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SATNA: शस्त्र लाइसेंस फर्जीवाड़े में एसटीएफ ने दर्ज की एफआईआर, दो लिपिक सहित अन्य आरोपी

locationसतनाPublished: Feb 14, 2020 01:28:39 am

Submitted by:

Ramashankar Sharma

एक सप्ताह तक सतना में एसटीएफ ने की जांचलगभग 116 शस्त्र लाइसेंसों में पाई गड़बड़ी25 मामलों में अभी दर्ज की गई एफआईआर

SATNA: STF filed FIR in arms license fraud

एसटीएफ एडीजी अशोक अवस्थी ने शस्त्र लाइसेंस घोटाले का किया खुलासा

सतना. सतना में हुए प्रदेश के सबसे बड़े शस्त्र लाइसेंस फर्जीवाड़े में एसटीएफ ने एफआईआर दर्ज कर लिया है। मामले में संबंधित शस्त्र शाखा के दो लिपिकों युगुल किशोर गर्ग, अभयराज सिंह सहित अन्य पर प्रकरण दर्ज किया गया है। अभी किसी की गिरफ्तारी नहीं हो सकी है। अभी जिन 25 शस्त्र लाइसेंसों में गड़बड़ी के आधार पर प्रकरण दर्ज किया गया है उनमें चित्रकूट विधायक नीलांशु चतुर्वेदी का भी नाम है। एसटीएफ एडीजी अशोक अवस्थी ने इसकी जानकारी देते हुए बताया है कि अभी जांच जारी है।
पत्रिका ने किया था खुलासा और अंजाम तक पहुंचाया

शस्त्र लाइसेंस फर्जीवाड़े का खुलासा सबसे पहले पत्रिका ने किया था। 2013 में इस मामले का बड़ा खुलासा होने पर तत्कालीन प्रभारी कलेक्टर अभिजीत अग्रवाल ने खबर को संज्ञान में लेते हुए तत्कालीन सहायक कलेक्टर प्रवीण सिंह अढ़ायच को जांच के निर्देश दिए थे। अढ़ायच ने मामले की प्राथमिक जांच में तीन दर्जन लाइसेंसों में गड़बड़ी पाई थी और इसका प्रतिवेदन सौंपा था। इसके बाद अवकाश से लौट कर तत्कालीन कलेक्टर मोहनलाल मीना ने तत्कालीन एडीएम सुरेश कुमार के नेतृत्व में जंबो टीम गठित कर ३०० से ज्यादा लाइसेंसों में गड़बड़ी पकड़ी। जिसका प्रतिवेदन संभागायुक्त को भी भेजा गया। इसी बीच आरोपी लिपिक के पुत्र की ओर से उच्च न्यायालय में याचिका दाखिल कर जांच रुकवाने का प्रयास किया गया। न्यायालय के डायरेक्शन के बाद जांच ठंडे बस्ते में गई तो एक बार फिर पत्रिका ने मामले को उठाया। जिसके बाद संभागायुक्त ने नई कमेटी गठित की। जिसमें एडीएम मूलचंद वर्मा के नेतृत्व में डिप्टी कलेक्टर सपना त्रिपाठी ने जांच की जिसमें लगभग 260 लाइसेंसों में गड़बड़ी सामने आई। यह जांच रिपोर्ट कलेक्टर को सौंप दी गई। इस बीच एक बार फिर आरोपी लिपिक के परिजनों ने मामला प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया में लगाया। जहां से पत्रिका को क्लीन चिट दी गई। इधर मामला ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। जिसको लेकर पत्रिका ने फिर से मामला उठाया। पत्रिका की खबर को आधार बनाते हुए मामला विधानसभा में उठाया गया। जिसके बाद प्रकरण फिर जांच में आया। उधर इस मामले पर नजर एनआईए की पड़ी। जिसके बाद एसटीएफ जबलपुर सतना पहुंची। लेकिन यहां के तत्कालीन स्टाफ ने आरोपियों के दबाव में एसटीएफ को लिखित में गलत जानकारी दी कि न्यायालय के आदेश से जांच रोक दी गई है। एक बार फिर मामला ठंडा पड़ गया लेकिन पत्रिका में इस गफलत को भी सामने लाया गया और एसटीएफ को भ्रम में डालने का खुलासा किया गया। जिसके बाद एसटीएफ भोपाल सक्रिय हुई और सतना पहुंच कर पूरे मामले की जांच की। कलेक्टर सतेन्द्र सिंह ने भी सभी दस्तावेज एसटीएफ को सौंपे। जिसमें सच सामने आया और पत्रिका की खबरें सटीक साबित हुईं। अब तक 116 प्रकरणों की जांच पूरी हो चुकी है। 50 के लगभग लाइसेंसों की मूल नस्तियां गायब हैं। 80 प्रकरण एसटीएफ अपने साथ लेकर गई है जिसमें अभी 25 मामलों में प्रकरण दर्ज किया गया है।
फर्जीवाड़ा अभी और बड़ा है, 50 लाइसेंसों की मूल नस्तियां गायब हैं

