राजस्थान, मालवा व निमाड़ के ग्रामीण लोग आज भी सिर पर साफा बांधकर रखते हैं। वहीं बुंदेलखंड और बघेलखंड में गमछा बांधने का चलन है। कृषि कार्य में लगे किसान अक्सर गमछे का सहारा लेते है। यहां हम आपको सिर ढंकने की पुरानी मान्यताएं और वैज्ञानिक कारण बता रहे है। जिसमे सिर ढकना हर प्रकार से अनिवार्य बताया गया है।
क्यों सिर ढंकना है जरूरी
पं. मोहनलाल द्विवेदी के अनुसार हिन्दू धर्म में किसी भी प्रकार की पूजा करते समय, यज्ञ करते समय, विवाह करते समय और परिक्रमा करते समय आम व्यक्ति को सिर ढंकना जरूरी है। इसीलिए महिलाएं अक्सर ओढऩी या दुपट्टे से सिर ढंकती हैं। जबकि पुरुष पगड़ी, टोपी या रूमाल से सिर ढंककर मंदिर में प्रवेश करते है। हालांकि पंडित इसलिए सिर नहीं ढंकते। क्योंकि उनके सिर पर चोंटी होती है और वे दिन-रात मंदिर की ही सेवा में लगे रहते हैं। इसके और भी कारण होते हैं।
पं. मोहनलाल द्विवेदी के अनुसार हिन्दू धर्म में किसी भी प्रकार की पूजा करते समय, यज्ञ करते समय, विवाह करते समय और परिक्रमा करते समय आम व्यक्ति को सिर ढंकना जरूरी है। इसीलिए महिलाएं अक्सर ओढऩी या दुपट्टे से सिर ढंकती हैं। जबकि पुरुष पगड़ी, टोपी या रूमाल से सिर ढंककर मंदिर में प्रवेश करते है। हालांकि पंडित इसलिए सिर नहीं ढंकते। क्योंकि उनके सिर पर चोंटी होती है और वे दिन-रात मंदिर की ही सेवा में लगे रहते हैं। इसके और भी कारण होते हैं।
ये है पौराणिक कारण
– बड़े-बुजुर्गों का कहना है कि जिसको आप आदर देते हैं। मतलब सम्मान करते है उनके आगे हमेशा सिर ढंककर जाने का नियम है।
– इसी कारण कई महिलाएं अभी भी अपने सास-ससुर या बड़ों से मिलती हैं, तो सिर ढंक लेती हैं। इसीलिए जब हम मंदिर में जाते हैं, तो भगवान के सामने सिर ढंक लेते हैं।
– पुरानी मान्यताओं के अनुसार सिर ढंककर रखना सम्मान का प्रतीक है। सिर की पगड़ी को कुछ लोग अपनी इज्जत से जोड़कर देखते हैं। राजाओं के जमाने में मुकुट सम्मान होती थी।
– इसीलिए मंदिर में जाते समय पगड़ी पहनी जाती है, लेकिन भगवान के दर्शन के समय प्रभु के चरणों में रख दी जाती है। जिससे समाज में सम्मान और रुतबा बना रहे।
– हमारे शरीर में 10 द्वार होते हैं- 2 नासिका, 2 आंख, 2 कान, 1 मुंह, 2 गुप्तांग और सिर के मध्य भाग में 10वां द्वार होता है। दशम द्वार के माध्यम से ही परमात्मा से साक्षात्कार कर पा सकते हैं।
– हिन्दू धर्म के अनुसार सिर के बीचों-बीच सहरि चक्र होता है। जिसे हम ब्रह्म रन्ध्र भी कहते हैं।
– इसीलिए मंदिर में पूजा के समय या मंदिर में प्रार्थना करने के समय सिर को ढंककर रखने से मन एकाग्र बना रहता है। पूजा के समय पुरुषों द्वारा शिखा बांधने को लेकर भी यही मान्यता है।
