ इतनी बात है, किसी की आंख खुल गई, किसी को नींद आ गई। इसके अलावा अन्य कई रचनाएं याद की गई। रीवा में नीरज ने व्यंग्य कसते हुए कहा था कि उन्हें तो कवि सम्मेलनों का कवि माना जाता है। उनकी रचानाओं को पाठ्यक्रम में जगह नहीं मिल पाई।
Reaction of Noted poet on Gopaldas Neeraj death
Patrika IMAGE CREDIT: Patrika
जब सबसे पहली बार नीरजजी का कवि स मेलन व्यंकट क्रमांक एक में हुआ तो मैं भी गया। और उसी दिन से मैं उनका मुराद हो गया। कवि स मेलन रात 9 बजे से शुरू हुआ और सुबह के 4 कब बज गए पता ही नहीं चला। सही मायने में वो कवि थे। लगभग 12 कवि स मेलन में सुना। उनकी रचनाएं, जो भी सुनता वह महीनों उसी में खो जाता।
चिंतामणि मिश्र, वरिष्ठ साहित्यकार, सतना
निर्देशक के अर्थहीन गीत लिखने की जिद की एवज में उन्होंने फिल्मी दुनिया ही छोड़ दी। वे पहले व्यक्ति थे, जिन्हें साहित्य में पद्म भूषण और पद्म विभूषण दोनों स मान प्राप्त हुए। नीरजजी सतना 14 से 15 बार आ चुके हैं। वो यहाँ सर्किट हाउस या साहित्यकार विद्याशंकर मिश्र ‘ऋशिवंश’ जी के यहां रुकते थे।
वंदना अवस्थी, साहित्यकार
नीरज की सादगी और अंदाज-ए-बयां उप्र की नवाबी अदब की बयानी थी। एक सुगढ़ सुवासित गीतों को रचने वाला गीतकार अपनी पीढ़ी ही नहीं बल्कि आने वाली कई पीढिय़ों को खुद की याद में गुनगुनाने वाले अमर गीतों की पूंजी सौंपकर शांत हो गया। साहित्य के चिरयात्रा के इस पथिक को याद करना हम सबकी जरूरत है। यही उनके लेखन की सफलता है।
अनिल अयान, युवा साहित्यकार, सतना
नीरज जी की रचनाओं में अध्यात्म और चिंतन रहता था। उनके लिखे गीत इतिहास बन गए हैं। रीवा में उनका कई बार आना हुआ, उनके निधन के खबर के बाद से उनकी रचनाएं सामने आ रही हैं। जिस तरह के वह उ दा लेखक थे उस हिसाब से पाठ्यक्रमों में जगह नहीं मिल पाना अफसोस जनक है।
डॉ. चंद्रिका प्रसाद चंद्र, अध्यक्ष हिन्दी साहित्य स मेलन, रीवा
बचपन में जिन्हें पढ़ा, उनके साथ मंच साझा करने का गौरव भी हासिल हुआ। १३ वर्ष पहले विवि के स्थापना दिवस पर आए। जितना यश उन्हें मिला वह किसी भी कवि के लिए धन्यता का विषय है। कई बार विडंबनाएं इतिहास को प्रभावित करती हैं, उनके बारे में जिस तरह पढ़ाया जाना चाहिए, वह अवसर नहीं दिया गया।
प्रो. दिनेश कुशवाह, विभागाध्यक्ष हिन्दी विवि रीवा
बात 1974 की है, जब मैं इलाहाबाद से पढ़ाई कर रहा था। तभी कवि स मेलन में नीरजजी की रचनाएं कविताएं सुनने को मिली। उसके बाद वह मेरे दिल में बस गए। उन्हीं से प्रेरित होते हुए मैंने भी कविताएं लिखनी शुरू की। उन्हीं के साहित्यिक मार्गदर्शन से मैंने उपन्यास निबंध और कविताएं भी लिखी। जब भी वह सतना से गुजरते हैं, मैं उनसे मिलने स्टेशन पहुंच जाता।
विद्याशंकर मिश्र ‘ऋषिवंश’, वरिष्ठ साहित्यकार
नीरज के देहावसान पर मैं हैरान हूं। लोक भाषा विकास परिषद तिवनी और नगर निगम रीवा द्वारा आयोजित कई कार्यक्रमों में वह पहुंचे। उनका जाना गीतों के एक युग का समापन है। व्यक्तिगत रूप से अच्छे संबंध होने के चलते मन व्यथित है। लंबे अर्से तक यादें बनी रहेंगी।
जगजीवनलाल तिवारी, कवि
हिन्दी गीतों को लोकप्रियता के शिखर तक ले जाने वाले गीत ऋषि आदरणीय गोपालदास नीरज का जाना समूचे साहित्य जगत की अपूरणीय क्षति है। आपके जाने से गीतों के एक युग का अवसान हो गया। उनके गीतों को सुनने का अवसर प्राप्त हुआ। आपके गीत युग युगांतर तक उनकी याद दिलाते रहेंगे।
सूर्यभान कुशवाहा, साहित्यकार
पिताजी निर्मल जैन एवं मैंने कई कवि-स मेलनों में उन्हें सतना बुलाया। पिताजी के सतहत्तरवें जन्मदिन पर शाकाहार साधना समारोह में अमृत वाटिका में दो घंटे का एकल काव्यपाठ कराया। जिव्हा पर सरस्वती का वास था। आध्यात्म, शृंगार, प्रेम, वात्सल्य, फिल्म व कुछ गीत तो देशभक्ति से भी ओतप्रोत, अर्थात सभी विधाओं में कलम के कुशल चितेरे थे।
सुधीर जैन, उपाध्यक्ष, हिन्दी साहित्य सम्मेलन
यूसीएल में कवि स मेलनों में संचालक की भूमिका का निर्वाह करते नीरजजी को कवि स मेलनों मे आमंत्रित करने, सुनने, समझने और उनके बहुमुखी व्यक्तित्व को जानने का अवसर मिला। हिन्दी साहित्य के अलावा उन्हें अंग्रेजी साहित्य के सुवि यात कवि जॉन कीट्स की रचनाओं और शैक्सपियर के सुप्रसिद्ध नाटकों मसलन मेकबेथ, हेमलेट पर अच्छी पकड़ थी।
संतोष कुमार खरे, कार्यकारी अध्यक्ष, हिंदी साहित्य सम्मेलन
नीरज को लोग भले ही शृंगार रस का कवि माने हों, भले ही उनकी रचनाओं ने श्रोताओं को करुणा से ओत-प्रोत किया हो, किन्तु वे कवि प्रदीप की तरह ही समाज को चेतना देने वाले जन कवि थे। उनके प्रारंभिक दिनों में मंच पर जिस कविता को सुनने के लिए श्रोता पूरी रात प्रतीक्षा में गुजार देते थे, वह थी- कारवां गुजर गया, गुबार देखते रहे’।
सभाजीत, साहित्यकार

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