एसटीएफ भोपाल ने अभी 25 शस्त्र लाइसेंसों में गड़बड़ी के आधार पर शस्त्र शाखा के तत्कालीन लिपिकों सहित अन्य के विरुद्ध प्रकरण दर्ज किया है लेकिन मामला इससे भी ज्यादा गंभीर है। शस्त्र लाइसेंस फर्जीवाड़े से जुड़ी 50 के लगभग मूल नस्तियां गायब हैं। शस्त्र शाखा से मूल नस्तियों के गायब होने का मामला अत्यंत गंभीर है और यह एसटीएफ के भी संज्ञान में है। हालांकि अभी इस पर क्या किया जाएगा सभी ने चुप्पी साध रखी है। जबकि इन मामलों में कई नामचीन नाम शामिल हैं। इसके अलावा एक पूर्व मंत्री के परिजनों के लाइसेंस का मामला भी है जो जांच में सामने नहीं आ सका है जिसमें सेमी आटोमैटिक रायफल के लाइसेंस में गड़बड़ी थी। कलेक्टर की जांच टीम ने इसमें गड़बड़ी होना स्पष्ट पाया था। लेकिन इन मामलों में चुप्पी तमाम सवाल खड़े कर रही है।
आवेदन के बिना कैसे बढ़ी सीमा
जानकार अब यह भी सवाल खड़े कर रहे हैं कि जिस तरीके से अभी सिर्फ शस्त्र शाखा के लिपिकों को दोषी माना जा रहा है उतने ही दोषी लाइसेंस धारक भी है। बताया जा रहा है कि जितने भी लाइसेंसों में गड़बड़ी की गई है ज्यादातर में तत्कालीन डीएम ने उनके लाइसेंसों में सीमा वृद्धि या कारतूस वृद्धि की अनुमति नहीं दी थी। जिस पर संबंधितों ने लिपिकों से मिली भगत करके फर्जी तरीके से सीमा वृद्धि कराई या फिर कारतूस बढ़वाए। कई मामले तो ऐसे भी हैं जिसमें आवेदन तक नहीं है लेकिन उनके लाइसेसों में सीमा वृद्धि कर दी गई। बड़ा सवाल यह खड़ा हो रहा है कि आखिर कोई लिपिक क्यों अपने मन से किसी शस्त्र धारक की सीमा वृद्धि कर देगा। शस्त्र शाखा से जुड़े सूत्रों का कहना था कि इसके लिये बकायदे बड़ा लेन देन हो रहा था।
गड़बड़झाला अभी तक जारी रहा
एसटीएफ ने 2004 से तत्कालीन कलेक्टर द्वारा गठित जांच टीम के प्रकरणों का ही परीक्षण किया है। लेकिन यह गड़बड़झाला अभी हाल तक जारी रहा है। स्थिति यह रही है कि कलेक्टर मुकेश शुक्ला के स्थानान्तरण के बाद भी उनके हस्ताक्षर वाली शस्त्र लाइसेंस की अनुशंसाएं संभागायुक्त के पास भेजी जाती रही है। लेकिन एक मामले में जब संभागायुक्त डॉ अशोक भार्गव की नजर पड़ी तो वे भी चौंक गए। उन्होंने तत्काल इन प्रकरणों पर अपनी टीप लगाते हुए कलेक्टर सतेन्द्र सिंह के पास भेजा। कलेक्टर सिंह खुद भी भौचक्का हो गए कि उनकी नाक के नीचे बिना उनकी जानकारी में इस तरह का खेल चल रहा था। आनन फानन में उन्होंने शस्त्र शाखा को सीलबंद करवाया और संबंधित लिपिकों का प्रभार बदला। लेकिन संबंधितों पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई। लेकिन इन मामलों को अभी एसटीएफ के संज्ञान में नहीं लाया गया।
कलेक्टर बंगले के पते पर जारी हुए लाइसेंस
शस्त्र लाइसेंस फर्जीवाड़े में कलेक्टर बंगले के पते पर उत्तर प्रदेश के निवासियों के शस्त्र लाइसेंस भी जारी हुए हैं। इस मामले में स्थितियां यह रही कि जिस तरीके से पुलिस और राजस्व अमले की रिपोर्ट तलब की जाती है वह सब प्रक्रिया नहीं पूरी हुई।
लाइसेंस धारक नहीं हो सकते दोष मुक्त
उधर विधि वेत्ताओं का कहना है कि इस मामले में अकेले लिपिक दोषी नहीं हो सकते हैं। जब लाइसेंस संबंधी आवेदन उन्होंने नहीं दिए उसके बाद भी सीमा वृद्धि और कारतूस वृद्धि कैसे होती रही और इस आधार पर वे संबंधित सीमाओं तक घूमते रहे और कारतूस का उपयोग करते रहे। लिहाजा मामले में धारक भी दोषी माने जाएंगे।
उत्तर प्रदेश के निवासियों को जारी हुए लाइसेंस
सबसे चौंकाने वाला खुलासा थाना उचेहरा के मतरी पतौरा निवासी लाइसेंस धारक के लाइसेंस का है। इसमें थाना प्रभारी, एसडीओपी, एसपी सभी ने उत्तर प्रदेश का निवासी होने का हवाला देते हुए शस्त्र लाइसेंस देना उचित नहीं बताया था। इसी तरह से तहसीलदार उचेहरा ने भी अपने प्रतिवेदन में यह स्पष्ट लिखा था कि आवेदक का मतरी पतौरा में किसी प्रकार की भूमि एवं संपत्ति नहीं है और वह यहां का निवासी नहीं है। इसे उल्लेखित करते हुए उन्होंने प्रतिवेदित किया कि शस्त्र लाइसेंस दिया जाना कतई उचित न होगा। राजस्व निरीक्षक और पटवारी ने भी लाइसेंस नहीं दिये जाने का प्रतिवेदन दिया था। इस प्रकरण में पाया गया कि आवेदन में आवेदक ने अपना पता म.प्र. का लिखा था लेकिन म.प्र. का निवासी होने का कोई परिचय पत्र नहीं दिया था। इसके बाद भी शस्त्र शाखा के लिपिक ने इन सभी टीपों को नजर अंदाज करते हुए नोटशीट में उल्लेख किया कि एसपी एवं एसडीएम से प्रतिवेदन प्राप्त। प्राप्त प्रतिवेदनों में लेख किया गया है कि आवेदक उ.प्र. का निवासी है। ससुराल में निवास करता है। आवेदक के विरुद्ध कोई अन्य टीका टिप्पणी नहीं की गई है। और उसने अनुज्ञप्ति जारी करने की नोटशीट आगे बढ़ा दी। स्पष्ट है कि जिले में शस्त्र लाइसेंस जारी करने में कितना बड़ा खेल हो रहा था।
बिना एसडीएम प्रतिवेदन एसपी बंगले के पते पर जारी हुए लाइसेंस

