ये है मामला
स्थानीय जनों का आरोप है कि प्र्रशासन ने मिलीभगत करके बल पूर्वक भू-कारोबारियों का सहयोग कर एक तालाब को खत्म करने की साजिश रची है। लड़ाई स्वत्व की नहीं, बल्कि तालाब के स्वरूप की है। पूरे मामले में कलेक्टर का एक फैसला विवाद का विषय बना है, जिस पर न तो प्रशासन कुछ स्पष्ट बोल पा रहा है और ना ही स्थानीय जन इसे उपलब्ध करवा पा रहे हैं।
स्थानीय जनों का आरोप है कि प्र्रशासन ने मिलीभगत करके बल पूर्वक भू-कारोबारियों का सहयोग कर एक तालाब को खत्म करने की साजिश रची है। लड़ाई स्वत्व की नहीं, बल्कि तालाब के स्वरूप की है। पूरे मामले में कलेक्टर का एक फैसला विवाद का विषय बना है, जिस पर न तो प्रशासन कुछ स्पष्ट बोल पा रहा है और ना ही स्थानीय जन इसे उपलब्ध करवा पा रहे हैं।
विवादित जमीन सरकारी तालाब
मौके पर जब अधिकारी पहुंचे, तो बगहा की जनता की ओर से राजशाही जमाने से लेकर 58-59 की खतौनी तक के दस्तावेज मौके पर दिखाए गए। इससे स्पष्ट है कि राजशाही जमाने में विवादित जमीन सरकारी तालाब रही और काश्तकारों के रूप में कई नाम दर्ज भी थे। यह जमीनें बकायदे सरकारी तालाब, अगोल, मेड़ के रूप में दर्ज है। वहीं जनता का कहना था कि जमीन के मालिकाना हक पर कोई आपत्ति नहीं है। लेकिन तालाब की जमीन का स्वरूप नहीं बदला जा सकता है। लेकिन हालिया जिला प्रशासन और सरकारी अमला इस दिशा में जमीन कारोबारियों के इशारे पर काम कर रहा है। लेकिन, मालिकाना हक के आधार प्रशासन ने निर्माण की अनुमति दे दी।
मौके पर जब अधिकारी पहुंचे, तो बगहा की जनता की ओर से राजशाही जमाने से लेकर 58-59 की खतौनी तक के दस्तावेज मौके पर दिखाए गए। इससे स्पष्ट है कि राजशाही जमाने में विवादित जमीन सरकारी तालाब रही और काश्तकारों के रूप में कई नाम दर्ज भी थे। यह जमीनें बकायदे सरकारी तालाब, अगोल, मेड़ के रूप में दर्ज है। वहीं जनता का कहना था कि जमीन के मालिकाना हक पर कोई आपत्ति नहीं है। लेकिन तालाब की जमीन का स्वरूप नहीं बदला जा सकता है। लेकिन हालिया जिला प्रशासन और सरकारी अमला इस दिशा में जमीन कारोबारियों के इशारे पर काम कर रहा है। लेकिन, मालिकाना हक के आधार प्रशासन ने निर्माण की अनुमति दे दी।
केके खरे ने खुद लिया था संज्ञान
ज्यादातर तालाब की आराजियां विवादित हैं और जनता इन तालाबों को बचाने में जुटी है। ऐसा ही मामला जगतदेव तालाब का भी था। आराजी भी निजी भू-स्वामित्व की थी। तब मामला संज्ञान में आने पर तत्कालीन कलेक्टर केके खरे मौके पर सभी दस्तावेजों के साथ पहुंचे थे और उसे वाजिब-उल-अर्ज करने खुद प्रकरण कायम करवाया था। तत्कालीन कलेक्टर मनीष रस्तोगी भी इस तालाब के लिए आम जनता की ओर खड़े नजर आए थे।
