परफेक्ट मेजरमेंट के साथ करते हैं मूर्तियों को तैयार बकौल रेशू जब वे 15 साल के थे तभी गुरु का निधन हो गया। इसके बाद वे वहां से अपने घर आ गए और घर में ही मूर्ति बनाने का काम शुरू दिया। पहले वे परम्परागत मूर्तियों को बनाते थे, अब समय के अनुसार मूर्तियों में इनोवेशन करने लगे। हर साल कुछ नई स्टाइल में मूर्तियों को तैयार करते हैं। उनका कहना है कि लोगों को यह काम बेहद आसान लगता है। पर ऐसा नहीं। इसके लिए भी आपको एक इंजीनियर की तरह ही सोचना पड़ता है। मूर्ति की साइज, बॉडी मेजरमेंट, फेस शेप, बैकग्राउंड को सही मापदंड के अनुसार ही बनाना पड़ता है। जरा सी चूक हुई तो पूरी मूर्ति का आकार बदल सकता है या फिर मूर्ति बीच से टूट या डिसबैलेंस हो सकती है। जब कलर करते हैं तो उसमें भी रंगों के तालमेल का ख्याल रखना पड़ता है।
खुद का खोल लिया कारखाना
रेशू बताते हैं कि दो साल पहले ही उन्होंने एक छोटा सा कारखाना बना लिया है। इसमें वे हर साल सैकड़ों मूर्तियों को तैयार करते हैं। इन मूर्तियों को कपड़े पहनाने और कलर करने में उनकी बड़ी बहनें साथ देती हैं। उनकी मूर्तियां सतना, सीधी, सिंगरौली, मझगवां और आसपास के क्षेत्रों में जाती हैं।
रेशू बताते हैं कि दो साल पहले ही उन्होंने एक छोटा सा कारखाना बना लिया है। इसमें वे हर साल सैकड़ों मूर्तियों को तैयार करते हैं। इन मूर्तियों को कपड़े पहनाने और कलर करने में उनकी बड़ी बहनें साथ देती हैं। उनकी मूर्तियां सतना, सीधी, सिंगरौली, मझगवां और आसपास के क्षेत्रों में जाती हैं।