इसी तरह से मुर्गा काटना जैसी क्रूर क्रिया दिखाकर समारोह में वीभत्सता का वातावरण बनाया गया। किसी भी राष्ट्रीय पर्व के कार्यक्रम में इस तरह के प्रदर्शन की अनुमति नहीं होती है। इसके बाद भी तमाम बैरियर के बाद यह झांकी पास होकर मंच के सामने तक कैसी पहुंची? यह अपने आपमें बड़ा सवाल बनकर रह गई है।
अलग-अलग जिम्मेदारियां सौंपी थी कलेक्टर ने
गणतंत्र दिवस के मुख्य समारोह को भव्यता प्रदान करने कलेक्टर ने कई बैठक लेकर अलग-अलग जिम्मेदारियां सौंपी थीं। इसमें झांकियों के संबंध में तय किया गया था कि संबंधित विभाग अपनी झांकी की थीम जिला पंचायत को प्रस्तुत करेंगे। इसके बाद इस थीम के स्वीकृत होने के बाद डिप्टी कलेक्टर जीपी अग्रवाल इस पर अपनी सहमति की मुहर लगाएंगे। तब जाकर झांकी संबंधित विभाग द्वारा विभाग प्रमुख की निगरानी में तैयार होगी। यह भी तय प्रक्रिया होती है कि समारोह से पहले एक बार झांकी की विषय वस्तु का अवलोकन किया जाता है कि उससे कोई गलत संदेश तो नहीं जा रहा है। इतनी व्यवस्था होने के बाद भी आजाक विभाग की झांकी ने पूरे किए कराए पर पानी फेर दिया।
गणतंत्र दिवस के मुख्य समारोह को भव्यता प्रदान करने कलेक्टर ने कई बैठक लेकर अलग-अलग जिम्मेदारियां सौंपी थीं। इसमें झांकियों के संबंध में तय किया गया था कि संबंधित विभाग अपनी झांकी की थीम जिला पंचायत को प्रस्तुत करेंगे। इसके बाद इस थीम के स्वीकृत होने के बाद डिप्टी कलेक्टर जीपी अग्रवाल इस पर अपनी सहमति की मुहर लगाएंगे। तब जाकर झांकी संबंधित विभाग द्वारा विभाग प्रमुख की निगरानी में तैयार होगी। यह भी तय प्रक्रिया होती है कि समारोह से पहले एक बार झांकी की विषय वस्तु का अवलोकन किया जाता है कि उससे कोई गलत संदेश तो नहीं जा रहा है। इतनी व्यवस्था होने के बाद भी आजाक विभाग की झांकी ने पूरे किए कराए पर पानी फेर दिया।
हाथ में बीयर की बॉटल, कीचड़ लगाए युवक
आदिम जाति कल्याण विभाग की झांकी की थीम आदिवासी संस्कृति थी। जब इसकी झांकी परेड ग्राउण्ड में पहुंची तो जिसने भी इस झांकी को देखा सन्न रह गया। आदिवासी संस्कृति के नाम पर उनका मजाक उड़ाया जा रहा था। हाथों में बीयर की बोतल लिए नशे में झूमते शरीर में कीचड़ लगाए युवा पता नहीं क्या संदेश देना चाह रहे थे। जबकि यह आदिवासी संस्कृति में होता नहीं है। इसी तरह झांकी में जिंदा मुर्गा बांध कर बीच-बीच में उसे काटने का प्रदर्शन भी वीभत्सता था। हद तो यह थी कि शराब मुर्गा के बहाने आदिवासी संस्कृति का प्रदर्शन कर रहे पात्रों के परिधान कहीं भी आदिवासियों के नहीं थे।
आदिम जाति कल्याण विभाग की झांकी की थीम आदिवासी संस्कृति थी। जब इसकी झांकी परेड ग्राउण्ड में पहुंची तो जिसने भी इस झांकी को देखा सन्न रह गया। आदिवासी संस्कृति के नाम पर उनका मजाक उड़ाया जा रहा था। हाथों में बीयर की बोतल लिए नशे में झूमते शरीर में कीचड़ लगाए युवा पता नहीं क्या संदेश देना चाह रहे थे। जबकि यह आदिवासी संस्कृति में होता नहीं है। इसी तरह झांकी में जिंदा मुर्गा बांध कर बीच-बीच में उसे काटने का प्रदर्शन भी वीभत्सता था। हद तो यह थी कि शराब मुर्गा के बहाने आदिवासी संस्कृति का प्रदर्शन कर रहे पात्रों के परिधान कहीं भी आदिवासियों के नहीं थे।
यह दृश्य कहीं मेल नहीं खा रहा था
