तत्कालीन अधिकारियों ने निजी संस्थाओं को किया उपकृत मिली जानकारी के अनुसार सरकारी कॉलेज की तर्ज पर निजी संस्थानों में पढ़ने वाले ओबीसी विद्यार्थियों को बेहतर शिक्षा के लिये छात्रवृत्ति दी जाती है। निजी कॉलेजों के लिये शासन स्तर से मापदण्ड तय किए गए है। लेकिन जिले के तत्कालीन अधिकारियों ने निजी कॉलेजों की मिलीभगत से करोड़ों रुपये का गड़बड़झाला करते हुए मनमानी तरीके से छात्रवृत्ति का वितरण कर दिया। बताया जा रहा है कि निजी कालेजों में अध्ययनरत विद्यार्थियों को तय सीमा से दो से तीन गुना तक की राशि वितरित कर दी गई। इस तरह से सरकारी खजाने को 5 करोड़ से ज्यादा की चोट पहुंचाई गई है।
यह हैं नियम पिछड़ा वर्ग तथा अल्पसंख्यक कल्याण म.प्र. ने 2011 में पिछड़ा वर्ग पोस्ट मैट्रिक छात्रवृत्ति पोर्टल का प्रारंभ करते हुए स्पष्ष्ट नियमावली जारी की गई थी। सभी सहायक संचालकों को अगस्त 2019 में पत्र क्रमांक 3955 जारी करते हुए आयुक्त ने स्पष्ट बताया था कि अशासकीय संस्थाओं (कॉलेजों) को शासकीय विद्यालयों में चलने वाले पाठ्यक्रमों में समान छात्रवृत्ति दी जाएगी। लेकिन अशासकीय कालेजों और महाविद्यालयों में संचालित स्ववित्तीय पाठ्यक्रमों में प्रवेशित पिछड़ा वर्ग के विद्यार्थियों को शासकीय संस्थाओं (कॉलेजों) के बेसिक पाठ्यक्रम में ली जा रही शिक्षण शुल्क की प्रतिपूर्ति की जाएगी। सामान्य भाषा में समझें तो निजी कॉलेजों और महाविद्यालयों में चलने वाले स्ववित्तपोषी पाठ्यक्रम की फीस कालेज द्वारा तय फीस के अनुरूप न दी जाकर सरकारी कालेजों की बेसिक फीस का भुगतान किया जाएगा।
यह किया जिले में लेकिन सतना जिले में तत्कालीन सहायक संचालक ने शासन के नियमों को दरकिनार करते हुए निजी संस्थाओं के स्ववित्तपोषी पाठ्यक्रमों की फीस सरकारी संस्थाओं की बेसिक फीस के बराबर न देकर जो फीस निजी संस्थाओं ने तय की थी उसके अनुसार दे दी। इस तरह से शासन को 5 करोड़ से ज्यादा का चूना लगा दिया। अब जब इस बार छात्रवृत्ति तय की गई तो हल्ला मचा कि गत वर्ष तो ज्यादा फीस दी जा रही थी। इसके बाद पिछले साल के रिकार्ड देखे गये तो सबकी आंखे फटी रह गईं। हालांकि इसके लिये अगल बगल के सभी जिलों की फीस वितरण की जानकारी ली गई तो वह इस बार सतना जिले में तय की गई फीस के समान ही थी।
कलेक्टर ने दिये जांच के निर्देश हालांकि इस मामले को लेकर निजी संस्थाओं के प्रतिनिधि और विद्यार्थी कलेक्टर से मुलाकात भी किए। जिस पर कलेक्टर ने अब इस मामले की पूरी जांच करने के निर्देश दे दिए हैं। प्रारंभिक जांच में गड़बड़झाला माना जा रहा है।
” शासन के नियम स्ववित्तपोषी पाठ्यक्रमों के लिये स्पष्ट हैं। इसमें शासकीय महाविद्यालयों की बेसिक पाठ्यक्रम में लिये जाने वाले शिक्षण शुल्क की तरह ही प्रतिपूर्ति की जाती है। वहीं इस बार किया जा रहा है। गत वर्ष की प्रतिपूर्ति देखी जा रही है। अभी मामले में कुछ भी नहीं बताया जा सकता है।”
– केके शुक्ला, सहायक संचालक ओबीसी कल्याण ” इस बार प्रतिपूर्ति नियमों के अनुरूप ही की जाएगी। गत वर्षों की प्रतिपूर्ति को चेक करवाया जा रहा है। प्रथम दृष्टया गड़बड़ी पाई गई है। ”
– अजय कटेसरिया, कलेक्टर