चूंद गांव में रहने वाले 84 वर्षीय सूबेदार सिंह बताते हैं, 1971 में मैं और एपीजे अब्दुल कलाम हैदराबाद स्थित डीआरडीओ (डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट ऑर्गनाइजेशन) में मिसाइल परीक्षण का कार्य करते थे। उस समय कलाम सेना में सूबेदार हुआ करते थे। मैं नायब सूबेदार पद पर था। हम दोनों में गहरी मित्रता थी। कुछ दिनों बाद मैं सूबेदार मेजर बना तो मेरे कंधे पर स्टार लगाने वाले सखा एपीजे अब्दुल कलाम ही थे। फिर मैं सेना में ही रह गया और वे मिसाइल परीक्षण करते-करते वैज्ञानिक बनने के बाद देश के राष्ट्रपति बने और अमर हो गए। उस दौरान कलामजी जूता-चप्पल बिल्कुल नहीं पहनते थे। वे अकसर भोजन की जगह फल-फूल खा लेते थे। पूछने पर बोलते कि भोजन करने से आलस्य आती है। हमको देखने के बाद अकसर बघेली में बात करने की कोशिश करते थे। अंग्रेजी का उपयोग कम करते थे।
सूबेदार सिंह के बेटे धर्मेंद्र सिंह ने पत्रिका को बताया, हम चार भाई हैं। बड़े भाई कुलदीप सिंह सेना में हैं। दूसरे नंबर पर मैं गांव में खेती-किसानी करता हूं। छोटे भाई राकेश सिंह आर्मी के आमर्ड कोर में और चौथे नंबर के भाई विनय सिंह आर्मी के एएससी में पदस्थ हैं। पिताजी अकसर एपीजे अब्दुल कलाम और अपनी दोस्ती का जिक्र करते हैं। आज भी घर में एपीजे अब्दुल कलाम के प्रसंशा पत्र सहित मेडल और फोटो सहेज कर रखे हैं। अपने कमरे को उन्होंने म्यूजियम बना लिया है।
कोटर से सात किमी. दूर स्थित चूंद गांव सैनिकों की नर्सरी है। 3500 की आबादी वाले गांव में 400 से ज्यादा युवा सेना में भर्ती होकर देशसेवा कर रहे हैं। हकीकत ऐसी है कि गांव के हर घर से एक युवक फौज में है। चूंद के महेश सिंह बताते हैं कि चूंद और कुआं गांव से पांच-छह जवान शहीद हो चुके हैं। कुछ जवान गोली लगने और बम से घायल होकर विकलांग हो चुके है फिर भी देश प्रेम का जज्बा कम नहीं हुआ। गांव की महिलाएं आज भी अपने बच्चों को सेना में जाने के लिए प्रेरित करती है।