बचपन से कलाकारी का शौक
एक सामान्य से परिवार में जन्मे उदयभान को बचपन से ही कलाकारी का शौक था। वे बताते हैं कि शुरू में मिट्टी से कुछ न कुछ बनाता रहता था। सामान्य परिवार से होने के कारण उचित मंच नहीं मिल पाता था। 2013 में एक दोस्त के माध्यम से आर्ट इचौल पहुंचा। वहां आर्ट गैलरी के संचालक अंबिका बेरी के पिता ने टेस्ट लिया। पहली बार चायना क्ले से काम किया। खिलौने और गाय.बैल बनाए पर मुझसे चायना क्ले संभल नहीं पाई। हालांकि उन लोगों को मेरी गाय बहुत पसंद आई और मुझे यह कहते हुए रख लिया कि तुम गाय ही बनाओगे।
एक सामान्य से परिवार में जन्मे उदयभान को बचपन से ही कलाकारी का शौक था। वे बताते हैं कि शुरू में मिट्टी से कुछ न कुछ बनाता रहता था। सामान्य परिवार से होने के कारण उचित मंच नहीं मिल पाता था। 2013 में एक दोस्त के माध्यम से आर्ट इचौल पहुंचा। वहां आर्ट गैलरी के संचालक अंबिका बेरी के पिता ने टेस्ट लिया। पहली बार चायना क्ले से काम किया। खिलौने और गाय.बैल बनाए पर मुझसे चायना क्ले संभल नहीं पाई। हालांकि उन लोगों को मेरी गाय बहुत पसंद आई और मुझे यह कहते हुए रख लिया कि तुम गाय ही बनाओगे।
कोरोना ने रोकी राह
उदय बताते हैं कि 2017 में उनका पहला बड़ा एक्जीबिशन कोलकाता में हुआ। इसके बाद दिल्ली और चायना में हुआ। चायना गया नहीं पर मेरे बनाए सभी सिरेमिक काऊ बिक गए। वहीं से ऑस्ट्रेलिया का रास्ता मिला। वहां की एक संस्था ने 2020 अंत में संपर्क कर 2021 में ऑस्ट्रेलिया में लगने वाली एक्जीबिशन का न्यौता दिया। लेकिनए कोरोना ने राह रोक दी और मेरे विदेश जाने का सपना चूर.चूर हो गया।
उदय बताते हैं कि 2017 में उनका पहला बड़ा एक्जीबिशन कोलकाता में हुआ। इसके बाद दिल्ली और चायना में हुआ। चायना गया नहीं पर मेरे बनाए सभी सिरेमिक काऊ बिक गए। वहीं से ऑस्ट्रेलिया का रास्ता मिला। वहां की एक संस्था ने 2020 अंत में संपर्क कर 2021 में ऑस्ट्रेलिया में लगने वाली एक्जीबिशन का न्यौता दिया। लेकिनए कोरोना ने राह रोक दी और मेरे विदेश जाने का सपना चूर.चूर हो गया।
किसी से नहीं मिली मदद
उदय बताते हैं कि ऑस्ट्रेलिया जाना तो कैंसिल हो गया पर वहां से मुझसे 200 काऊ मांगे गए। किसान परिवार से होने के नाते मेरे पास इनता रुपया नहीं था कि मैं सभी क्ले खरीदकर 200 काऊ विदेश भेज सकूं। तब मैंने सांसद सहित अन्य जनप्रतिनिधियों से मदद मांगी। हर जगह से निराशा हाथ लगी। किसी तरह बचत के पैसे से 50 काऊ बनाकर भेजाए जो वहां इतना पसंद आए कि मुझे सिरेमिक क्राफ्ट में पहला स्थान मिला। मेरी कलाकारी वहां की जॉन कार्टिन यूनिवर्सिटी की गैलरी में लगवाई गई।
उदय बताते हैं कि ऑस्ट्रेलिया जाना तो कैंसिल हो गया पर वहां से मुझसे 200 काऊ मांगे गए। किसान परिवार से होने के नाते मेरे पास इनता रुपया नहीं था कि मैं सभी क्ले खरीदकर 200 काऊ विदेश भेज सकूं। तब मैंने सांसद सहित अन्य जनप्रतिनिधियों से मदद मांगी। हर जगह से निराशा हाथ लगी। किसी तरह बचत के पैसे से 50 काऊ बनाकर भेजाए जो वहां इतना पसंद आए कि मुझे सिरेमिक क्राफ्ट में पहला स्थान मिला। मेरी कलाकारी वहां की जॉन कार्टिन यूनिवर्सिटी की गैलरी में लगवाई गई।
तमन्ना कलाकारी को जिंदा रखने की
उदय की तमन्ना इस कलाकारी को जिंदा रखना है। वे बताते हैं कि मेरे परिवार में पत्नीए एक बेटा सहित 5 बेटियां हैं। बेटियों की लगन भी कलाकारी में है। हमने गरीबी के बीच संघर्ष किया। आगे मैं उन बच्चों को प्रशिक्षित करना चाहता हूं जो इसमें रुचि रखते हैं। ताकि यह कलाकारी जीवित रहे। उदय का मानना है कि यहां प्रतिभा की कद्र करने वाले बहुत कम हैं। मेरी प्रतिभा को तो अम्बिका मैम ने पहचान लियाए पर हर किसी के पास ऐसा अवसर थोड़े आता है।
उदय की तमन्ना इस कलाकारी को जिंदा रखना है। वे बताते हैं कि मेरे परिवार में पत्नीए एक बेटा सहित 5 बेटियां हैं। बेटियों की लगन भी कलाकारी में है। हमने गरीबी के बीच संघर्ष किया। आगे मैं उन बच्चों को प्रशिक्षित करना चाहता हूं जो इसमें रुचि रखते हैं। ताकि यह कलाकारी जीवित रहे। उदय का मानना है कि यहां प्रतिभा की कद्र करने वाले बहुत कम हैं। मेरी प्रतिभा को तो अम्बिका मैम ने पहचान लियाए पर हर किसी के पास ऐसा अवसर थोड़े आता है।