अनुभव किया दरकिनार
पार्टी सूत्रों की मानें तो जिलेभर में कई महिलाएं 10-20 वर्ष से पार्टी की रीति-नीति पर चलते हुए मोर्चा को सशक्त बनाने में जुटी रहीं। लेकिन, इस बार महिला मोर्चा की प्रदेश और जिला कार्यकारिणी में उनकी जमकर उपेक्षा की गई। अनुभव और वरिष्ठता को दरकिनार कर ऐसे चेहरों को जिम्मेदारी थमा दी जिनको पार्टी में आए हुए ही कुछ वर्ष हुए हैं। वहीं कुछ ऐसे नामों को प्रदेश कार्यकारिणी में शामिल किया गया है जिन्हें जिला तो छोडि़ए शहर तक नहीं जानता। यही हाल जिले की कार्यकारिणी है। मोर्चा की जिलाध्यक्ष को लेकर महिलाओं में उबाल है।
पार्टी सूत्रों की मानें तो जिलेभर में कई महिलाएं 10-20 वर्ष से पार्टी की रीति-नीति पर चलते हुए मोर्चा को सशक्त बनाने में जुटी रहीं। लेकिन, इस बार महिला मोर्चा की प्रदेश और जिला कार्यकारिणी में उनकी जमकर उपेक्षा की गई। अनुभव और वरिष्ठता को दरकिनार कर ऐसे चेहरों को जिम्मेदारी थमा दी जिनको पार्टी में आए हुए ही कुछ वर्ष हुए हैं। वहीं कुछ ऐसे नामों को प्रदेश कार्यकारिणी में शामिल किया गया है जिन्हें जिला तो छोडि़ए शहर तक नहीं जानता। यही हाल जिले की कार्यकारिणी है। मोर्चा की जिलाध्यक्ष को लेकर महिलाओं में उबाल है।
इनकी हुई उपेक्षा
सूत्रों की मानें तो संध्या उर्मलिया, अनीता तिवारी, ऊषा, विनीता, मीना, ज्योति सहित कई महिलाएं हैं जिनके अनुभव को दरकिनार किया गया। संध्या उर्मलिया तो करीब 20 साल से पार्टी से जुड़ी हैं। पिछली प्रदेश कार्यकारिणी में भी थीं। ये महिला मोर्चा को खड़ा करने वाली पूर्व अध्यक्ष लीला उर्मलिया की बहू हैं। राजनीतिक जानकार बताते हैं कि चतुर्वेदी परिवार से ताल्लुख रखने वाली संध्या को अलग करना सियासी साजिश है। बता दें कि भाजपा की जिला कार्यकारिणी से रत्नाकर चतुर्वेदी भी इसी सियासत की भेंट चढ़े हैं। वहीं मैहर की 2 बार मंडल अध्यक्ष रहीं अनीता तिवारी के अनुभव की अनदेखी की गई है। यही हाल ऊषा सहित अन्य महिलाओं का है।
सूत्रों की मानें तो संध्या उर्मलिया, अनीता तिवारी, ऊषा, विनीता, मीना, ज्योति सहित कई महिलाएं हैं जिनके अनुभव को दरकिनार किया गया। संध्या उर्मलिया तो करीब 20 साल से पार्टी से जुड़ी हैं। पिछली प्रदेश कार्यकारिणी में भी थीं। ये महिला मोर्चा को खड़ा करने वाली पूर्व अध्यक्ष लीला उर्मलिया की बहू हैं। राजनीतिक जानकार बताते हैं कि चतुर्वेदी परिवार से ताल्लुख रखने वाली संध्या को अलग करना सियासी साजिश है। बता दें कि भाजपा की जिला कार्यकारिणी से रत्नाकर चतुर्वेदी भी इसी सियासत की भेंट चढ़े हैं। वहीं मैहर की 2 बार मंडल अध्यक्ष रहीं अनीता तिवारी के अनुभव की अनदेखी की गई है। यही हाल ऊषा सहित अन्य महिलाओं का है।
रैगांव से भी नहीं लिया सबक
सियासी लोगों की मानें तो भाजपा ने रैगांव चुनाव से सबक नहीं लिया। वहां भी वरिष्ठता को दरकिनार कर पार्टी ने प्रतिमा बागरी को प्रत्याशी बनाया। नजीता सबके सामने है। इसके बाद पार्टी-संगठन के लोगों को विचार-विमर्श कर महिला मोर्चा सहित अन्य संगठन में नियुक्तियां करनी चाहिए थीं। लेकिन, यहां एकाधिकार चल रहा है। इस कारण वरिष्ठ सदस्यों की उपेक्षा की जा रही।
सियासी लोगों की मानें तो भाजपा ने रैगांव चुनाव से सबक नहीं लिया। वहां भी वरिष्ठता को दरकिनार कर पार्टी ने प्रतिमा बागरी को प्रत्याशी बनाया। नजीता सबके सामने है। इसके बाद पार्टी-संगठन के लोगों को विचार-विमर्श कर महिला मोर्चा सहित अन्य संगठन में नियुक्तियां करनी चाहिए थीं। लेकिन, यहां एकाधिकार चल रहा है। इस कारण वरिष्ठ सदस्यों की उपेक्षा की जा रही।
अभी भी फंसी है भाजयुमो जिलाध्यक्षी
प्रदेश के अन्य जिलों में भाजपा युवा मोर्चा के अध्यक्ष की नियुक्ति के साथ ही जिला कार्यकारिणी भी गठित हो चुकी है। लेकिन, सतना के अध्यक्ष के लिए दबाव का खेल चल रहा। यही कारण है कि अब तक भाजयुमो जिलाध्यक्ष की घोषणा नहीं हो सकी। भोपाल सूत्रों की मानें तो जिले से पार्टी और संगठन की ओर से अलग-अलग नाम गए थे। लेकिन, राजधानी में नामों को लेकर सामंजस्य नहीं बन पा रहा था। सूत्र बताते हैं कि एक नाम को लेकर काफी दबाव और मान-मनौव्वल का दौर चला। संगठन की ओर से आए दबाव के बाद नाम पर सहमति बन गई है। सूत्रों की मानें तो इस बार भी जिलाध्यक्षी सामान्य कोटे में जाएगी। इसकी औपचारिक घोषणा जल्द ही होगी। हालांकि इस नियुक्ति के बाद भी विरोध के सुर उभरेंगे।
प्रदेश के अन्य जिलों में भाजपा युवा मोर्चा के अध्यक्ष की नियुक्ति के साथ ही जिला कार्यकारिणी भी गठित हो चुकी है। लेकिन, सतना के अध्यक्ष के लिए दबाव का खेल चल रहा। यही कारण है कि अब तक भाजयुमो जिलाध्यक्ष की घोषणा नहीं हो सकी। भोपाल सूत्रों की मानें तो जिले से पार्टी और संगठन की ओर से अलग-अलग नाम गए थे। लेकिन, राजधानी में नामों को लेकर सामंजस्य नहीं बन पा रहा था। सूत्र बताते हैं कि एक नाम को लेकर काफी दबाव और मान-मनौव्वल का दौर चला। संगठन की ओर से आए दबाव के बाद नाम पर सहमति बन गई है। सूत्रों की मानें तो इस बार भी जिलाध्यक्षी सामान्य कोटे में जाएगी। इसकी औपचारिक घोषणा जल्द ही होगी। हालांकि इस नियुक्ति के बाद भी विरोध के सुर उभरेंगे।