ज्यादातर तालाब की आराजियां विवादित हैं और जनता इन तालाबों को बचाने में जुटी है। ऐसा ही मामला जगतदेव तालाब का भी था। आराजी भी निजी भू-स्वामित्व की थी। तब मामला संज्ञान में आने पर तत्कालीन कलेक्टर केके खरे मौके पर सभी दस्तावेजों के साथ पहुंचे थे और उसे वाजिब-उल-अर्ज करने खुद प्रकरण कायम करवाया था। तत्कालीन कलेक्टर मनीष रस्तोगी भी इस तालाब के लिए आम जनता की ओर खड़े नजर आए थे।
आदेश के बाद बैकफुट पर आम जनता
जनता की ओर से अपर आयुक्त रीवा कोर्ट का एक आदेश एसडीएम के समक्ष प्रस्तुत किया गया। इसमें उल्लेख है कि विवादित जमीन सार्वजनिक उपयोग व तालाब के रूप में उपयोग होती है। निगरानीकर्ता कलेक्टर के समक्ष अपना पक्ष रखे। इस आधार पर निगरानी को खारिज कर दिया गया, साथ ही कलेक्टर सतना के प्रकरण क्रमांक 68/अ-74/06-07 में पारित आदेश दिनांक 08.05.2007 को यथावत रखने का भी आदेश दिया गया। लेकिन आम जनता 30/05/2014 को जारी इस आदेश में 8 मई 2007 के उल्लेखित पत्र को दिखा नहीं सकी। विवादित मामले में ज्ञापन प्राप्त होने के बाद भी सरकारी अमले ने भी 8 मई 2007 के आदेश को देखने की जहमत नहीं उठाई।
जनता की ओर से अपर आयुक्त रीवा कोर्ट का एक आदेश एसडीएम के समक्ष प्रस्तुत किया गया। इसमें उल्लेख है कि विवादित जमीन सार्वजनिक उपयोग व तालाब के रूप में उपयोग होती है। निगरानीकर्ता कलेक्टर के समक्ष अपना पक्ष रखे। इस आधार पर निगरानी को खारिज कर दिया गया, साथ ही कलेक्टर सतना के प्रकरण क्रमांक 68/अ-74/06-07 में पारित आदेश दिनांक 08.05.2007 को यथावत रखने का भी आदेश दिया गया। लेकिन आम जनता 30/05/2014 को जारी इस आदेश में 8 मई 2007 के उल्लेखित पत्र को दिखा नहीं सकी। विवादित मामले में ज्ञापन प्राप्त होने के बाद भी सरकारी अमले ने भी 8 मई 2007 के आदेश को देखने की जहमत नहीं उठाई।
एक पक्ष की ओर से प्रशासन खड़ा नजर आया
प्रशासन का दावा है कि यह जमीन संबंधित स्थल पर निर्माण कर रहे स्वत्वधारियों की है। उनके द्वारा सही निर्माण किया जा रहा है। सवाल यह है कि इस जमीन का विवाद महज दो पक्षों का आम विवाद न होकर जनहित से जुड़ा है। ऐसे में प्रशासन की कोई भी दस्तावेजी तैयारी मौके पर नहीं दिखी। न तो यहां संबंधित पटवारी मौजूद दिखा और जो पटवारी था उसके पास संबंधित कोई दस्तावेज नहीं थे।
प्रशासन का दावा है कि यह जमीन संबंधित स्थल पर निर्माण कर रहे स्वत्वधारियों की है। उनके द्वारा सही निर्माण किया जा रहा है। सवाल यह है कि इस जमीन का विवाद महज दो पक्षों का आम विवाद न होकर जनहित से जुड़ा है। ऐसे में प्रशासन की कोई भी दस्तावेजी तैयारी मौके पर नहीं दिखी। न तो यहां संबंधित पटवारी मौजूद दिखा और जो पटवारी था उसके पास संबंधित कोई दस्तावेज नहीं थे।