महाराष्ट्र के थाणे जिले के आसपास दामु और तालासेरि तालुके में रहने वाली वर्ली नामक आदिवासी जनजाति के नाम पर ही इस पारंपरिक कला को वरली पेंटिंग कहा जाता है। भित्ति चित्र की यह शैली महाराष्ट्र की इसी जनजाति की परंपराओं और रीति-रिवाजों से जुड़ी है। महाराष्ट्र का यह सहयाद्री पर्वतमालाओं के बीच स्थित है। फसल के सीजन व शादी के अवसर पर स्त्रियां अपने घर के मुख्यद्वार और घर की बाहरी दीवारों को मिट्टी और गोबर से लीप कर उस पर कोयले के पाउडर में बरगद या पीपल के पेड़ के तने से निकाले गए गोंद को मिलाकर पहले काले रंग की पृष्ठभूमि तैयार करती हैं।
प्लेटफॉर्म 1 में निर्माणाधीन लिफ्ट, वेटिंग हाल, इलेक्ट्रानिक डिस्प्ले और रिजर्वेशन काउंटर के बाहर बनी पेंटिंग हूबहू जबलपुर, पुणे, भोपाल सहित अन्य बड़े शहरों के स्टेशन में बनी हुई हैं। स्टेशन में 10 मार्च से 10 अप्रैल तक प्लेटफॉर्म एक, वेटिंग हाल, टिकट काउंटर हाल व अन्य जगहों पर 40 वाल पेंटिंग तैयार की गई हैं। इनमें से करीब 10 ऑयल पेंटिंग हैं।सतना सेक्शन में रीवा व मैहर में भी वरली पेंटिंग बनाई गई हैं। स्टेशन में एलइडी व रंगीन लाइट में रात के वक्त यह पेंटिंग और आकर्षक हो जाती हैं।