जिन मामलों तक अभी एसटीएफ नहीं पहुंची है उसमें और चौंकाने वाले खुलासे हैं। तत्कालीन जांच टीम ने जो जांच रिपोर्ट तैयार की थी और जिसे विधानसभा को प्रस्तुत किया गया था उसमें एसपी बंगले के पते से आधा दर्जन लाइसेंस नियम विरुद्ध जारी किये गये थे। पत्रिका के पास मौजूद दस्तावेजों के अनुसार लाइसेंस क्रमांक 141/सिविल लाइन/12 में अभिषेक सिंह यादव पिता जोगेन्द्र सिंह यादव पता एसपी बंगला सतना का लाइसेंस गलत पाया गया था। इसमें एसडीएम का प्रतिवेदन प्राप्त नहीं किया गया था और सतना जिले का निवासी होने का कोई प्रमाण पत्र नहीं था। इसी तरह से बिना एसडीएम के प्रतिवेदन के एसपी बंगले के पते पर जिनके शस्त्र लाइसेंस जारी किये गए थे उनमें सुषमा यादव पत्नी सुनील यादव पता एसपी बंगला, अभिजीत सिंह यादव पिता जोगेन्द्र सिंह यादव पता एसपी बंगला, शिखर यादव पिता हरी सिंह यादव पता एसपी बंगला, कपिल देव सिंह पिता रामप्रकाश सिंह यादव पता एसपी बंगला और अवधेश सिंह यादव पिता रामप्रकाश सिंह पता एसपी बंगला शामिल है।
इधर विधायक नीलांशु की सफाई

