जानकारी के मुताबिक मोहरिया जगन्नाथ गांव में आदिवासी परिवार नाबालिग लड़की का विवाह कराने की तैयारी चल रही थी। बताया जाता है नाबालिग की बारात चोरहटा से आने वाली थी। लड़की के परिवार ने विवाह की सारी तैयारियां पूरी कर ली थी। इसी बीच एसडीएम केके पांडेय को इसकी जानकारी मिली। ऐसे में उन्होंने फौरन परियोजना अधिकारी महिला बाल विकास और पुलिस को मौके पर भेज कर शादी रुकवाने का निर्देश दिया।
महिला बाल विकास विभाग के अफसरों और पुलिस टीम जब गांव पहुंची तो आदिवासी परिवार के कई सदस्य यह समझ नहीं पाए कि यह टीम किसलिए आई। महिला बाल विकास के परियोजना अधिकारी ने नाबालिग बच्ची के परिजनों को समझाया। बताया कि खेलने-कूदने, पड़ने-लिखने के दिनों में लड़कियों का विवाह करने से उनका विकास रुक जाता है। इतना ही नहीं पूरा जीवन अंधकारमय हो जाता है। ये भी बताया कि कच्ची उम्र में विवाह होने पर मां और उसकी संतानों का न तो सर्वांगीण विकास हो पाता है और न ही उनकी आयु लंबी हो सकती है।
अधिकारियों ने संबंधित परिवार को कानून की जानकारी भी दी। बताया कि शिशु एवं मातृ मृत्यु दर कम करने के उद्देश्य से भारत सरकार ने बाल विवाह पर प्रतिबंध लगाया है। ऐसा करने पर माता-पिता एवं अन्य परिजनों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जा सकती है। साथ ही नियम का उल्लंघन करने पर परिजनों के साथ दूल्हा और बारातियों को जेल भेजा जा सकता है।
अधिकारियों ने परिजनों को समझाया कि बच्चियों के जन्म से लेकर जीवन भर उनके पालन-पोषण, पड़ाई-लिखाई आदि की जिम्मेदारी प्रदेश सरकार वहन कर रही है। इस स्थिति में बेटियों का कच्ची उम्र में विवाह किया जाना गैरकानूनी और अनुचित है। परियोजना अधिकारी और पुलिस अधिकारियों के समझाने के बाद आदिवासी परिवार ने नाबालिग बेटी का विवाह स्थगित कर दिया।