– बड़े-बुजुर्गों का कहना है कि जिसको आप आदर देते हैं। मतलब सम्मान करते है उनके आगे हमेशा सिर ढंककर जाने का नियम है।
– इसी कारण कई महिलाएं अभी भी अपने सास-ससुर या बड़ों से मिलती हैं, तो सिर ढंक लेती हैं। इसीलिए जब हम मंदिर में जाते हैं, तो भगवान के सामने सिर ढंक लेते हैं।
– पुरानी मान्यताओं के अनुसार सिर ढंककर रखना सम्मान का प्रतीक है। सिर की पगड़ी को कुछ लोग अपनी इज्जत से जोड़कर देखते हैं। राजाओं के जमाने में मुकुट सम्मान होती थी।
– इसीलिए मंदिर में जाते समय पगड़ी पहनी जाती है, लेकिन भगवान के दर्शन के समय प्रभु के चरणों में रख दी जाती है। जिससे समाज में सम्मान और रुतबा बना रहे।
– हमारे शरीर में 10 द्वार होते हैं- 2 नासिका, 2 आंख, 2 कान, 1 मुंह, 2 गुप्तांग और सिर के मध्य भाग में 10वां द्वार होता है। दशम द्वार के माध्यम से ही परमात्मा से साक्षात्कार कर पा सकते हैं।
– हिन्दू धर्म के अनुसार सिर के बीचों-बीच सहरि चक्र होता है। जिसे हम ब्रह्म रन्ध्र भी कहते हैं।
– इसीलिए मंदिर में पूजा के समय या मंदिर में प्रार्थना करने के समय सिर को ढंककर रखने से मन एकाग्र बना रहता है। पूजा के समय पुरुषों द्वारा शिखा बांधने को लेकर भी यही मान्यता है।
ये है वैज्ञानिक कारण
– चिकित्सकों की मानें तो सिर मनुष्य के अंगों में सबसे संवेदनशील अंग होता है।
– संवेदनशील स्थान को मौसम की मार, कीटाणुओं के हमले, पत्थर आदि लगने, गिरने या लड़ाई-झगड़े में सिर को बचाने के लिए सिर पर पगड़ी, साफा या टोपा लगाया जाता था।
– जैसे कि आजकल गाड़ी चलाने के लिए हेलमेट जरूरी हो गया है।
– बालों की चुंबकीय शक्ति के कारण सिर के बालों में रोग फैलाने वाले कीटाणु आसानी से चिपक जाते हैं।
– ये कीटाणु बालों से शरीर के भीतर प्रवेश कर जाते हैं जिससे वे व्यक्ति को रोगी बनाते हैं।
– यह भी कहते हैं कि आकाशीय विद्युतीय तरंगें खुले सिर वाले व्यक्तियों के भीतर प्रवेश कर क्रोध, सिरदर्द, आंखों में कमजोरी आदि रोगों को जन्म देती हैं।
– चिकित्सकों की मानें तो सिर मनुष्य के अंगों में सबसे संवेदनशील अंग होता है।
– संवेदनशील स्थान को मौसम की मार, कीटाणुओं के हमले, पत्थर आदि लगने, गिरने या लड़ाई-झगड़े में सिर को बचाने के लिए सिर पर पगड़ी, साफा या टोपा लगाया जाता था।
– जैसे कि आजकल गाड़ी चलाने के लिए हेलमेट जरूरी हो गया है।
– बालों की चुंबकीय शक्ति के कारण सिर के बालों में रोग फैलाने वाले कीटाणु आसानी से चिपक जाते हैं।
– ये कीटाणु बालों से शरीर के भीतर प्रवेश कर जाते हैं जिससे वे व्यक्ति को रोगी बनाते हैं।
– यह भी कहते हैं कि आकाशीय विद्युतीय तरंगें खुले सिर वाले व्यक्तियों के भीतर प्रवेश कर क्रोध, सिरदर्द, आंखों में कमजोरी आदि रोगों को जन्म देती हैं।