लाइसेंस फर्जीवाड़े में विधायक नीलांशु चतुर्वेदी के लाइसेंस का नाम सामने आने पर उन्होंने सफाई दी है। कहा है कि उन्होंने सीमा वृद्धि का आवेदन दिया था। अब इसमें क्या प्रक्रिया होती है वह उन्हें नहीं पता। इसके लिये संबंधित स्टाफ और अधिकारी जिम्मेदार है। आवेदक को यह पता नहीं होता है कि क्या प्रक्रिया की गई। उन्होंने खुद के विरुद्ध प्रकरण दर्ज होने से इंकार कर दिया है।
विधायक नीलांशु के लाइसेंस में अलग-अलग रिपोर्ट

विधायक नीलांशु चतुर्वेदी के मामले में जो जानकारी सामने आ रही है उसमें सवाल खड़े हो रहे हैं। कलेक्टर द्वारा एडीएम के नेतृत्व में गठित टीम ने इनके शस्त्र लाइसेंस की जो रिपोर्ट तैयार की थी उसमें स्पष्ट लिखा था कि शस्त्र लाइसेंस स्वीकृति के लिये डीएम का आदेश मुताबिक नोटशीट अस्पष्ट है। वर्ष 2012 में सीमा वृद्धि उप्र. बढ़ाई गई है। क्षेत्र वृद्धि का आदेश शासन से प्राप्त नहीं है। इस लाइसेंस में पिता का लाइसेंस तथा पिता के लाइसेंस में पुत्र का लाइसेंस दर्ज है। जबकि एसटीएफ की जांच रिपोर्ट शासन से आदेश प्राप्त होने तक की भाषा तो सही है लेकिन पिता और पुत्र के लाइसेंस का मामला हटा दिया गया है और मामले में यह सफाई जोड़ दी गई है कि नस्ती में सीमा वृद्धि का कोई आदेश पीठासीन अधिकारी एवं डीएम द्वारा नहीं किया गया है। प्रभारी लिपिक द्वारा स्वमेव अपने स्तर पर शस्त्र पंजी में सीमा वृद्धि कर दी गई है जो नियम विरुद्ध है।
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