ट्रॉमा यूनिट भवन का लोकार्पण तो कर दिया गया, लेकिन न तो चिकित्सकों की पदस्थापना की गई और न ही उपकरण भेजे गए। इकाई में अब तक विशेषज्ञ चिकित्सक, मेडिकल ऑफिसर सहित 10 स्टाफ नर्स, 12 वार्ड ब्यॉय की पदस्थापना और आक्सीजन कंट्रोल यूनिट, इमरजेंसी केयर, सीटी स्कैन, कलर डॉप्लर सहित अन्य उपकरण मिल जाने चाहिए थे।
15 माह पहले जब भवन का लोकार्पण किया गया था, तब जिले के माननीयों ने बड़े-बड़े वादे किए थे। कहा था कि जिले के पीडि़तों को जिला अस्पताल में ही बेहतर चिकित्सा मिलेगी। आकस्मिक गंभीर बीमार को जबलपुर, रीवा भटकाव नहीं झेलना पड़ेगा। लेकिन, माननीय वादा भूल गए। जनता का दर्द जस का तस बना है।
ट्रॉमा यूनिट तक का पहुंचने का रास्ता सुगम होना चाहिए। ताकि गंभीर मरीजों को भर्ती कर त्वरित चिकित्सा प्रदान कर जान बचाई जा सके। जिला अस्पताल परिसर स्थित ट्रॉमा यूनिट तक एम्बुलेंस का पहुंच पाना चुनौती से कम नहीं है। एम्बुलेंस के अस्पताल पसिर में दाखिल होने के बाद भी यूनिट पहुंचने में 10 से 15 मिनट लग रही है। गंभीर मरीजों को जान का जोखिम पैदा हो जाता है।
13वें वित्त आयोग की योजना के तहत जिला अस्पताल परिसर में ट्रॉमा यूनिट भवन निर्माण के लिए वर्ष 2011 में 316.93 लाख रुपए की राशि स्वीकृत की गई थी। तब लोगों को उम्मीद जागी थी कि जल्द ही जिला अस्पताल में गंभीर मरीजों को चिकित्सा मिल सकेगी। जबलपुर, रीवा, नागपुर के चक्कर नहीं काटने पड़ेंगे। लेकिन, भवन निर्माण की धीमी गति ने पहले तो लोगों की उम्मीदों पर पानी फेरा। मुश्किल से छह साल में बिल्डिंग का जैसे-तैसे निर्माण हो पाया। बिल्डिंग का लोकार्पण होने के 15 माह बाद भी स्टाफ की पदस्थापना नहीं हो पाई है।
जिला अस्पताल में रेडियोलॉजिस्ट की कमी को दूर करने के लिए पीजीएमओ, स्त्री रोग विशेषज्ञ को प्रशिक्षण दिलाया जाना था। लेकिन, एक साल बाद भी जिला अस्पताल प्रबंधन द्वारा चिकित्सकों को ट्रेनिंग नहीं दिलाई गई। इस वजह से जिला अस्पताल सोनोग्राफी जांच केंद्र में आए दिन ताला लटका रहता है। अस्पताल पहुंचने वाले पीडि़त बिना जांच कराए लौट जाते हैं। संचालनालय स्वास्थ्य सेवा भोपाल ने जिला अस्पताल में रेडियोलॉजिस्ट की कमी को दूर करने के लिए स्त्ररोग विशेषज्ञ या पीजीएमओ को ऑब्स्टेट्रिक सोनोग्राफी में प्रशिक्षित करने के निर्देश दिए गए थे, ताकि किसी भी जांच केंद्र की व्यवस्था प्रभावित न हो। लेकिन, जिला अस्पताल प्रबंधन ने संचालनालय के निर्देशों को दरकिनार कर दिया। किसी भी चिकित्सक को प्रशिक्षण नहीं दिलाया गया।
जिला अस्पताल में महज दो चिकित्सक ऑब्स्टेट्रिक सोनोग्राफी में प्रशिक्षित हैं। एक को नैदानिक केंद्र और दूसरे को गायनी विभाग में सोनोग्राफी जांच का जिम्मा सौंपा गया है। इनमें से किसी भी चिकित्सक के अवकाश पर जाने, रात्रिकालीन ड्यूटी होने पर जांच केंद्र में ताला लटक जाता है।
संचालनालय ने प्रत्येक गर्भवती की एक सोनोग्राफी जांच 18 से 19 सप्ताह के बीच करने के निर्देश दिए थे। प्रशिक्षित चिकित्सकों की ड्यूटी एएनसी और प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व शिविर में गर्भवती की सोनोग्राफी जांच के लिए दोपहर 2 से 4 बजे तक लगाने को निर्देशित किया था। लेकिन, प्रशिक्षित चिकित्सकों की कमी के चलते गायनी विभाग के सोनोग्राफी जांच केंद्र की व्यवस्था भी प्रभावित हो रही है।