कलेक्टर के निर्देश पर चार विभाग के कार्यपालन यंत्री शुक्रवार को जांच करने पहुंचे। इसमें कार्यपालन यंत्री लोक निर्माण विभाग पीके विश्वकर्मा, गृह निर्माण मंडल के केएल अहिरवार, एनएचएम एमएस खरे, पीआईयू बीएल चौरसिया शामिल रहे। टीम ने सुबह 11 बजे से दोपहर 2 बजे तक भवन का बारीकी से जायजा लिया। मेंटीनेंस के लिए तोड़ी गई छत का भी जायजा लिया। भवन के अंदर के भी हालात देखे। ऊंचाई पर लगाए गए शेड का भी मुआयना किया। सूत्रों की मानें तो टीम ने भवन की वर्तमान स्थिति पर रिपोर्ट तैयार की। उसमें सभी कार्यपालन यंत्रियों ने एकमत होकर नई ओपीडी भवन की मरम्मत की जगह गिराने की सिफारिश की है।
नगर निगम द्वारा बीआरजीएफ (बैकवर्ड रिजर्व ग्रांट फंड) से जिला अस्पताल परिसर में नए ओपीडी भवन का निर्माण कराया गया था। इसकी शुरुआत वर्ष 2011 में की गई, लेकिन भवन का निर्माण आधा-अधूरा छोड़कर ठेकेदार भाग खड़ा हुआ था। ऐसे में बिल्डिंग का निर्माण कार्य का पूरा करने जनभागीदारी मद से 20 लाख रुपए और स्वीकृत किए गए। तब मुश्किल से पांच साल बाद नई ओपीडी भवन का निर्माण कार्य पूरा हो पाया था। अब चार साल बाद गिराने का निर्णय कर लिया गया।
नई ओपीडी की छत का प्लास्टर गिरने से स्टाफ नर्स गंभीर रूप से घायल हो गई थी। इसके बाद पीडब्ल्यूडी और एनएचएम निर्माण इकाई को मेंटीनेंस का जिम्मा सौंपा गया। दोनों महकमों के उपयंत्रियों की निगरानी में मरम्मत कार्य शुरू हुआ। इस दौरान उपयंत्रियों ने पाया कि महज छह कक्ष नहीं बल्कि सभी चिकित्सक कक्षों की छत का प्लास्टर गुणवत्ताहीन तरीके से किया गया है। प्रबंधन को बताया कि पूरे भवन का मेंटीनेंस आवश्यक है। छत के अलावा जो शेड लगाए गए हैं वे भी कमजोर हैं। आंधी-तूफान आने से कभी भी बड़ा हादसा हो सकता है।
नए ओपीडी भवन का छज्जे कई बार गिर चुका है। गत दिनों ऐसे ही हादसे में एक नर्स को सिर में गंभीर चोट लगी थी। टांके तक लगाने पड़े थे। इसके बाद अस्पताल प्रबंधन ने पूरे भवन के मरम्मत का निर्णय लिया था। बाद में पता चला कि पूरा छज्जा ही गुणवत्ताविहीन है। मरम्मत से काम नहीं चलने वाला।
– निर्माण कार्य शुरू-2011
– भवन की लागत-70 लाख से, आधा निर्माण कार्य छोड़ा
– लागत बढ़ाई- 20 लाख
– निर्माण कार्य पूरा- 2015-16
– ओपीडी का संचालन-2015-16
– भवन डिसमेंटल करने का अभिमत-2019