हर साल औसतन तीन उद्यमों में ताला लटक जाता है। एक अनुमान के मुताबिक, विगत १५ साल में ५० से ज्यादा उद्यम बंद हो गए। इसमें ७० फीसदी कृषि आधारित उद्यम शामिल थे। जो बचे हैं वो भी बदहाली के दौर से गुजर रहे हैं। इन परंपरागत उद्यमों में कब ताला लग जाए, कोई कह नहीं सकता।
८४ कंपनियां स्थापित सतना के औद्योगिक क्षेत्र कोलगवां की बात करें तो यहां ९७ उद्यम स्थापित करने के लिए प्लाट थे। उसमें ८४ कंपनियां स्थापित की गईं थीं। वर्तमान स्थिति में करीब ५० उद्यम संचालित हो रहे हैं। शेष ३४ उद्यम बंद हो गए। इसमें से कई उद्यम तो शुरुआती दौर में ही बंद हो गए, जिन्हें पुन: चालू नहीं किया गया।
कृषि आधारित उद्यम सर्वाधिक प्रभावित
सतना में बंद होने वाले उद्यमों में सबसे ज्यादा कृषि आधारित उद्यम रहे हैं। विगत १५ साल के दौरान २५ दाल मिलें बंद हो गईं। इसी तरह चार तेल मिल पर ताला लटक गया। इस तरह केवल सतना शहर में २९ कृषि आधारित उद्यम बर्बाद हो गए। जो शेष बचे हैं वे भी संघर्षपूर्ण स्थिति में हैं। विगत दो साल से खेती ठीक रही है, जिसके कारण इन उद्यमों को जीवनदान मिला हुआ है। अगर, एक साल भी कृषि प्रभावित हुई, तो उद्यम बर्बाद हो जाएंगे।
सतना में बंद होने वाले उद्यमों में सबसे ज्यादा कृषि आधारित उद्यम रहे हैं। विगत १५ साल के दौरान २५ दाल मिलें बंद हो गईं। इसी तरह चार तेल मिल पर ताला लटक गया। इस तरह केवल सतना शहर में २९ कृषि आधारित उद्यम बर्बाद हो गए। जो शेष बचे हैं वे भी संघर्षपूर्ण स्थिति में हैं। विगत दो साल से खेती ठीक रही है, जिसके कारण इन उद्यमों को जीवनदान मिला हुआ है। अगर, एक साल भी कृषि प्रभावित हुई, तो उद्यम बर्बाद हो जाएंगे।
पहचान पर लटका ताला
कई उद्यम ऐसे भी रहे जिनकी पहचान पूरे विंध्य में होती रही। वे उद्यम भी समय के साथ सफल नहीं हो पाए और देखते ही देखते ताला लग गया। पुरुस्वानी दाल मिल, विद्या कॉस्टिंग, कल्पना पॉलीमर, शारदा एल्यूमीनिमय जैसे उद्यमों का बड़े स्तर पर कारोबार होता था। ८० के दसक में इनका टर्नओवर करोड़ के पार था। उसके बावजूद ये उद्यम स्वयं को नहीं बचा सके।
कई उद्यम ऐसे भी रहे जिनकी पहचान पूरे विंध्य में होती रही। वे उद्यम भी समय के साथ सफल नहीं हो पाए और देखते ही देखते ताला लग गया। पुरुस्वानी दाल मिल, विद्या कॉस्टिंग, कल्पना पॉलीमर, शारदा एल्यूमीनिमय जैसे उद्यमों का बड़े स्तर पर कारोबार होता था। ८० के दसक में इनका टर्नओवर करोड़ के पार था। उसके बावजूद ये उद्यम स्वयं को नहीं बचा सके।
सरकारी प्रयास कुछ नहीं
गल्ला व्यापारी व मिल संचालक हनुमान गोयल ने सतना को औद्योगिक नगरी के रूप में देखा है और पतन के भी साक्षी रहे हैं। उनका मानना है कि सरकार व प्रशासन से बंद होने वाले उद्योगों को बचाने के लिए कोई प्रयास नहीं हुए। कभी मजदूरों की कमी तो कभी परिवहन की समस्या दाल व तेल मिलो पर भारी पड़ी। अन्य उद्यमों के लिए कच्चा माल चुनौती बना।
गल्ला व्यापारी व मिल संचालक हनुमान गोयल ने सतना को औद्योगिक नगरी के रूप में देखा है और पतन के भी साक्षी रहे हैं। उनका मानना है कि सरकार व प्रशासन से बंद होने वाले उद्योगों को बचाने के लिए कोई प्रयास नहीं हुए। कभी मजदूरों की कमी तो कभी परिवहन की समस्या दाल व तेल मिलो पर भारी पड़ी। अन्य उद्यमों के लिए कच्चा माल चुनौती बना।
बड़े पैमाने पर उद्यम बंद हो रहे हैं। इसके लिए कई फैक्टर जिम्मेदार हैं। ऐसे उद्योग खुल गए जिनके लिए जिले में कच्चा माल नहीं था। कृषि आधारित उद्यम सूखे की भेंट चढ़ गए। इन उद्यम को बचाने के लिए शासनस्तर पर कभी प्रयास ही नहीं हुए।
मनविंदर ओबराय, सचिव, जिला उद्योग संघ, सतना
मनविंदर ओबराय, सचिव, जिला उद्योग संघ, सतना