कथावाचक आचार्य शंकरदत्त जी महाराज (बड़ा अखाड़ा) ने कहा कि शिव त्याग एवं वैराग्य के प्रतीक हैं। इन आचरणों से संतोष प्राप्त होता है। इच्छा ही दुखों का कारण है। देश में बढ़ रही अशांति, अधार्मिकता तथा असंतोष का निदान केवल धार्मिक ग्रंथों के बताए मार्ग पर चलने से संभव है। धर्म हमें मयार्दा में रहने की प्रेरणा देता है। कथा के दौरान जैसे ही मां देवकी के पुत्र रत्न की प्राप्ति की घोषणा हुई वैसे ही पांडाल में आतिशबाजी के साथ पुष्पवर्षा शुरू हो गई।
आकाशवाणी के आधार पर वासुदेव कन्हैया को पालकी में लेकर गोकुल जाने के लिए पांडाल की ओर बढ़े। जीवंत झांकी के दौरान नन्हें-मुन्हें बच्चों ने भी आकर्षक वस्त्र सज्जा के साथ गोकुल का माहौल तैयार किया। कृष्ण जन्मोत्सव के दौरान श्रद्वालु धार्मिक भजनों पर बीच-बीच में नृत्य करते नजर आए। सुबह 8 से 12 बजे तक मूलपाठ और शाम 4 बजे से रात्रि 8 बजे तक संगीतमय प्रवचन में बड़ी संख्या में महिला-पुरूष कथा श्रवण करने के लिए पहुंचे।