लापरवाह अफसरों की वजह से ‘सतना’ क्यों खाए धक्के, अधूरी ड्राइंग डिजाइन के साथ शुरू करवा दिया काम, 50 मीटर के हिस्से की स्वीकृति तक नहीं
Satna Flyover construction work
सतना. सतना का बहुप्रतीक्षित फ्लाइओवर राज्य सरकार के वर्तमान कार्यकाल में पूरा बनता संभव नहीं दिख रहा। इस चुनावी साल के जुलाई तक इसका काम पूरा होना था, पर लापरवाह अफसरों और इसकी निर्माण एजेंसी सेतु निगम के गैर जिम्मेदाराना रवैये से शहर दो साल से धक्के खा रहा है। फ्लाइओवर की अब तक पूरी ड्राइंग और डिजाइन ही नहीं है। सेतु निगम की लापरवाही का आलम यह है कि बाकी काम खत्म होने को है। पर सेमरिया चौराहे पर अंबेडकर की मूर्ति के ऊपर से 50 मीटर तक के फ्लाइओवर की ड्राइंग और डिजाइन को एप्रूवल नहीं मिली है। यह एप्रूवल आईआईटी रूडक़ी या मुंबई से लेनी है। दो साल से हाथ पर हाथ धरे बैठा अमला अब डेडलाइन खत्म होने से ठीक पहले जागा है। पर, अब इसे कल भी मंजूरी मिल जाए तो भी आचार संहिता लगने से पहले तक इसका लोकार्पण होना लगभग नामुमकि न है। अफसरों की लापरवाही की हद तो यह है कि सर्विसलेन में आ रहे बिजली के खंभों को भी बिना पूरी ड्राइंग समझे वापस सर्विस लेन के हिस्से में शिफ्ट कर दिया गया। जाहिर है कि यदि नियमानुसार फ्लाइओवर के दोनों ओर सात-सात मीटर की सर्विस लेन बनानी पड़ी तो जनता की गाढ़ी कमाई का पैसा फिर खर्च होगा। दोबारा से पोल शिफ्ट करने होंगे। जिस ब्रिज की शुरुआती प्रस्तावित लागत 52 करोड़ रुपए रही हो, उसको घटाकर 36 .22 करोड़ तक लाने के चक्कर में जिन मूल चीजों को छोड़ दिया गया है वे हादसों की आशंका को जन्म देंगी। ब्रिज खत्म होते ही दोनों ओर के एक्सट्रा पैसेज की डिजाइन नहीं होने से फ्लाइओवर बनने के बाद भी हादसों की आशंका रहेगी। और इन चीजों के सुधार के लिए वापस अतिरिक्त खर्चों के लिए वित्तीय स्वीकृति के लिए कौन पापड़ बेलेगा।
IMAGE CREDIT: patrikaबैठक में कलेक्टर तक ने माथा पीट लिया एक और बात कि जिस सर्विसलेन की धूल जनता सिर्फ इंतजार में खा रही है कि कभी तो अच्छे दिन आएंगे उसमें खुद इतने पेंच हैं कि मंगलवार को हुई बैठक में कलेक्टर तक ने माथा पीट लिया। उनको इस बात का जवाब नहीं मिला कि जब सर्विसलेन बनानी ही नहीं थी तो एक ओर की दुकानें क्यों तुड़वाई। जिले के मुखिया को भी अब समझ आ रहा है कि जब आम दिनों में यह हालत है तो बारिश के मौसम में इस टूटी सडक़ पर यातायात का क्या होगा। हाइवे होने का बहाना करने भर से अफसर अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकते। बात-बात पर क्रेडिट लेने वाले नेता भी अब सामने आकर यह कहने को तैयार नहीं हैं कि इस फ्लाईओवर की डीपीआर को स्वीकृति के समय उन्होंने इसका ड्राफ्ट नहीं पढ़ा। चलिए एक बार को मान लें कि अफसर आते-जाते रहे पर जनता ने जिन लोगों को अपनी आवाज बनाया, उन्होंने तब ही आपत्ति क्यों नहीं ली। इतना सब कुछ होने के बाद भी कोई यह बनाते को तैयार ही नहीं कि सतना को साफ सुथरी सुरक्षित सडक़ कब मिलेगी।