जानकारी के अनुसार ग्राम पंचायत केमार की आम जनता की ओर उपसरपंच राघवेन्द्र सिंह ने सरपंच सुखइया उर्फ सुखई कोल के विरुद्ध म.प्र. पंचायत राज एवं ग्राम स्वराज अधिनियम 1993 की धारा 40 के तहत आवेदन प्रस्तुत किया था। जिसमें बताया गया था कि सरपंच निर्वाचन के बाद से कभी पंचायत की मीटिंग में उपस्थित नहीं होते हैं न ही ग्राम सभा में मौजूद रहते हैं।
पंचायत राज अधिनियम के विपरीत सरपंच के पिता ने इंद्रा आवास की राशि आहरित कर ली है। सरपंच ने नियम विरुद्ध तरीके से वार्ड के पंच को भी इंदरा आवास योजना का लाभ दिया है। प्रकरण में पाया गया कि शासन स्तर से कोई व्यवस्था नहीं होने के बाद भी सरपंच ने अपने कामों के लिए काशी प्रसाद शुक्ला को ओएसडी बना रखा था। जो न केवल ओएसडी के रूप में हस्ताक्षर करते थे बल्कि सरपंच की ओर से कामकाज में दखल भी रखते थे।
जनपद सीईओ ने भी पाई गड़बड़ी
जनपद सीईओ अमरपाटन ने अपना जांच प्रतिवेदन जिपं सीईओ को दिया है उसमें स्पष्ट लिखा है कि वे शासकीय कार्य में रुचि नहीं लेते हैं बल्कि आवास योजना और शौचालय निर्माण में अवरोध पैदा करते हैं। सरकारी कर्मचारियों को फोन पर गालियां देते हैं। प्राइवेट व्यक्ति को बतौर ओएसडी रखे हैं जो प्रावधान के विपरीत है। तथ्यात्मक जानकारी चाहे जाने पर न तो जानकारी देते हैं न ही संबंधित पत्र लेते हैं। यह भी पाया गया कि सरपंच पर पूरा नियंत्रण काशी प्रसाद शुक्ला का है।
नहीं पहुंचे न्यायालय
सरपंच को इस मामले में जिपं सीईओ ने सुनवाई का पूरा अवसर दिया गया और पक्ष समर्थन के लिए दो बार बुलाया गया। लेकिन वे न्यायालय में उपस्थित नहीं हुए। तमाम तथ्यों का गहन विश्लेषण और सूक्ष्म परिसीलन के बाद जिपं सीईओ ऋजु बाफना ने सरपंच सुखइया उर्फ सुखई को धारा 40 के तहत पद से पृथक करने का आदेश जारी कर दिया।