थीम के रूप में आदिवासियों के अतीत की जीवन शैली लिखी थी और नीचे पोस्टर से भी यह दृश्य कहीं मेल नहीं खा रहा था। अतिथि दीर्घा में बैठे लोगों ने भी इस प्रदर्शन को आपत्तिजनक माना। इनका कहना था कि आदिवासियों के कल्याण के लिए बनाए गए विभाग की जिम्मेदारी उनके विकास की है लेकिन यहां उनका विकास और मूल संस्कृति न दिखाकर उनका मजाक उड़ाया गया है। जबकि आदिवासियों की नृत्य शैली, घरों की पुताई, प्रकृति प्रेम, उनके सांस्कृतिक कार्यक्रम अपने आप में अनोखे और अलग होते हैं। आदिवासी संस्कृति के नाम पर बनी यह झांकी मुख्य अतिथि दीर्घा के सामने आकर रुक गई और तय समय से काफी देर तक रुकी रही। यह देख अतिथियों को बीच जब अचकचाहट की स्थिति बनी, तब इस झांकी को तत्काल आगे बढ़ाने के लिए निर्देश देना पड़ा।
थीम के रूप में आदिवासियों के अतीत की जीवन शैली लिखी थी और नीचे पोस्टर से भी यह दृश्य कहीं मेल नहीं खा रहा था। अतिथि दीर्घा में बैठे लोगों ने भी इस प्रदर्शन को आपत्तिजनक माना। इनका कहना था कि आदिवासियों के कल्याण के लिए बनाए गए विभाग की जिम्मेदारी उनके विकास की है लेकिन यहां उनका विकास और मूल संस्कृति न दिखाकर उनका मजाक उड़ाया गया है। जबकि आदिवासियों की नृत्य शैली, घरों की पुताई, प्रकृति प्रेम, उनके सांस्कृतिक कार्यक्रम अपने आप में अनोखे और अलग होते हैं। आदिवासी संस्कृति के नाम पर बनी यह झांकी मुख्य अतिथि दीर्घा के सामने आकर रुक गई और तय समय से काफी देर तक रुकी रही। यह देख अतिथियों को बीच जब अचकचाहट की स्थिति बनी, तब इस झांकी को तत्काल आगे बढ़ाने के लिए निर्देश देना पड़ा।
स्वास्थ्य विभाग की झांकी में एनजीओ का प्रचार-प्रसार
इधर, स्वास्थ्य विभाग की झांकी भी विवादों में घिर गई है। विभाग ने अपनी योजनाओं का प्रचार प्रसार न कर एकजुट संस्था का प्रचार करते हुए उसके प्रशिक्षण कार्यक्रम की झांकी दिखाई जो सिफ ग्राम तदर्थ समिति को सेन्सटाइज करने का कार्यक्रम है। जबकि विभाग की लोकव्यापी जनहितैषी कई योजनाएं इस झांकी का हिस्सा नहीं बन सकीं। इसमें सबसे ज्यादा जनहित से जुड़ी आयुष्मान भारत योजना, प्रसूति सहायता योजना शामिल हैं। कई अन्य योजना स्वास्थ्य के संबंध में लोकप्रिय हैं उनको भी झांकी से दूर रखा गया। दरअसल इस झांकी में एकजुट एनजीओ द्वारा बंद हो चुके कार्यक्रम को पुन: राजनीतिक रसूख के तहत हासिल किया गया और पीएलए (सहभागिता, सीख और क्रियान्वयन) के नाम से सतना में एक निजी एनजीओ द्वारा चलाया जा रहा है। इसका जनसामान्य से कोई सीधा वास्ता नहीं है। ऐसे में विभाग में ही यह चर्चा रही कि अधिकारी द्वारा एनजीओ से मिलीभगत कर उसका प्रचार प्रसार किया गया।
इधर, स्वास्थ्य विभाग की झांकी भी विवादों में घिर गई है। विभाग ने अपनी योजनाओं का प्रचार प्रसार न कर एकजुट संस्था का प्रचार करते हुए उसके प्रशिक्षण कार्यक्रम की झांकी दिखाई जो सिफ ग्राम तदर्थ समिति को सेन्सटाइज करने का कार्यक्रम है। जबकि विभाग की लोकव्यापी जनहितैषी कई योजनाएं इस झांकी का हिस्सा नहीं बन सकीं। इसमें सबसे ज्यादा जनहित से जुड़ी आयुष्मान भारत योजना, प्रसूति सहायता योजना शामिल हैं। कई अन्य योजना स्वास्थ्य के संबंध में लोकप्रिय हैं उनको भी झांकी से दूर रखा गया। दरअसल इस झांकी में एकजुट एनजीओ द्वारा बंद हो चुके कार्यक्रम को पुन: राजनीतिक रसूख के तहत हासिल किया गया और पीएलए (सहभागिता, सीख और क्रियान्वयन) के नाम से सतना में एक निजी एनजीओ द्वारा चलाया जा रहा है। इसका जनसामान्य से कोई सीधा वास्ता नहीं है। ऐसे में विभाग में ही यह चर्चा रही कि अधिकारी द्वारा एनजीओ से मिलीभगत कर उसका प्रचार प्रसार किया गया।